प्रयागराज: कुंभ मेला दुनिया भर में होने वाले धार्मिक आयोजनों में श्रद्धालुओं की संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा होता है. कुंभ का पर्व हर 12 साल के अंतराल पर किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है. हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में त्रिवेणी गंगा, यमुना और सरस्वती संगम पर कुंभ मनाया जाता है.


ज्योतिष के मुताबिक, जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. कुंभ का अर्थ है- कलश, ज्योतिष शास्त्र में कुम्भ राशि का भी यही चिह्न है. कुंभ मेले की पौराणिक मान्यता अमृत मंथन से जुड़ी हुई है.


माना जाता है कि देवताओं और राक्षसों ने समुद्र के मंथन से प्रकट होने वाले सभी रत्नों को आपस में बांटने का निर्णय किया. समुद्र के मंथन द्वारा सबसे मूल्यवान रत्न अमृत निकला था जिसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच संघर्ष हुआ.


इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिरीं, तब से प्रत्येक 12 सालों के अंतराल पर इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है. 12 साल के मतलब का देवताओं का बारह दिन होता है.


कुंभ मेले का आयोजन हजारों साल पहले से हो रहा है. मेले का प्रथम लिखित प्रमाण महान बौद्ध तीर्थयात्री हेवनेसांग के लेख में मिलता है. छठवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के शासन में होने वाले कुंभ का इन लेखों में वर्णन किया गया है.


कुंभ से संबंधित इतिहास 600 साल ईसा पूर्व बौद्ध लेखों में भी मिलता है. वर्तमान में प्रयागराज में चल रहा कुंभ, अर्धकुंभ है जो हर 6 साल में आयोजित होता है.