प्रयागराज: प्रयागराज में अगले महीने से शुरू हो रहे कुंभ मेले में हाथी-घोड़ों के इस्तेमाल को लेकर कोहराम मच गया है. योगी राज में हो रहे इस कुंभ मेले में सरकारी अमले ने अखाड़ों को पेशवाई और शाही स्नान समेत दूसरे जुलूसों में हाथी-घोड़ों को शामिल नहीं करने का फरमान सुना दिया है तो दूसरी तरफ नाराज़ साधू-संतों ने इसे परम्परा से खिलवाड़ बताते हुए जमकर विरोध करने का एलान कर दिया है. नाराज़ संतों ने यह सवाल भी उठाया है कि बकरीद पर कुर्बानी के लिए सरकारी संसाधन मुहैया कराने वाली योगी की सरकार को आखिर सनातनधर्मियों के कुंभ मेले में ही जानवरों पर अत्याचार की फ़िक्र क्यों हो रही है. साधू-संतों के विरोध के बाद मेला प्रशासन अब बीच का कोई रास्ता निकालने की बात कहकर हाथी -घोड़ों पर लगी आग को ठंडा करने की कोशिशों को जुट गया है.
प्रयागराज का कुंभ मेला शुरू होने में अभी तीन हफ्ते का वक्त बचा हुआ है, लेकिन मेले में एक के बाद एक कई विवाद खुलकर सामने आने लगे हैं. ताज़ा मामला कुंभ मेला प्रशासन द्वारा अखाड़ों की पेशवाई-शाही स्नान और नगर प्रवेश जैसे दूसरे जुलूसों में हाथी-घोड़ों के इस्तेमाल पर पूरी तरह पाबंदी लगाए जाने के मामले को लेकर है. अखाड़ों के पदाधिकारियों के साथ होने वाली कोआर्डिनेशन बैठक में मेला प्रशासन ने जैसे ही वन्य जीव क्रूरता अधिनियम का हवाला देकर हाथी और घोड़ों के इस्तेमाल पर रोक का फरमान सुनाया, वहां मौजूद साधू -संत उबल पड़े. अफसरों की दलील दी थी कि जुलूसों में हाथी व घोड़ों पर अत्याचार होता है और यह क़ानून के खिलाफ है. नये नियमों के तहत जुलूसों में इन्हे शामिल किये जाने पर पाबंदी है. संतों ने हाथी -घोड़ों को सनातनी वैभव का प्रतीक करार देते हुए इसे परम्परा से जुड़ा हुआ बताया तो अफसरों ने भीड़ के दौरान भगदड़ मचने और पांटून पुलों को नुकसान पहुंचने की आशंका जताते हुए अपने हाथ खड़े कर दिए.
गौरतलब है कि अखाड़ों के नगर प्रवेश, कुंभ में शाही अंदाज़ में प्रवेश करने की रस्म पेशवाई और तीन प्रमुख स्नान पर्वों पर होने वाली शाही स्नान के लिए निकलने वाले जुलूसों में सबसे आगे हाथी-घोड़े और ऊंट ही होते हैं. कई बार अखाड़ों के संत या उनके भक्त इन जानवरों पर बैठे हुए भी नजर आते हैं. जुलूसों में सबसे आगे चलने वाले ये जानवर अखाड़ों के वैभव का प्रदर्शन करते हैं. बहरहाल कुंभ मेला प्रशासन के इस फरमान से साधू संतों में ज़बरदस्त नाराज़गी है. उनका कहना है कि वह अपनी सनातनी परम्परा से कतई खिलवाड़ नहीं होने देंगे और इस फरमान को कतई नहीं मानेंगे.
कई संतों ने तो इस फैसले पर सवाल उठाते हुए योगी सरकार पर सीधे तौर पर निशाना साधा है. संतों का कहना है बकरीद पर कुर्बानी के इंतजाम के लिए परेशान होने वाली सरकार कुंभ में दोहरा रवैया अपना रही है. संतों की दलील है कि उनके जुलूस में हाथी-घोड़े सिर्फ वैभव का प्रतीक होते हैं. उन पर न तो कोई अत्याचार होता है और न ही पांटून पुलों के कमज़ोर होने का कोई खतरा है.
साधू -संतों के खुले विरोध के बाद मेला प्रशासन अब बैकफुट पर नज़र आ रहा है. अफसरों का कहना है कि इस मामले में अखाड़ों के पदाधिकारियों व दूसरे संतों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की जाएगी. अफसर अब इस कवायद में जुट गए हैं कि अखाड़ों के शाही जुलूसों में कम संख्या में थोड़ी दूरी के लिए हाथी-घोड़ों के इस्तेमाल की छूट दे दी जाए. मेला प्रशासन अपने इस फार्मूले को लेकर जल्द ही संतों के साथ बैठक करने की भी तैयारी में है. हालांकि इस फरमान से आग बबूला संत बीच के किसी रास्ते के फार्मूले के लिए झुकने को तैयार होंगे, इस पर शक है. वैसे इस मुद्दे पर प्रशासन अब भी पशोपेश की स्थिति में ही है.
प्रयागराज के कुंभ मेले में हाथी -घोड़ों के इस्तेमाल पर पहली बार कोहराम मचा है. साधू -संतों के तेवर देखकर ऐसा नहीं लगता कि वह इस मुद्दे पर कतई झुकने को तैयार होंगे. यूपी सरकार का इस मामले में सीधे तौर पर तो कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन संत सीएम और हिंदुत्ववादी होने का दंभ भरने का दावा करने की वजह से संतों के निशाने पर सीधे तौर पर योगी सरकार ही है. हाथी -घोड़ों से जुड़े इस मामले में भी अगर योगी सरकार ने दखल नहीं दिया तो कुंभ मेले में संग्राम होना तय है. कहा जा सकता है कि हाथी -घोड़ों ने कड़कड़ाती ठंड में भी कुंभ के माहौल को गरमा दिया है. इस गर्म माहौल में योगी सरकार को अग्नि परीक्षा देकर संतों की कसौटी पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती का सामना करना ही होगा.