कुशीनगर: लॉकडाउन की वजह से अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाए बेटे
कोरोना वायरस के चलते घोषितलॉकडाउन की वजह से दो बेटे अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाए. लाख कोशिशों के बाद भी जब वो कामयाब ना हुए तो मृतक के 16 वर्षीय पोते ने उन्हें मुखाग्नि दी.
कुशीनगर: कोरोना की वजह से हुए लॉक डाउन की वजह से फंसे बेटे अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाए. दरअसल ये मामला कुशीनगर जनपद के रामकोला क्षेत्र के मोरवन गांव का है जहां पूर्व एमएलसी रामस्वरूप यादव के बड़े बेटे व आरएलडी नेता विश्वनाथ यादव की शनिवार रात्रि निधन हो गया. लॉकडाउन में फसें उनके दोनों बेटों में से कोई भी अन्तिम संस्कार में नहीं आ सका. जिसकी वजह से उनके पोते ने उन्हें मुखाग्नि दी.
कुशीनगर के रामकोला थाना क्षेत्र के मोरवन ग्राम निवासी रामस्वरूप यादव पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के जमाने में एमएलसी रह चुके थे. उनके बेटे विश्वनाथ यादव व छोटे बेटे श्रीनाथ यादव का नाता भी चौधरी साहब के परिवार से बना रहा. 75 वर्षीय विश्वनाथ यादव काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. शनिवार की रात्रि उनकी हालत काफी खराब हो गई और देर रात उनकी मौत हो गई. विश्वनाथ यादव के दोनों पुत्र रोजी-रोटी के लिए बाहर रहते हैं. बड़ा बेटा मिथिलेश चंडीगढ़ के किसी कारखाने में काम करता है और छोटा बेटा सर्वदानंद पुणे में रहकर रोजी रोटी चलाता है.
नरेंद्र मोदी द्वारा कोरोना की लड़ाई में 25 मार्च से लॉकडाउन की घोषणा के बाद दोनों बेटे अपने कार्य स्थली पर घिरे हुए हैं. विश्वनाथ यादव की पत्नी मुन्नी देवी अपनी बहुओं व पोतों के साथ घर पर रहतीं हैं. शनिवार की शाम से ही विश्वनाथ की तवियत बिगड़ने लगी थी. मुन्नी देवी ने अपने पुत्रों को इसकी खबर दी लेकिन वे चाहकर भी लॉकडाउन की बंदिशों को तोड़ नहीं सके और वे अपने पिता का अंतिम दर्शन करने से भी वंचित रह गए.
हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र ही पिता को मुखाग्नि देता है. लेकिन लॉकडाउन की वजह से वह अंतिम संस्कार में सम्मिलित नहीं हो पाए. उनके बेटों को इस बात का मलाल है कि वे पिता के अंतिम दर्शन से तो वंचित रह ही गए और मुखाग्नि की परंपरा को भी कायम नहीं रख सके. रविवार को गांव के पास बागीचे में उनका अंतिम संस्कार किया गया. विश्वनाथ यादव के 16 वर्षीय पोते मंटू यादव ने उन्हें मुखाग्नि दी.
मुन्नी देवी का रो-रो कर बुरा हाल है कि उनके दोनो बेटे अपने पिता के दाह संस्कार में शामिल नहीं हो पाए. मुन्नी देवी कहती हैं कि इस कोरोना बीमारी ने बेटों को उसके पिता का दर्शन तक नहीं करने दिया. अब अगर लॉकडाउन खुलेगा तो ब्रह्मभोज में सम्मिलित होंगे. यही विधि का विधान है कि दो-दो बेटों के होने के बाद भी बेटे के हाथ से मुखाग्नि नहीं मिल पाई.
कोविड-19: पीएम समेत शभी सांसदों के वेतन में होगी 30 फ़ीसदी कटौती, राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति ने भी अपने वेतन में कटौती की सिफ़ारिश की मुंबई: ज़रूरतमंदों के बीच बांटी गई खराब खिचड़ी, कई लोगों की तबियत हुई खराब