इलाहाबाद :जिस कांग्रेस पार्टी ने देश पर तकरीबन साठ सालों तक राज किया, जिसके पास अरबों रुपए का फंड है, उस कांग्रेस का दफ्तर उसके मुखिया के पुरखों के शहर इलाहाबाद में अब बंद होने के कगार पर है. इसकी वजह कुछ और नहीं बल्कि पिछले बयालीस सालों से दफ्तर का किराया नहीं देना है. किराया भी इतना है, जिसे सुनकर कोई भी हैरत में पड़ सकता है. महज पैंतीस रुपए महीना. लेकिन सालों की चेतावनी के बाद भी जब कांग्रेस पार्टी इस मामूली किराए को भी नहीं दे सकी, तो मकान मालिक ने अब दफ्तर खाली करने का कानूनी नोटिस भेज दिया है.
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नोटिस मिलने के बाद पार्टी पदाधिकारियों और दूसरे नेताओं में हड़कंप मचा
नोटिस मिलने के बाद से पार्टी पदाधिकारियों और दूसरे नेताओं में हड़कंप मच गया है. वजह यह है कि शहर कांग्रेस कमेटी के जिस पचासी साल पुराने दफ्तर को खाली कराए जाने की नौबत आ गई है, उससे पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष राहुल गांधी के पुरखों की तमाम यादें जुड़ी हैं. राहुल की दादी इंदिरा गांधी, परनाना पंडित जवाहर लाल नेहरू और परनानी कमला नेहरू शहर अध्यक्ष रहते हुए बरसों इस दफ्तर की कमान संभाल चुकी हैं.
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नेताओं की दलील है कि यह महज दफ्तर महज एक बिल्डिंग का हिस्सा भर नहीं है बल्कि गौरवमयी विरासत भी है
दफ्तर खाली करने का नोटिस मिलने के बाद इलाहाबाद के कांग्रेसियों ने अब पार्टी मुखिया राहुल गांधी और यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर से इसे बचाने की गुहार लगाई है. कांग्रेस नेताओं की अपील है कि पार्टी या तो मकान मालिक से बात कर दफ्तर वाले हिस्से को बाज़ार रेट पर खरीद ले या फिर पिछ्ला बकाया चुकता कर नए सिरे से रेंट एग्रीमेंट कर ले. पार्टी नेताओं की दलील है कि यह महज दफ्तर महज एक बिल्डिंग का हिस्सा भर नहीं है, बल्कि दो -दो पूर्व प्रधानमंत्रियों समेत नेहरू-गांधी परिवार के कई सदस्यों से सीधा जुड़ाव होने की वजह से यह ऐसी गौरवमयी विरासत भी है, जो आम कांग्रेसियों को हमेशा प्रेरणा देती रहेगी.
इलाहाबाद के चौक इलाके में है कांग्रेस कमेटी का दफ्तर
नेहरू-गांधी परिवार के पैतृक शहर इलाहाबाद इलाहाबाद में शहर कांग्रेस कमेटी का दफ्तर चौक इलाके में है. चौक इलाके के जवाहर स्क्वायर की एक बिल्डिंग की पहली और दूसरी मंज़िल पर कांग्रेस पार्टी का यह दफ्तर पचासी साल से ज़्यादा पुराना है. इसकी शुरुआत देश की आज़ादी से पहले साल 1932 में हुई थी. इलाहाबाद की शहर कांग्रेस कमेटी की पहली अध्यक्ष राहुल गांधी की परनानी और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू थीं. उन्होंने कई साल तक इस दफ्तर की अगुवाई की थी. कमला नेहरू के बाद जवाहर लाल नेहरू कमेटी के अध्यक्ष बनकर इस दफ्तर की कमान संभालते थे. देश की आज़ादी के बाद जब पंडित नेहरू देश के प्रधानमंत्री बन गए तो कुछ सालों बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी शहर कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनीं थीं. इंदिरा ने काफी दिनों तक कमेटी की अगुवाई कर इस दफ्तर की कमान संभाली थी.
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मामला अदालत में जाने के बाद से कांग्रेस ने किराया देना एकदम बंद कर दिया
करीब चालीस साल पहले मकान मालिक ने किराया बढ़ाने और दो साल का बकाया अदा करने की मांग को लेकर कोर्ट में केस किया तो अदालत ने बकाया अदा करने के साथ ही किराए की रकम बढ़ाकर पैंतीस रुपए कर दी थी. मौजूदा समय में कांग्रेस के इस दफ्तर में पहली मंज़िल पर बैठक के लिए दो बड़े हाल, दो कमरे, किचन, शौचालय और दो बरामदे और आंगन हैं. इसके अलावा दूसरी मंज़िल की खुली छत भी है. इस हिसाब से चौक जैसे कामर्शियल इलाके में इतनी जगह का किराया तकरीबन चालीस से पचास हजार रुपए महीना होना चाहिए. मामला अदालत में जाने के बाद से कांग्रेस ने किराया देना एकदम बंद कर दिया.
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42 सालों का किराया 35 रुपए महीने के हिसाब से साढ़े सत्रह हजार रुपए होता है
पिछले बयालीस सालों में शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और दूसरे पदों पर कई बड़े नेता काबिज हुए, लेकिन किसी ने भी महज पैंतीस रूपया किराया चुकता करने की जहमत नहीं उठाई. अगर बयालीस सालों का किराया पैंतीस रुपए महीने के हिसाब से जोड़ लिया जाए तो भी कुल बकाया साढ़े सत्रह हजार रुपए ही होता है. मकान मालिक राजकुमार सारस्वत और रीता पुरवार ने ब्याज समेत तकरीबन पचास हजार रुपए अदा न करने पर ही दफ्तर खाली करने का यह नोटिस भेजा है. नोटिस में उन्होंने आगे यह जगह अपने निजी उपयोग के लिए इस्तेमाल करने की भी बात कहते हुए दफ्तर खाली करने को कहा है. नोटिस मिलने के बाद से कांग्रेस में हड़कंप मचा हुआ है. पार्टी नेता जानते हैं कि वह कानूनी तौर पर बेहद कमज़ोर हैं, इसलिए वह अदालत जाने के बारे में सोच भी नहीं सकते. इस वजह से पार्टी नेताओं ने अब सीधे अध्यक्ष राहुल गांधी से इस मामले में दखल देकर मदद करने की गुहार लगाई है.