इलाहाबाद: यूपी और उत्तराखंड के सीएम रहे नारायण दत्त तिवारी ने सियासत की एबीसीडी संगम के शहर इलाहाबाद में सीखी थी. पूरब का आक्सफोर्ड कही जाने वाली इलाहाबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी से ही उनके सियासी सफर की शुरुआत हुई थी. अपने जीवन का पहला चुनाव उन्होंने इसी युनिवर्सिटी में छात्रसंघ अध्यक्ष पद का लड़ा था. पहली ही कोशिश में उन्हें बड़ी कामयाबी हासिल हुई थी और वह 1947 में देश की आज़ादी के बाद गठित इस युनिवर्सिटी के छात्रसंघ के पहले अध्यक्ष चुने गए थे. इलाहाबाद युनिवर्सिटी छात्रसंघ अध्यक्ष चुने जाने के बाद उन्होंने तकरीबन सात दशक तक राजनीति की बुलंदियों को छुआ और सियासत की दुनिया में खुद को मील का पत्थर साबित किया.
सत्रह साल की उम्र में जेल भेजे गए थे नारायण दत्त तिवारी
नैनीताल में पैदा हुए नारायण दत्त तिवारी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सत्रह साल की उम्र में साल 1942 में जेल भेजे गए थे. तकरीबन पंद्रह महीने जेल में बिताने के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए वह इलाहाबाद युनिवर्सिटी आए. उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में एमए किया और युनिवर्सिटी के टॉपर बने थे. पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई करते हुए ही उन्हें राजनीति में दिलचस्पी हुई. अंग्रेजों के खिलाफ हुए आंदोलन में उन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. एमए करने के बाद इलाहाबाद युनिवर्सिटी में उन्होंने एलएलबी में दाखिला लिया. सन 1947 को देश की आजादी के बाद हुए पहले छात्रसंघ चुनाव में उन्होंने अध्यक्ष पद पर नॉमिनेशन किया. अपने जोशीले भाषण और मिलनसार रवैये की वजह से वह अध्यक्ष पद का चुनाव बड़े अंतर से जीते थे और इलाहाबाद युनिवर्सिटी में आज़ाद भारत के पहले अध्यक्ष बने थे. यह उनके सियासी जीवन की पहली सीढ़ी थी.
इलाहाबाद से था गहरा लगाव
इलाहाबाद युनिवर्सिटी का अध्यक्ष बनकर उन्होंने न सिर्फ यूपी बल्कि पूरे देश में अपनी अलग पहचान बना ली थी. इलाहाबाद युनिवर्सिटी के अध्यक्ष पद से मिली शोहरत का ही नतीजा था कि यूपी विधानसभा के पहले चुनाव में कांग्रेस की ज़बरदस्त लहर होने के बावजूद उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के बैनर पर चुनाव लड़ा था और कांग्रेस उम्मीदवार को बुरी तरह हराकर विधायक चुने गए थे. एनडी तिवारी का इलाहाबाद से गहरा लगाव रहा है. केंद्रीय मंत्री और तीन बार यूपी का सीएम बनने के बाद भी वह इलाहाबाद आने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने के बाद भी इलाहाबाद युनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव में लम्बे अरसे तक उनका दखल हुआ करता था.
इलाहाबाद युनिवर्सिटी छात्र आज़ाद भारत के पहले छात्रसंघ अध्यक्ष को नमन कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं
एनडी तिवारी ने अगर इलाहाबाद युनिवर्सिटी से सियासत की एबीसीडी सीखी तो उन्होंने यहां के तमाम युवाओं को सियासी कामयाबी की ट्रेनिंग भी दी थी. एनडी तिवारी की मौत की खबर सुनकर इलाहाबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी में मातम पसर गया है. यहां से जुड़े लोग अपने पूर्व होनहार छात्र और आज़ाद भारत के पहले छात्रसंघ अध्यक्ष को नमन कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. युनिवर्सिटी से जुड़े लोगों का कहना है कि एनडी को भले ही यहां से अलग पहचान मिली हो, लेकिन वह इस सियासी बाग़ के ऐसे फूल हैं, जिसकी खुशबू उनके दुनिया छोड़ने के बाद भी महकती रहेगी. युनिवर्सिटी के लोगों को बर्थडे के दिन ही उनका दुनिया को अलविदा कहना ज़्यादा अखरा.