नई दिल्ली: 2019 लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के भीतर प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू हो चुकी है. तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी), शिवसेना के बाद अब लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने अपने मुद्दों को मनवाने के लिए अल्टीमेटम दिया है और कहा है कि सरकार नहीं सुन रही है. टीडीपी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग करते हुए मोदी सरकार से अपना समर्थन वापस खींच लिया था. वहीं शिवसेना सरकार में रहने के बावजूद लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साध रही है.


क्या है एलजेपी की मांग
मोदी सरकार में मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी एससी/एसटी कानून को पुराने प्रावधान के तहत लागू करने की मांग कर रही है. एलजेपी का कहना है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए अध्यादेश लाये. नहीं तो आंदोलन होंगे.


रामविलास पासवान के सांसदे बेटे चिराग पासवान ने कहा, ''आज जो परिस्थिति बनी है उसको लेकर चिंता है. सुप्रीम कोर्ट ने जो एससी एसटी कानून में बदलाव किया है उससे कानून दंतहीन और कमज़ोर हो गया है. 7 अगस्त को संसद खत्म कर अध्यादेश लाया जाए. नहीं तो 9 अगस्त को आंदोलन होगा और सम्भवतः वही स्थिति बन सकती है जो 2 अप्रैल को बनी थी जिसमें दलित आंदोलन के दौरान हिंसा हुई थी.'' उन्होंने आशंका जताई की इस बार का आंदोलन पिछली बार से ज्यादा उग्र और हिंसात्मक हो सकता है.


चिराग पासवान ने कहा कि जस्टिस एके गोयल को एनजीटी का चेयरमैन बनाया गया उससे दलित समुदाय में ये सन्देश गया कि उन्हें पुरस्कृत किया गया है. उन्हें तुरन्त हटाया जाए. सरकार को हमारा समर्थन मुद्दों पर आधारित है और ये मामला इन्हीं मुद्दों पर है.


चिराग ने कहा, ''हमारा प्रयास रहेगा कि हम सरकार में साथ रहकर अपनी बात मनवाएं, हम टीडीपी जैसा कोई कदम नहीं उठाएंगें. सरकार हमारी एससी/एसटी एक्ट पर बात नहीं सुन रही है. अगर ऐसा होता तो अप्रैल से अभी तक फैसला हो गया होता. लेकिन हमें पीएम पर विश्वास है.''


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उन्होंने कहा कि एससी/एसटी एक्ट पर कहीं न कहीं देर हुई है. जिससे गलत संदेश गया है. देरी से दलित सेना का भी सब्र का बांध टूट रहा है. अगर 9 आगस्त तक कुछ नहीं हुआ तो हमारे दलित सेना के कार्यकर्ता भी आंदोलन पर उतर सकते हैं. लेकिन हमें पूरी उम्मीद है कि ऐसी नौबत नहीं आएगी और पीएम इस पर कुछ सकारात्मक कदम उठाएंगे.


क्या है नया एससी/एक्ट जिससे नाराज हैं दलित चिंतक और नेता
आपको बता दें कि इसी साल 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और जस्टिस उदय उमेश ललित की पीठ ने एससी/एसटी एक्ट में बड़ा बदलाव करते हुए आदेश दिया था कि किसी आरोपी को दलितों पर अत्याचार के मामले में प्रारंभिक जांच के बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. पहले केस दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी का प्रावधान था. आदेश के मुताबिक, अगर किसी के खिलाफ एससी/एसटी उत्पीड़न का मामला दर्ज होता है, तो वो अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकेगा.


इस फैसले के खिलाफ दो अप्रैल को देशभर में आंदोलन हुए थे. इस दौरान बड़े पैमाने पर हिंसक वारदातें भी हुई थी. जिसमें कई दलित आंदोलनकारियों को जान गंवानी पड़ी थी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर विपक्षी दलों और बीजेपी के कई दलित सांसदों ने कहा कि इससे दलितों का उत्पीड़न बढ़ेगा. सरकार इस फैसले को पलटे. हालांकि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी. लेकिन कोर्ट ने इसपर विचार करने से इनकार कर दिया था. अब दलित नेता सरकार पर अध्यादेश लाने के लिए दबाव बना रहे हैं.


विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार मजबूती से कोर्ट में अपना पक्ष नहीं रख सकी. इसलिए कोर्ट ने फैसला दिया. मोदी सरकार आरक्षण को खत्म करना चाहती है. वहीं कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कह चुके हैं आरक्षण कोई नहीं छीन सकता है.


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