मुंबई: कोरोना वाइरस की वजह से देश में पूरी तरह से लॉक डाउन पर अमल किया जाना जरूरी है. लेकिन इस दौरान कई ऐसे मामले भी सामने आ रहे हैं जहां पुलिस का अमानवीय पक्ष नजर सामने आ रहा है. कई ऐसे मामले सामने आये हैं जिनमें दूर रहने वाले लोग जब अपने मृत माता-पिता और करीबी रिश्तेदारों का अंतिम संस्कार करने के लिये निकले तो उन्हें पुलिस की सख्ती का शिकार होना पड़ा


ठाणे में फर्नीचर का कारोबार करनेवाले भैरों लाल लोहार 25 मार्च को उस वक्त सदमा लगा जब खबर आई कि उनकी मां रूक्मिणी बाई का राजस्थान के राजसमंद जिले में निधन हो गया है. अपनी माँ के इकलौते बेटे होने के चलते भैरों लाल का उनके अंतिम संस्कार में जाना जरूरी था. उन्हीं के हाथ से अंतिम संस्कार होना था. अब समस्या थी कि कर्फ्यू के दौरान घर से बाहर कैसे निकलें.


उन्होंने अपने दोस्त और शिवसेना के स्थानीय उप शाखा प्रमुख राजू शिरोडकर की मदद मांगी. शिरोडकर ने एक एंबुलेंस का इंतजाम किया. जिसमें बैठकर भैंरो लाल और उनका परिवार राजस्थान जा सकता था. भैंरो लाल ने व्हॉट्सएप के जरिए गांव से मां का मृत्यु प्रमाण पत्र मंगाया. इस प्रिंटआउट के आधार पर स्थानीय पुलिस से बाहर निकलने की अनुमति ले ली.


सफर के दौरान पूरे महाराष्ट्र भर में तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं आई. लेकिन गुजरात के बॉर्डर पर पहुंचते ही गुजरात पुलिस ने उन्हें रोक दिया. पुलिस उनकी एक सुनने को तैयार नहीं हुई. उन्होंने रोते गिड़गिड़ाते खूब फरियाद की. लेकिन उन्हें आगे नहीं जाने दिया गया. वे मोबाईल पर वीडियो कॉल के जरिये अपनी मृत मां का शव भी सबूत के तौर पर दिखाने लगे तो लेकिन पुलिसकर्मियों का पारा चढ़ गया. उन्होंने मोबाइल ही उठाकर फेंक दियामृत्यु प्रमाण-पत्र फाड़ दिया.


भैंरो लालउनके भाई और एंबुलेंस के ड्राईवर की डंडों से इतनी पिटाई की कि निशान तीनों के शरीर पर तीन दिन बाद भी नजर आ रहे थे. एंबुलेंस में बैठी भैंरो लाल की पत्नी ने खूब मिन्नतें कीं. लेकिन पुलिस ने उनकी भी नहीं सुनी. भैंरो लाल अपनी मां की चिता को मुखाग्नि देने से महरूम रह गये. उनके बाकी रिश्तेदारों को मां का अंतिम संस्कार करना पड़ा.


भैंरो लाल के साथ जो हुआ वैसे कुछ और भी मामले सामने आये हैं. जहां अपने मृत माता-पिता या भाई के अंतिम संस्कार में जाने वाले शख्स को पुलिस की बेरहमी और अमानवीयता का शिकार होना पड़ा.


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