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बेगूसराय में गिरिराज सिंह, कन्हैया कुमार और तनवीर हसन के बीच त्रिकोणीय मुकाबला, सभी कर रहे जीत का दावा

बिहार में गंगा के किनारे बसा बेगूसराय जिसे कभी प्रदेश की औद्योगिक राजधानी भी कहा जाता था चुनाव के कारण देशभर में सुर्खियों में है. यहां का मुकाबला इस बार त्रिकोणीय है और गिरिराज सिंह, कन्हैया कुमार और तनवीर हसन तीनों अपनी जीत का दावा कर रहे हैं.

पटना: बिहार में गंगा के किनारे बसा बेगूसराय जिसे कभी प्रदेश की औद्योगिक राजधानी भी कहा जाता था चुनाव के कारण देशभर में सुर्खियों में है. यहां दो धुरविरोधी विचारधाराओं के बीच हो रही चुनावी लड़ाई पर पूरे देश की नजरें टिकी हैं. एक तरफ बीजेपी के फायरब्रांड हिंदूवादी नेता गिरिराज सिंह हैं तो दूसरी तरफ जेएनयू में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने का आरोप झेल रहे वामपंथ के नए पोस्टर बॉय कन्हैया कुमार. यहां से आरजेडी के तनवीर हसन भी मैदान में हैं जो लालू यादव के मुस्लिम-यादव समीकरण में पूरी तरह से फिट बैठते हैं. तनवीर हसन ने पिछले लोकसभा चुनाव में दिवंगत सांसद भोला सिंह को कड़ी टक्कर भी दी थी. ऐसे में यहां का मुकाबला त्रिकोणीय माना जा रहा है और गिरिराज सिंह, कन्हैया कुमार और तनवीर हसन तीनों अपनी जीत का दावा कर रहे हैं.

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि बेगूसराय को कभी लेनिनग्राद कहा जाता था, एक समय था जब बेगूसराय को वामपंथ का गढ़ माना जाता था लेकिन कालांतर में वामपंथ की जड़ें यहां कमजोर होती चली गईं. 2019 के लोकसभा चुनाव में कन्हैया कुमार के रूप में कम्युनिस्ट पार्टी को उम्मीद की एक नई किरण नज़र आ रही है. बेगूसराय में भूमिहार वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है इसलिए प्रत्याशियों की जीत-हार में भूमिहार अहम भूमिका निभाते हैं. चूंकि गिरिराज सिंह और कन्हैया कुमार दोनों ही भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं इसलिए इस मुकाबले को और भी दिलचस्प माना जा रहा है लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि जो भूमिहार बेगूसराय में कभी वामपंथ का झंडा बुलंद किया करते थे वो अब कम्युनिस्ट पार्टी से दूरी बना चुके हैं. एक समय था कि बेगूसराय में कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेताओं में ज्यादातर अगड़ी जातियों से ही थे लेकिन वामपंथियों की लाल क्रांति से त्रस्त होकर अगड़ी जातियां (खासकर भूमिहार) कम्युनिस्ट पार्टी से दूर होती चली गईं. फिलहार भूमिहार बीजेपी का वोटबैंक माना जाता है ऐसे में कन्हैया कुमार बीजेपी के भूमिहार वोट बैंक में कितनी सेंध लगा पाएंगे ये देखना दिलचस्प होगा.

यहां पिछड़े वोटर किस पाले में जाएंगे यह भी काफी निर्णायक होगा. महागठबंधन में आरएलएसपी, जीतन राम मांझी की एचएएण और मुकेश साहनी की वीआई पार्टियां शामिल हैं. ऐसे में पिछड़े मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा महागठबंधन के साथ जा सकता है. वहीं, एनडीए में रामविलास पासवान और नीतीश कुमार की मौजूदगी पासवान और कुर्मी वोटरों को एनडीए की तरफ आकर्षित करेगी. कन्हैया कुमार यहां चुनाव प्रचार में गिरिराज सिंह को बाहरी बताकर खुद को बेगूसराय का बेटा साबित करने में लगे हुए हैं. कन्हैया अपना मुकाबला तनवीर हसन की बजाय गिरिराज सिंह से बता रहे हैं वहीं, तनवीर हसन कहते हैं कि उनकी लड़ाई एनडीए गठबंधन से है और वो कन्हैया को रेस में नहीं मानते. दूसरी ओर गिरिराज सिंह दोनों में से किसी कैंडिडेट का नाम नहीं लेते और अपनी लड़ाई विकृत राष्ट्रवाद के खिलाफ बताते हैं. कन्हैया कुमार यहां अपनी लोकप्रियता और वाकपटुता के आधार पर वोटरों को आकर्षित कर रहे हैं, लेकिन लोगों का मानना है कि कन्हैया अगर महागठबंधन से उम्मीदवार होते तो परिस्थितियां कुछ और होती.

एबीपी न्यूज़ से बातचीत में गिरिराज सिंह बेगूसराय से अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं. वो कहते हैं, ''मैंने अपने मंत्रालय में कई काम किये हैं, 10 करोड़ लोगों को रोजगार दिए हैं, लेकिन यहां लोगों ने लाल झंडा गाड़कर लहुलुहान किया है और रोजगार छीना है. बेगूसराय में पीएम मोदी और केंद्र सरकार ने 36 हजार करोड़ रुपए की योजनाएं दी हैं. रिफायनरी, फर्टिलाइजर, थर्मल ये सब बैठने की कगार पर था इन्हें फिर से खड़ा किया जा रहा है, किसी के पास कोई मुद्दा नहीं है इसलिए अनाप-शनाप बोला जा रहा है.''

आरजेडी कैंडिडेट तनवीर हसन कन्हैया पर यह आरोप लगाते हैं कि उनके नामांकन में बाहर से लोग आये थे और इस बात को बेगूसराय की जनता जानती है. कन्हैया पर चुटकी लेते हुए तनवीर हसन कहते हैं कि प्रचार के लिए बाहर से लोग आ रहे हैं, लेकिन बाहर से आने वाले लोग वोट नहीं करेंगे, अगर बाहर के वोटर भी वोट करेंगे तो फिर कन्हैया रेस में आ सकते हैं. तनवीर हसन कहते हैं कि ये बड़ा मुकाबला है, जमीनी सच्चाई है कि मैं गिरिराज सिंह के सामने मजबूत हूं. तनवीर हसन बीजपी के दिवंगत सांसद भोला सिंह के बारे में कहते हैं कि वो अपनी सांसद निधि के साढ़े 3 करोड़ रुपए खर्च नहीं कर पाए. वो कहते हैं कि नरेंद्र मोदी ने जो 2014 में लोगों को सपने दिखाए थे वो पूरे नहीं हुए हैं. अच्छे दिन, 2 करोड़ रोजगार, किसानों को राहत का वादा पूरा नहीं हुआ है इसलिए बीजेपी विरोधी माहौल बना हुआ है और जनता बदलाव चाहती है. तनवीर हसन कहते हैं कि लालू यादव का सामाजिक न्याय का नारा है और उनके सिपाही बेगूसराय में सामाजिक न्याय का खूंटा गाड़ेंगे. वो कहते हैं कि 2014 के बाद जितने भी उपचुनाव हुए हैं उसमें बीजेपी हारी है इसलिए अगर बीजेपी को ये भ्रम है कि जनता आंख बंद करके उनके साथ है, बीजेपी का ध्रुवीकरण का नुस्खा फेल हो चुका है.

कन्हैया कुमार एबीपी न्यूज़ से कहते हैं कि मुझे बेगूसराय की जनता से कोई उम्मीद नहीं है बल्कि मुझे बेगूसराय की जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना है. सभी प्रत्याशी अलग-अलग विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं लेकिन मेरे साथ जनता जिस भावना से जुड़ रही है उसमें एक अपनापन और लगाव है और उनको इस बात का भरोसा है कि उनकी चाहत और लड़ाई को मैं पूरा करूंगा. तनवीर हसन के वोटकटवा वाले बयान का कोई आधार नहीं है, उनको जनता जवाब देगी. गिरिराज सिंह ऐसे सांसद हैं जो अपनी सांसद निधि भी खर्च नहीं कर पाए, अगर उन्होंने रोजगार दिए हैं तो कहां दिए हैं, चांद पर दिए हैं क्या? गिरिराज सिंह फेल मंत्री हैं, आप उनका रिपोर्ट कार्ड देख लीजिए. बेगूसराय में सबसे अहम मुद्दा रोजी-रोटी, कपड़ा-मकान और आत्मसम्मान का है. जो जनसमर्थन मुझे मिल रहा है, बेगूसराय की जनता स्वाभाविक रूप से मेरे साथ है.

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