लोकसभा चुनाव 2019: फूलपुर में बीजेपी के लिए नाक की लड़ाई, गठबंधन के सामने गढ़ बचाने की चुनौती
बीजेपी के लिए फूलपुर सीट जहां नाक की लड़ाई है, वहीं गठबंधन के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती है, क्योंकि 1996 से लेकर 2004 तक हुए चार चुनावों में यहां से एसपी ने जीत दर्ज कराई है.
फूलपुर: पंडित जवाहर लाल नेहरू की कर्मभूमि रहे फूलपुर में इस बार एनडीए और एसपी-बीएसपी गठबंधन के बीच लड़ाई है. लेकिन कांग्रेस इस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में है. बीजेपी के लिए यह सीट जहां नाक की लड़ाई है, वहीं गठबंधन की तरफ से लड़ रही एसपी के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती है, क्योंकि 1996 से लेकर 2004 तक हुए चार चुनावों में यहां से एसपी ने जीत दर्ज कराई है.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में बीजेपी ने पहली बार यहां से जीत दर्ज की थी. बीजेपी उम्मीदवार और प्रदेश के मौजूदा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने एसपी उम्मीदवार धर्मराज पटेल को तीन लाख से भी अधिक मतों के अंतर से पराजित किया था. लेकिन 2018 के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी (एसपी) ने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के सहयोग से यह सीट बीजेपी से छीन ली. एसपी और बीएसपी इस बार भी एक साथ हैं.
किसी समय फूलपुर कांग्रेस गढ़ था. यहां से पंडित जवाहर लाल नेहरू लंबे वक्त सांसद रहे. उनके बाद उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित यहां से सांसद रहीं. लेकिन वक्त बदलने के साथ राजनीति में जातीयता हावी हुई और कुर्मी बाहुल्य इस सीट से कई सांसद जातीय आधार पर निर्वाचित हुए. पार्टियां भले बदलीं, मगर नेता उसी जाति के रहे.
बाद में यह क्षेत्र समाजवादी पार्टी (एसपी) का गढ़ बन गया. 1996 से 2004 तक हुए चार लोकसभा चुनावों में एसपी ने यहां से लगातार जीत दर्ज कराई. उसके बाद 2009 में बहुजन समाज पार्टी के कपिल मुनि कांवरिया ने इस सीट से जीत दर्ज की. 2014 के चुनाव में मोदी लहर में जातीय समीकरण टूटे तो बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्या यहां से सांसद चुने गए. लेकिन 2018 के उपचुनाव में एसपी ने वापस इस सीट पर कब्जा कर लिया.
मौजूदा चुनाव में 2014 की मोदी लहर नहीं है और जातीय समीकरण एक बार फिर हावी होता दिख रहा है. सभी दलों ने जातीय समीकरण के आधार पर ही उम्मीदवार उतारे हैं.
फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल 1,913,275 मतदाता हैं. जिसमें पुरुष 1,063,897 और महिलाएं 849,194 हैं. यहां सबसे ज्यादा पटेल मतदाता हैं, जिनकी संख्या करीब सवा दो लाख है. मुस्लिम, यादव और कायस्थ मतदाताओं की संख्या भी इसी के आसपास है. लगभग डेढ़ लाख ब्राह्मण और एक लाख से अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता हैं.
कांग्रेस ने अपना दल (कृष्णा गुट) की अध्यक्ष कृष्णा पटेल के दामाद पंकज निरंजन को उम्मीदवार बनाया है, तो बीजेपी ने भी इसी समुदाय से आने वाली पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष केशरी देवी पटेल को मैदान में उतारा है. जबकि एसपी-बीएसपी गठबंधन ने पंधारी यादव को उम्मीदवार बनाया है. एसपी से अलग हुए शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) भी यहां ताल ठोक रही है और उसने प्रिया पाल सिंह को मैदान में उतारा है.
इस लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं -फूलपुर, सोरांव, फाफामऊ, इलाहाबाद उत्तरी और इलाहाबाद पश्चिमी. सोरांव सीट पर अपना दल का कब्जा है, बाकी चार सीटें बीजेपी के पास हैं.
उपचुनाव में हार के कारण बीजेपी की काफी किरकिरी हुई थी, इसलिए आम चुनाव में यह सीट बीजेपी के लिए नाक की लड़ाई बनी हुई है. बीजेपी यहां पूरा जोर लगा रही है, और उसके बड़े नेता यहां चुनाव प्रचार कर रहे हैं. लेकिन महागठबंधन की बड़ी चुनौती उसके सामने है. 2018 के उपचुनाव में एसपी के नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल ने बीजेपी के कौशलेंद्र पटेल को पराजित किया था. इस बार एसपी ने पंधारी यादव को मैदान में उतारा है. फूलपुर सीट के लिए छठे चरण में 12 मई को वोट डाले जाएंगे. मतगणना 23 मई को होगी.