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विरासत: गुना में सिंधिया राजघराने की बोलती है तूती, यहां से परिवार कभी नहीं हारा चुनाव

गुना संसदीय क्षेत्र पर सिंधिया राजघराने के सदस्यों का लंबे अरसे से कब्जा है. बीजेपी ने इस सीट पर तभी जीत हासिल की है जब विजयाराजे सिंधिया उसके टिकट पर चुनाव लड़ीं.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सबसे मजबूत और सुरक्षित लोकसभा क्षेत्रों में से एक गुना से मौजूदा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं. गुना संसदीय क्षेत्र पर सिंधिया राजघराने के सदस्यों का लंबे अरसे से कब्जा है. इस संसदीय क्षेत्र से राजमाता विजयाराजे सिंधिया और बेटे माधवराव सिंधिया के बाद उनके पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव जीतते आए हैं. इस संसदीय क्षेत्र में अब तक हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस नौ, बीजेपी चार और बहुत पहले जनसंघ की जीत हुई थी. बीजेपी ने इस सीट पर तभी जीत हासिल की है जब विजयाराजे सिंधिया बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ीं.

2019 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस महासचिव बनाए जाने के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 40 संसदीय क्षेत्रों का प्रभारी बनाया गया है. बड़ी जिम्मेदारी मिलने के चलते सिंधिया की सक्रियता अब गुना की बजाय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादा है. इसी वजह से इस बार का चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है. ऐसा पहली बार हो रहा है जब ज्योतिरादित्य सिंधिया लोकसभा का चुनाव तो लड़ रहे हैं लेकिन इलाके में सक्रिय नहीं हैं. अपनी सीट से दूर रहकर चुनाव जीतना इस बार उनके लिए एक बड़ी चुनौती है. गुना से बीजेपी ने केपी यादव को चुनाव मैदान में उतारा है. गुना संसदीय क्षेत्र में 12 मई को मतदान होगा.

अब तक हुए लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक गुना संसदीय क्षेत्र लंबे अरसे से सिंधिया राजघराने का प्रभाव वाला क्षेत्र रहा है, यहां से सिंधिया राजघराने का सदस्य या उनके समर्थन से जिसने भी चुनाव लड़ा, उसे जीत मिलती रही है. अगर इस बार भी ऐसा ही रहा तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के क्षेत्र में न रहने के बावजूद भी कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं होने वाला. गुना संसदीय सीट को लेकर ऐसा माना जाता है कि यहां जीत का सेहरा उसी के सिर बंधता है, जिसे सिंधिया राजघराने का साथ मिलता है.

दादी दिवंगत राजमाता सिंधिया जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक ज्योतिरादित्य सिंधिया, आजादी के पहले ग्वालियर के शाही मराठा सिंधिया राजघराने के वंशज हैं और उनकी दादी दिवंगत राजमाता सिंधिया जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में शामिल थीं. माधवराव सिंधिया भी अपनी माता के बाद 1971 में जनसंघ में शामिल हो गये थे और साल 1971 के लोकसभा चुनाव में 'इंदिरा लहर' के बावजूद मां और पुत्र दोनों अपनी-अपनी सीटों पर विजयी हुए.

साल 1980 में माधवराव सिंधिया, इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये. कांग्रेस ने आपातकाल के दौरान उनकी मां को जेल में बंद रखा था. माधवराव की बहनों वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे अपनी मां के पदचिह्नों पर चलते हुए बाद में बीजेपी में शामिल हुईं.

आजादी के बाद से अब तक ऐसी रही है गुना लोकसभा सीट की तस्वीर 1957 में पहले चुनाव में राजमाता विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस के टिकट पर जीतीं. 1962 के चुनाव में कांग्रेस के रामसहाय पांडे ने जीत दर्ज की. 1967 के उपचुनाव में स्वतंत्रता पार्टी के जे बी कृपलानी जीते. कांग्रेस इस चुनाव में हार गई. 1967 के लोकसभा चुनाव में स्वतंत्रता पार्टी की ओर से विजयाराजे सिंधिया ने विजय हासिल की. 1971 में माधवराव सिंधिया जनसंघ के टिकट पर पहला लोकसभा चुनाव लड़े और जीते. 1977 के चुनाव में माधवराव सिंधिया निर्दलीय चुनाव जीत गए. 1980 में माधवराव सिंधिया कांग्रेस में शामिल हो चुके थे. इस बार उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की.

1984 में गुना की बजाए ग्वालियर सीट से चुनाव लड़े माधवराव सिंधिया 1984 में बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर से लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया था. कांग्रेस ने इसे देखते हुए रणनीति के तहत माधवराव सिंधिया को गुना की बजाय ग्वालियर से चुनाव मैदान में उतार दिया. उस वक्त तक माधवराव गुना संसदीय क्षेत्र से चुनकर आते थे. सिंधिया ने वाजपेयी को इस चुनाव में करारी शिकस्त दी. 1984 से लेकर 1998 तक माधवराव सिंधिया ने लगातार ग्वालियर सीट का ही प्रतिनिधित्व किया.

माधवराव सिंधिया के ग्वालियर जाने के बाद 1984 के चुनाव में कांग्रेस ने गुना से महेंद्र सिंह को उतारा. इस चुनाव में उन्होंने बीजेपी के उद्धव सिंह को हराया. 1989 के लोकसभा चुनाव में विजयाराजे सिंधिया एक बार फिर गुना से चुनाव लड़ीं और कांग्रेस के महेंद्र सिंह को हराकर फिर से यह सीट बीजेपी के कब्जे में कर ली. इसके बाद से विजयाराजे सिंधिया ने यहां 1991, 1996 और 1998 में लगातार जीत दर्ज की.

माधवराव सिंधिया लगातार ग्वालियर से चुनाव लड़ रहे थे और जीत हासिल कर रहे थे. लेकिन उनके ग्वालियर जाने की वजह से गुना में कांग्रेस पूरी तरह से कमजोर हो गई थी. 1999 में माधवराव ने एक बार फिर गुना सीट पर वापसी की और जीत दर्ज करके इस सीट पर कांग्रेस की भी वापसी कराई.

2001 में माधवराव सिंधिया की प्लेन क्रैश में हुई मौत, यहां से हुई ज्योतिरादित्य की राजनीति में एंट्री 30 सितम्बर 2001 को ग्वालियर राजघराने के उत्तराधिकारी और कांग्रेस के दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया की उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुए हेलीकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई. सिंधिया उस वक्त कानपुर में एक कार्यक्रम में जा रहे थे. 2001 में उनके निधन के बाद 2002 में हुए उपचुनाव में उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को मैदान में उतरना पड़ा. अपने पहले ही चुनाव में ज्योतिरादित्य ने जीत हासिल की. इसके बाद वो गुना सीट से लगातार जीतते आ रहे हैं. 2014 की मोदी लहर में जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सारे दिग्गज नेता चुनाव हार गए थे और 29 में से केवल दो सीटें ही कांग्रेस को मिली थी, उस दौरान भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भारी अंतर से जीत दर्ज की थी.

ज्योतिरादित्य सिंधिया का ऐसा रहा सफर माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया की गिनती कांग्रेस के हाईली एजुकेटेड नेताओं में होती है. ज्योतिरादित्य ने दून स्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई की. इसके बाद वो इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन के लिए हावर्ड यूनिवर्सिटी चले गए. सिंधिया ने स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल से एमबीए की डिग्री भी हासिल की है. ज्योतिरादित्य सिंधिया, मनमोहन सिंह की सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे हैं. भारत सरकार की पंद्रहवीं लोकसभा के मंत्रिमंडल में वो वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री रहे हैं.

इस चुनाव में सिंधिया के लिए ये है चुनौती कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी यूपी प्रभारी बनाया गया है. इसके अलावा वो मध्य प्रदेश के गुना से लोकसभा का चुनाव भी लड़ रहे हैं. पश्चिमी यूपी में कांग्रेस का कोई जनाधार नहीं बचा है. इस क्षेत्र में पार्टी का कोई बड़ा नेता भी नहीं है. ऐसे में पश्चिमी यूपी में कांग्रेस को फिर स्थापित करना सिंधिया के लिए बड़ा चैलेंज है. इसके अलावा वो लगातार पश्चिमी यूपी में सक्रिय हैं. विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने मध्य प्रदेश में न तो सक्रियता दिखाई है न ही वो वहां चुनाव प्रचार कर रहे हैं. ऐसे में एक बार फिर गुना से चुनाव जीतना उनके लिए बड़ा चैलेंज है.

2014 के चुनाव में क्या रही थी तस्वीर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के जयभान सिंह पवैया और साल 2009 के चुनाव में नरोत्तम मिश्रा को शिकस्त दी थी. गुना वह संसदीय क्षेत्र है, जहां कांग्रेस ने साल 2014 में 'मोदी लहर' के बावजूद जीत दर्ज की थी.

2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस पार्टी के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 5 लाख 17 हजार 36 वोट हासिल किये थे और 1 लाख 20 हजार 792 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी. गुना लोकसभा सीट पर दूसरे स्थान पर भारतीय जनता पार्टी के जयभान सिंह पवैया रहे थे जिन्होंने 3 लाख 96 हजार 244 वोट हासिल किये थे. बहुजन समाज पार्टी के लखन सिंह बघेल 27 हजार 412 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे.

विधानसभा की सीटों के हिसाब से ये है गुना का समीकरण गुना लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की आठ सीटें आती हैं. इनमें पिछोर, बमोरी, अशोक नगर, चंदेरी और मुंगावली समेत पांच सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. वहीं शिवपुरी, कोलारस और गुना समेत तीन विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. बता दें कि शिवपुरी से ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया विधायक हैं.

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