वाराणसी: अबतक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ राजनीतिक दलों की तरफ से किसी भी प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं हुई है. इसके बावजूद अबतक कुछ ऐसे नाम सामने आए हैं, जो वाराणसी लोकसभा क्षेत्र को काफी दिलचस्प बना रहे हैं. इनमे तमिलनाडु के 111 किसान हैं तो दो ऐसे शख्स हैं जो कई साल तक सरकारी रिकॉर्ड में मृत घोषित रहे हैं. वहीं तेलंगाना स्थित नलगोंडा में फ्लोराइड युक्त पानी से परेशान लोगों की आवाज उठाने वाले संगठन की अगुवाई करने वालों ने भी वाराणसी से चुनाव लड़ने का मन बनाया है. वे केंद्र सरकार का ध्यान अपनी समस्या की तरफ आकर्षित करना चाहते हैं. इसी तरह हरियाणा से प्रकाशित होने वाली एक पत्रिका के संपादक भी पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाराणसी आ रहे हैं. इसके अलावा कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के वाराणसी से चुनाव लड़ने की मांग भी स्थानीय कार्यकर्ता कर रहे हैं.


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मरकर ज़िंदा होने वाले भी चुनावी मैदान में


एक तरफ भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद उर्फ़ रावण ने चुनावी ताल ठोंकने का एलान किया और वाराणसी आकर रोडशो भी कर चुके हैं. उसके बाद बीएसएफ से बर्खास्त हुए जवान तेज बहादुर यादव ने भी घोषणा कर दी कि वह जवानों की बदहाली का मुद्दा हाईलाइट करने के लिए पीएम मोदी के खिलाफ चुनावी ताल ठोंकेंगे. वे रविवार को चुनाव तैयारियों के लिए वाराणसी पहुंच चुके हैं. इन सब नामों के बाद दो बड़े ही दिलचस्प नाम सामने आए हैं, जो कई सालों से 'मृत' हैं. इनमे आजमगढ़ के राम अवतार यादव और वाराणसी की चौबेपुर के रहने वाले संतोष सिंह हैं. यह दोनों अपने रिश्तेदारों की साजिश का शिकार होकर सरकारी दस्तावेजों में मृत दिखाए जा चुके हैं. भीम आर्मी चीफ बहुजन समाज के हितों के लिए पीएम मोदी को चुनाव हराकर वापस भेजने का दावा कर रहे हैं, लेकिन उनको सपा-बसपा गठबंधन से ही कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा. हां, उनसे कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी अस्पताल में जाकर मिल चुकी हैं. लेकिन कांग्रेस की तरफ से उन्हें समर्थन की कोई औपचारिक घोषणा होती नहीं दिख रही.


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करप्ट सिस्टम की तस्वीर है राम अवतार और संतोष की कहानी


राम अवतार यादव की कहानी भले ही दिलचस्प दिखे, लेकिन है बेहद दुखद. उनकी कहानी सिस्टम में भ्रष्टाचार के दीमक की कहानी को उजागर करती है. राम अवतार यादव आजमगढ़ जिले के सगरी ब्लाक के गोराईपटटी गांव के रहने वाले हैं. रामअवतार के रिश्तेदारों ने साल 2005 में एक बीघा जमीन हड़पने के लिए उन्हें सरकारी दस्तावेज में मृत दिखा दिया था. इसके बाद रामअवतार ने खुद को जीवित साबित करने की आठ वर्षों तक लड़ाई लड़ते रहे. रामअवतार ने कागज में अपना नाम वापस तो चढ़वा लिया लेकिन आजतक जमीन पर कब्जा वापस नहीं पा सके हैं.


रामअतवार यादव की लड़ाई में लाल बिहारी यादव के मृतक संघ ने बहुत साथ दिया था. वहीं वाराणसी के चौबेपुर इलाके के रहने वाले संतोष सिंह, जो कभी बॉलीवुड एक्टर नाना पाटेकर के रसोइया रह चुके हैं, उन्होंने भी मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने के घोषणा की है. संतोष को भी उनके रिश्तेदारों ने मुंबई बम ब्लास्ट में मृत बताकर उनकी जमीन हड़प ली थी. यहां तक कि उन्हें मृत घोषित कर बकायदा उनकी तेरहवीं का भोज भी आयोजित कर दिया गया था. अब संतोष अपने आपको जीवित साबित करने के लिए पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहते हैं.


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2014 में 77 कैंडिडेट्स ने भरे थे पर्चे, 40 की जमानत हुई जब्त


पिछली बार 2014 के लोकसभा चुनावों में पीएम मोदी के वाराणसी से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद, देश भर से कई नेता चुनाव लड़ने की घोषणा कर वाराणसी पहुंचे थे. तब पीएम मोदी के खिलाफ 77 कैंडिडेट्स ने नॉमिनेशन किया था. लेकिन ज्यादातर कैंडिडेट्स गंभीर नहीं थे, इसके चलते जांच में 34 कैंडिडेट्स के पर्चे ही खारिज हो गए. इसके बाद दो ने अपने नाम वापस ले लिए गए. फिर भी मैदान में मोदी के खिलाफ 41 कैंडिडेट्स ने चुनाव लड़ा था. वोटिंग के बाद रिजल्ट आने पर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल के अलावा कोई कैंडिडेट अपनी जमानत भी न बचा पाया था. इन चुनावों में 40 कैंडिडेट्स की जमानत जब्त हुई थी.


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बैलट पेपर से चुनाव कराने की रणनीति!


वाराणसी में चर्चा यह है कि ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में उतारे जाने से चुनाव ईवीएम से न होकर बैलट पेपर से होगा. लेकिन थर्ड जनरेशन ईवीएम से अब 24 वैलेट यूनिट जोड़े जा सकते हैं और 384 प्रत्याशियों के लिए वोटिंग कराई जा सकती है. ऐसे में विपक्ष का यह दांव भी खाली जाता नजर आ आ रहा है. वाराणसी में मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 18 लाख की है, जिनमें से तकरीबन 8 लाख महिलाएं और लगभग 10 लाख पुरुष हैं.