गाजीपुर: पड़ोस की वीआईपी सीट वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए लोकसभा की राह केवल औपचारिकता मानी जा रही है. लेकिन इसके उलट गाजीपुर में मनोज सिन्हा के लिए राह आसान नहीं दिख रही. उनके लिए मुकाबला विकास बनाम जातिवाद में फंसता नजर आ रहा है. उनकी मुश्किलों का अंदाजा इसी बात से लगया जा सकता है कि वे एक दिन में 17-17 जनसभाएं कर जनता के बीच अपनी उपलब्धियां गिनाते और विकास कार्यों का लेखाजोखा देते नजर आए.


गाजीपुर में रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा के सामने सपा बसपा गठबंधन से अफजाल अंसारी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से अजीत प्रताप कुशवाहा, कम्युनिस्ट पार्टी से भानुप्रकाश पांडेय, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से रामजी राजभर, प्रगतिशील समाज पार्टी लोहिया से संतोष यादव, राष्ट्रीय जनशक्ति पार्टी से वेदप्रकाश और भाकपा माले से ईश्वरी कुशवाहा सहित 13 उम्मीदवार मैदान में हैं. गाजीपुर में इस बार मतदताओं की कुल संख्या 18,67,712 है जिसमें से 8,50,935 महिला और 10,16 ,718 पुरुष मतदाता हैं.


दावा है कि मनोज सिन्हा के चलते गाजीपुर जिले में पड़ने वाले सभी रेलवे स्टेशनों का हुलिया बदला. यही नहीं जर्जर अवस्था में पड़ी रेलवे क्रॉसिंगों को भी नया कलेवर दिया गया. मनोज सिन्हा के रेल राज्य मंत्री होने के चलते गाजीपुर शहर को एक नया जोनल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट और रेलवे स्टेशन पर नया रेल वॉशिंग पिट मिला. बीजेपी के कार्यकर्ता और खुद मनोज सिन्हा गाजीपुर में किए गए 75 विकास कार्यों का लेखाजोखा मतदाताओं के बीच जाकर दे रहे.


यह भी एक बहुत बड़ा तथ्य है कि कभी मऊ-ताड़ीघाट रेलवे प्रोजेक्ट को सरकारी उदासीनता का सबसे बड़ा प्रमाण माना जाता था, लेकिन अब इस पर तेजी से काम चल रहा है. गाजीपुर शहर के पास गंगा नदी पर रोड कम रेलवे ब्रिज पर काम शुरू हो चुका है. यह मऊ-ताड़ीघाट के बीच बिछने वाले ब्रॉड गेज लाइन प्रोजेक्‍ट का हिस्‍सा है. इसके बन जाने से दिल्ली और हावड़ा के बीच ट्रेनों के लिए एक अल्टरनेटिव रूट मिल जाएगा और सबसे व्यस्त रेलवे ट्रैक पर ट्रैफिक का बोझ कुछ हल्का हो सकेगा.


लेकिन मनोज सिन्हा अगर अपने विकास कार्यों को गिना रहे हैं तो वहीं सपा-बसपा के उम्मीदवार अफजाल अंसारी के हौसले गठबंधन के सम्मिलित वोटबैंक की वजह से बुलंद हैं. उनके समर्थक तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि वे पीएम मोदी से ज्यादा वोटों से जीतेंगे और उनके वोटों की गिनती नौ लाख से शुरू होगी. इस विश्वास के पीछे कारण भी है कि इस इलाके में मुसलमान, यादव और दलित मतदाताओं की संख्या 50 फीसदी से अधिक है.


पिछले लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो मायावती के खासम-ख़ास रहे करीबी रहे बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा महज 32 हजार वोटों से मनोज सिन्हा से हारीं थीं. उन्होंने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और उन्हें कुल 2,74,477 वोट मिले थे. इसी तरह बसपा के उम्मीदवार रहे कैलाश नाथ सिंह को 2,41,645 वोट मिले थे. मनोज सिन्हा के लिए इस बार मुश्किल का दावा करने वाले इन दोनों को मिलने वाले वोटों को जोड़कर अपनी बात रख रहे हैं. दोनों के शामिल हाल वोटों की गिनती सवा पांच लाख के आसपास हो जाती है. जबकि पिछले चुनावों में मनोज सिन्हा को केवल तीन लाख वोट ही मिले थे.


गाजीपुर में जातीय समीकरण के हिसाब से 3.80 लाख सवर्ण, लगभग तीन लाख एससी और लगभग दो लाख मुस्लिम मतदाता हैं. जातीय समीकरण की संवेदनशीलता को देखते हुए ही शायद मनोज सिन्हा अपनी जनसभाओं में अपने विकास कार्यों को ही प्रमुखता देते रहे. उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान किसी भी राजनीतिक विरोधी की कोई बात नहीं की और न ही किसी विवादित मुद्दे का जिक्र किया. उनके भाषणों में सिर्फ मोदी सरकार की उपलब्धियां और अपने इलाके में कराए गए विकास कार्य ही प्रमुख मुद्दा बने रहे.