लोकसभा चुनाव: यादव, मुस्लिम बहुल आजमगढ़ में होगी अखिलेश की परीक्षा, ‘निरहुआ’ लगातार बनाये हुए हैं मौजूदगी
अखिलेश को 'बाहरी' उम्मीदवार बता रहे ‘निरहुआ’ की चुनावी रैलियों और रोड शो में भीड़ उमड़ रही है. हालांकि इलाके के लोग चुनावी फ़िज़ा को अखिलेश के पक्ष में बताते हैं. बहरहाल, कुछ का यह भी मानना है कि सपा प्रमुख के लिये लड़ाई उतनी आसान भी नहीं है, जितनी सोची जा रही है.
आजमगढ़: सपा की सियासत के मुफीद यादव और मुस्लिम समीकरण वाले आजमगढ़ में पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव का मुकाबला कर रहे भोजपुरी स्टार बीजेपी प्रत्याशी दिनेश लाल यादव उर्फ ‘निरहुआ’ के सामने अपने फिल्मी करिश्मे को वोटों में तब्दील करने की कड़ी चुनौती है.
अखिलेश को 'बाहरी' उम्मीदवार बता रहे ‘निरहुआ’ की चुनावी रैलियों और रोड शो में भीड़ उमड़ रही है. हालांकि इलाके के लोग चुनावी फ़िज़ा को अखिलेश के पक्ष में बताते हैं. बहरहाल, कुछ का यह भी मानना है कि सपा प्रमुख के लिये लड़ाई उतनी आसान भी नहीं है, जितनी सोची जा रही है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि नामांकन दाखिल करने के बाद अखिलेश आजमगढ़ में नहीं दिखे. वहीं, ‘निरहुआ’ यहां अपनी मौजूदगी लगातार बनाये हुए हैं.
सपा प्रमुख अखिलेश ने इस बारे में पूछे जाने पर बताया कि प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर सपा-बसपा प्रत्याशी चाहते हैं कि वह उनके लिये प्रचार करें. वह ऐसा कर भी रहे हैं. ‘‘जहां तक आजमगढ़ का सवाल है तो वहां पार्टी का संगठन मेरे समर्पित प्रतिनिधि की तरह काम कर रहा है. वह उस जनता से लगातार सम्पर्क में है, जो जानती है कि बीजेपी की असलियत क्या है.’’
अखिलेश ने कहा ‘‘वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जब सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव यहां से जीते थे, तब मैंने यहां का सम्पूर्ण विकास किया. आज बीजेपी जिस पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे की बात करती है, वह मेरी ही सोच है. अगर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मुझे दोबारा मौका मिलता तो मैं उसे हकीकत में बदलता. मैंने आजमगढ़ को आईटीआई, मेडिकल कॉलेज, बिजली उपकेन्द्र दिये हैं.’’
अपने बीजेपी प्रतिद्वंद्वी ‘निरहुआ’ के बारे में पूछे जाने पर सपा अध्यक्ष ने कहा 'जब मैं मुख्यमंत्री था तब उन्हें (यश भारती) सम्मान दिया था. अब वह उन लोगों की तरफ से चुनाव लड़ रहे हैं जिन्होंने उन्हें यह सम्मान प्राप्त करने पर मिलने वाली पेंशन बंद कर दी है. मेरे खिलाफ कोई भी चुनाव लड़े, मुझे कोई समस्या नहीं है.' दूसरी ओर, बीजेपी प्रत्याशी ‘निरहुआ’ ने कहा 'अखिलेश जी ने मुझे यश भारती सम्मान दिया लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं उनका समर्थन करूंगा. सपा यादवों को सिर्फ वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करती है. अब बदलाव का वक्त है.' राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ‘निरहुआ’ को युवाओं और पूरब के मध्यम वर्ग का खासा समर्थन मिल रहा है. हालांकि स्थानीय लोग मानते हैं कि अखिलेश का दावा ज्यादा मजबूत है.
चुनाव की चर्चा छेड़ने पर चाय दुकानदार मुहम्मद मुश्ताक ने कहा 'लोग गठबंधन उम्मीदवार अखिलेश यादव को पसंद कर रहे हैं क्योंकि बीजेपी ने आजमगढ़ को आतंकवाद का गढ़ ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.' मुबारकपुर के रहने वाले बीजेपी समर्थक मसूद अख्तर भी कहते हैं ‘‘आजमगढ़ का जातीय गणित अखिलेश के पक्ष में है. जब पिछले चुनाव में मोदी लहर के बावजूद रमाकांत यादव जैसा बड़ा नेता यहां से चुनाव हार गया तो हमें नहीं लगता कि ‘निरहुआ’ अखिलेश को टक्कर दे पायेंगे. अब तो बसपा भी सपा के साथ है, तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं है.’’
हालांकि एक अन्य दुकानदार सुरेश गुप्ता कहते हैं कि सपा अति आत्मविश्वास से घिरी है. उन्हें नहीं लगता कि पूरा दलित मतदाता अखिलेश को ही वोट दे देगा. देश में अब भी मोदी की लहर है.
आजमगढ़ में यादव सबसे प्रभावशाली पिछड़ी जाति है. प्रदेश की दलित आबादी में 56 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली जाटव बिरादरी बसपा की वफादार मानी जाती है. वर्ष 1996 से आजमगढ़ में सिर्फ मुस्लिम और यादव उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं.
रमाकांत यादव ने यहां वर्ष 1996 और 1999 में सपा प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की थी. वह वर्ष 2004 में बसपा और 2009 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते थे. वर्ष 1998 और 2008 में इस सीट पर हुए उपचुनावों में बसपा के अकबर अहमद डम्पी ने फतह हासिल की थी.
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने बीजेपी उम्मीदवार रमाकांत यादव को करीब 63 हजार मतों से हराया था. 17 लाख से अधिक मतदाताओं वाली आजमगढ़ सीट पर छठे चरण में आगामी 12 मई को मतदान होगा.
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