गोरखपुरः मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गोरखनाथ मंदिर की मानी जाने वाली गोरखपुर सदर लोकसभा सीट पर पूरे देश की नजर टिकी हुई हैं. पांच बार से लगातार सांसद रहे योगी आदित्यनाथ के साल 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद यूपी के मुख्यमंत्री बनते ही यूपी की फिजा ही बदल गई. उन्हें झटका तब लगा, जब साल 2018 में हुए उपचुनाव में गोरखपुर सीट भाजपा के खाते से खिसककर सपा के खाते में चली गई. रविवार को इस सीट पर चुनाव के साथ ही पूरे देश की नजर इस सीट पर हैं. वहीं भाजपा और सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है. फैसला जनता जनार्दन को करना है.
इसके पहले कि इस सीट के इतिहास के बारे में जानें, ये जानना जरूरी है कि इस सीट से भाजपा ने फिल्म स्टार रविकिशन को चुनाव मैदान में उतारा है. मामखोर को पैतृक गांव बताने वाले रविकिशन ने वहां की मिट्टी को माथे से लगाकर बाहरी होने के आरोपों को खारिज कर दिया है. टिकट घोषित होने के पहले भाजपा पेशोपेश में थी. शीर्ष नेतृत्व ये तय नहीं कर पा रहा था कि सपा प्रवीण निषाद को फिर मैदान में उतारती है, तो उसका काट क्या निकाला जाय. आखिरकार निषाद और पिछड़े वोटों को समेटकर भाजपा को मुश्किल में डालने वाले प्रवीण निषाद को भाजपा में शामिल कर संतकबीरनगर से टिकट दे दिया गया.
रविकिशन को काफी कम वक्त मिला लेकिन उन्होंने सुबह 5 बजे से 12 बजे रात तक प्रचार करके अपनी जगह बनाने का प्रयास किया. फिर भी उन्हें कुछ जगहों पर लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा. इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कमान संभाल ली और प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी. हर वर्ग के लोगों के साथ बैठक और सभा करके उन्होंने भाजपा के पक्ष में अच्छा माहौल बनाने के प्रयास किया. वही रही-सही कसर 16 मई को हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के जरिए पूरी करने की पुरजोर कोशिश की गई.
पूर्वांचल की राजनीति में गोरखपुर लोकसभा सीट की अहम भूमिका है. यह विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस, गुरु गोरखनाथ मंदिर, गीता वाटिका, टेराकोटा शिल्प के लिए मशहूर है. इसके साथ ही मुंशी प्रेमचंद की कर्मस्थली, फिराक गोरखपुरी, पं. रामप्रसाद बिस्मिल की शहादत स्थली है. लोकसभा हो अथवा विधान सभा चुनाव, पिछले तीन-चार दशकों से गोरखनाथ मठ इसकी धुरी बना हुआ है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए फिर 1998 से लगातार 2017 तक लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं.
गोरखपुर पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रमुख सीट है, वर्तमान में यहां से प्रवीण कुमार निषाद सांसद हैं. जो उपचुनाव में जीते थे. प्रवीण निषाद पार्टी के संस्थापक संजय निषाद के बेटे हैं. योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद यह सीट खाली हुई थी. इसकी लखनऊ से दूरी 273 किलोमीटर है. गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की कैम्पियरगंज, पिपराईच, गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण, सहजनवां शामिल हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार गोरखपुर की औसत साक्षरता दर 60.81% है. यहां एम्स, फर्टिलाइजर कारखाना निर्माण का कार्य जोरों पर है. स्थानीय मुद्दों में इंसेफ़लाइटिस बीमारी और बाढ़ प्रमुख रहते हैं.
गोरखपुर में कुल 19,03,988 मतदाता हैं. इसमें 10,55,209 पुरुष और 8,48,621 महिला मतदाता हैं. इस बार भाजपा से रविकिशन, सपा से रामभुआल निषाद, कांग्रेस से मधुसूदन त्रिपाठी प्रमुख पार्टियों से उम्मीदवार हैं. साल 1998 से 2014 तक लगतार चुनाव जीतकर सीएम योगी आदित्यनाथ पांच बार सांसद रहे हैं. उसके पहले उनके गुरु महंत अवेद्यनाथ 1989, 91 और 96 में लगातार तीन बार सांसद बने. 89 में वे हिन्दू महासंघ और 91 और 96 में भाजपा से सांसद बने. 1984 में कांग्रेस से मदन पाण्डेय, 1980 में कांग्रेस से हरिकेश बहादुर, 1977 में बीएलडी से हरिकेश बहादुर, 1971 में कांग्रेस से नरसिंह नारायण, 1967 में महंत दिग्विजयनाथ सांसद रहे. साल 1957 और 1962 में सिंहासन सिंह सांसद रहे.