लखनऊ: लम्बे इंतजार के बाद कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी वाड्रा ने आखिरकर सक्रिय राजनीति में कदम रखते हुए सियासी गुणा-भाग के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में अहम जिम्मेदारी स्वीकार कर ली.


प्रियंका को कांग्रेस में अहम पद दिये जाने की पुरजोर मांग के बावजूद उन्होंने एक दशक से भी ज्यादा समय तक खुद को अमेठी और रायबरेली में चुनाव प्रचार तक ही सीमित रखा. उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा का गठबंधन होने और उसमें कांग्रेस को शामिल ना किये जाने के बाद उभरे समीकरणों में प्रियंका का अचानक पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनना बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है.


वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक परवेज अहमद का मानना है कि प्रियंका को सक्रिय राजनीति में लाकर उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाना कांग्रेस का बड़ा कदम है.उत्तर प्रदेश में यह दांव काम कर सकता है. इससे मतदाताओं के उस तबके को एक और विकल्प मिल सकता है, जो किसी और नेतृत्व के अभाव में अपनी-अपनी परम्परागत पार्टियों से अलग नहीं हो पा रहा था.


उन्होंने कहा कि प्रियंका का अब तक का काम करने का तरीका यह बताता रहा है कि वह कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देती हैं। जब ऐसा कोई नेता सियासत में अगुवाई करने लगता है तो जितने नाराज लोग होते हैं, वह उसके नेतृत्व में गोलबंद होने लगते हैं. प्रियंका की अल्पसंख्यकों में जो छवि है वह उन्हें कांग्रेस की तरफ ले जा सकती है.


हालांकि प्रियंका ने अभी सक्रिय सियासत में कदम भर रखा है. अब देखना यह होगा कि राजनीति के मैदान में वह कोई करिश्मा दिखा पाती हैं या नहीं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी के तौर पर प्रियंका के लिये चुनौतियां कम नहीं होंगी. बहरहाल, प्रदेश के इस हिस्से में कांग्रेस की पकड़ अपेक्षाकृत बेहतर मानी जाती रही है, मगर पिछले लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद टूटे कार्यकर्ताओं के मनोबल को वह कितना उठा पाती हैं, यह देखने वाली बात होगी.


पूर्वी उत्तर प्रदेश में रायबरेली, अमेठी के साथ-साथ बाराबंकी, कुशीनगर, फैजाबाद, बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा, डुमरियागंज, महराजगंज, उन्नाव, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, इटावा, कन्नौज, कानपुर और अकबरपुर लोकसभा सीटें प्रमुख हैं. वर्ष 2009 में कांग्रेस ने ये सभी सीटें जीती थीं, जबकि इस वक्त रायबरेली और अमेठी को छोड़कर बाकी सभी सीटें भाजपा के पास हैं.


खासकर योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश की सियासत में पूर्वांचल का दबदबा बढ़ा है. प्रियंका के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के संगठन में नयी जान फूंककर उस दबदबे को तोड़ने की होगी.


सियासी जानकार प्रोफेसर सुरेन्द्र द्विवेदी कहते हैं कि प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने से कोई चमत्कार नहीं होने जा रहा है. प्रियंका को खुद को साबित करना अभी बाकी है। प्रियंका से अपेक्षाएं ज्यादा हैं, लिहाजा उनके आने से उम्मीद जरूर जागी है.


उन्होंने कहा कि प्रियंका को सक्रिय राजनीति में उतारने के पीछे कांग्रेस नेतृत्व की मंशा यह भी लगती है कि वह खासकर युवाओं को एक नयी उम्मीद देने की कोशिश में है. खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कहा कि प्रियंका के आने से उत्तर प्रदेश में एक नये तरीके की सोच आएगी और राजनीति में सकारात्मक बदलाव आएगा.


अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र अमेठी के दौरे पर पहुंचे राहुल ने कहा, ‘‘मैंने उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिशन दिया है कि वे राज्य में कांग्रेस की सच्ची विचारधारा ... गरीबों और कमजोर लोगों की विचारधारा...सबको साथ लेकर बढ़ने की विचारधारा को आगे बढायें. इस फैसले से उत्तर प्रदेश में नये तरीके की सोच आएगी और राजनीति में सकारात्मक बदलाव आएगा.’’