जानिए अमेठी में क्यों हारे राहुल गांधी, नतीजों से पहले क्यों हार स्वीकार कर स्मृति को दी बधाई
अमेठी हमेशा से कांग्रेस खासकर नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ रहा है. राहुल गांधी पिछले 15 साल से यहां के सांसद हैं. वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी. इस बार वह फिर उनके मुकाबले खड़ी हैं.
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के नतीजों में कांग्रेस बुरी तरह हार रही है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट से गुरुवार को अपनी हार स्वीकार कर ली. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ये एलान किया. राहुल गांधी ने कहा कि जनता मालिक है और जनता ने आज अपना फैसला दिया है. पर ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर राहुल गांधी अमेठी से हारे क्यों? क्योंकि अमेठी हमेशा से कांग्रेस की सुरक्षित सीट मानी जाती रही है.
सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश की है. सूत्र ये भी बता रहे हैं कि राहुल ने सोनिया गांधी के सामने इस्तीफे की पेशकश की है. हालांकि पार्टी की तरफ से इस पर कोई बयान नहीं आया है.
सबसे पहले तो बता दें कि यहां राहुल गांधी और स्मृति ईरानी के बीच कांटे की टक्कर चल रही है. स्मृति यहां राहुल से लगभग 36000 वोटों से आगे चल रही हैं. वोटों के बीच इतना बड़ा अंतर देख नतीजों से पहले राहुल ने अपनी हार मान ली है. उन्होंने कहा कि अमेठी में स्मृति ईरानी जीती हैं और इसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूं. मैं अपनी हार स्वीकार करता हूं.
राहुल गांधी ने कहा कि ये दो विचारधारा की लड़ाई थी जिसमें एक विचारधारा हमारी थी और दूसरी विचारधारा पीएम मोदी और बीजेपी की है. मैं अपने कार्यकर्ताओं से कहना चाहता हूं कि वो डरें नहीं, घबराएं नहीं, हम और मेहनत करेंगे. चुनाव नतीजों से साफ है कि जनता ने बीजेपी को चुना है.
वो मुद्दे जिनकी वजह से हारे राहुल
राहुल गांधी 2004 से अमेठी से जीतते रहे हैं पर इन सबके बाद भी कुछ बारी रह गया जिसका खामियाजा राहुल को भुगतना पड़ रहा है. अमेठी का विकास वैसा नहीं हुआ जैसा होना चाहिए था. राहुल के तीन बार सांसद रहने के बावजूद अमेठी की समस्या जस की तस बनी हुई हैं.
बीजेपी ने पिछले 15 साल से सांसद राहुल पर अमेठी के विकास पर ध्यान ना देने का आरोप लगाकर उनकी नाकामियां गिनाईं. राहुल गांधी के वायनाड सीट से लड़ने को भी स्मृति ने बड़ा मुद्दा बनाया था. इऩ बातों ने वोट का एक बड़ा पर्सेंटेज बीजेपी के हिस्से में आ गया.
स्मृति ईरानी के लगातार अमेठी के लोगों से जुड़े रहने, जनते के लिए काम करने और लगभग 41 दौरों ने उनके और राहुल के बीच जीत का बड़ा अंतर बनाया.
अमेठी के लिये फूड पार्क, पेपर मिल और नेटिव परियोजनाएं शुरू होने से पहले ही खत्म हो गयीं. कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार ने अमेठी को कुछ देने के बजाय, जो था वह भी छीन लिया. इसके बाद भी जनता ने अपना समर्थन बीजेपी को दिया.
2014 में राहुल गांधी से हार गई थीं स्मृति ईरानी
2014 में बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी, कांग्रेस प्रत्याशी राहुल गांधी से हार गई थीं. हालांकि इसके बाद भी उन्होंने अमेठी से नाता नहीं तोड़ा. पिछले पांच साल में कई बार वे अमेठी आईं. हालांकि प्रियंका गांधी ने अपनी सभाओं में साफ कहा कि राहुल उनसे अधिक बार जनता के बीच में आए.
हाल ही में राहुल गांधी ने व्यक्तिगत अपील वाली चिट्ठियां भी अमेठी में बंटवाई थीं और लोगों को परिवार का हिस्सा बताया था. प्रियंका गांधी ने भी राहुल गांधी के लिए गांव-गांव घूम कर प्रचार किया है. आपको बता दें कि राहुल गांधी ने इस बाद दो सीटों से पर्चा भरा था. वे केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं.
अब तक बस दो बार हारी कांग्रेस अमेठी लोकसभा सीट पर गांधी परिवार के सदस्यों की ही जीत होती रही है ऐसे में राहुल गांधी का यहां से हाल स्वीकार कर लेना गांधी परिवार और कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका है. 1967 से लेकर अब तक यहां सिर्फ दो बार ऐसा हुआ है जब कांग्रेस ने लोकसभा का चुनाव हारा हो.
1977 की जनता लहर में भारतीय लोक दल के रवींद्र प्रताप सिंह ने कांग्रेस के संजय गांधी को हराया था. इसके बाद दूसरी बार 1998 के आम चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. 1998 में बीजेपी कैंडिडेट डॉ. संजय सिंह ने कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा को शिकस्त दी थी.