लखनऊ: केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह करने की अपील की और कहा कि जब सबरीमला और समलैंगिकता के मामले में कोर्ट जल्द निर्णय दे सकता है तो अयोध्या मामले पर क्यों नहीं.
कानून मंत्री ने अन्य लोक सेवाओं की तरह भविष्य में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये भी ‘आल इण्डिया जूडिशियल सर्विसेस सिस्टम’ लाने की बात कही.
प्रसाद ने अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के 15वें राष्ट्रीय अधिवेशन के उद्घाटन अवसर पर कहा कि वह व्यक्तिगत तौर पर सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हैं कि रामजन्म भूमि मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह हो, ताकि इस पर जल्द से जल्द फैसला आ सके.
उन्होंने दलील दी कि जब सुप्रीम कोर्ट सबरीमला और समलैंगिकता के मामले पर जल्द निर्णय दे सकता है तो राम जन्म भूमि मामला 70 साल से क्यों अटका है.
समारोह में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एम.आर. शाह, इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर और न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी भी मौजूद थे.
प्रसाद ने कहा कि हम बाबर की इबादत क्यों करें.बाबर की इबादत नहीं होनी चाहिए. उन्होंने संविधान की प्रति दिखाते हुए कहा कि इसमें राम चंद्र जी, कृष्ण जी और अकबर का भी जिक्र है, लेकिन बाबर का जिक्र नहीं है. यदि हिंदुस्तान में इस तरह की बातें कर दो तो अलग तरह का बखेड़ा खड़ा कर दिया जाता है.
उन्होंने कहा कि सरकार ने तीन तलाक विधेयक को सरल बनाया है. इसके साथ इसमें जमानत देने का प्रावधान किया जा रहा है लेकिन पीड़िता का बयान लेने के बाद ऐसा होगा. दुनिया के 22 इस्लामी देशों में तीन तलाक पहले ही प्रतिबंधित है. स्थिति यह है कि पाकिस्तानी में उलमा भी इसी तरह के कानून की मांग कर रहे हैं.
अधिवक्ता परिषद द्वारा जारी बयान के मुताबिक कानून मंत्री ने अन्य लोक सेवाओं की तरह भविष्य में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये भी ‘आल इण्डिया जूडिशियल सर्विसेस सिस्टम’ लाने की बात कही. उन्होंने कहा कि वह इस बात की हिमायत करते हैं कि भविष्य की न्यायिक व्यवस्था में उच्च कोटि के न्यायमूर्तियों की ही नियुक्ति हो.
प्रसाद ने कहा कि वर्ष 1950 से लेकर 1993 तक हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी, जबकि 1993 से कॉलेजियम व्यवस्था लागू की गयी.
कानून मंत्री ने यह भी कहा कि देश के हाई कोर्ट में पिछले 10 वर्षों से दीवानी, फौजदारी और अन्य मामले विचाराधीन हैं. उनकी निगरानी कराकर शीघ्र निस्तारण किया जाय.
प्रसाद ने अधिवेशन में उपस्थित अधिवक्ता परिषद के सदस्यों से अपील की कि खासकर गरीबों के मुकदमों का निस्तारण जल्द और कम खर्च पर किया जाए.