नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को हुए मतदान को लेकर एग्जिट पोल के जो अनुमान हैं उसने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बेचैनी बढ़ा दी होगी. अगर एग्जिट पोल के अनुमान जैसे ही नतीजे आए तो शिवराज की सत्ता जाना तय है. लेकिन अगर इस चुनौती से शिवराज पार पा गए, तो क्या बीजेपी के भीतर उनका कद बढ़ जाएगा?


ऐसे में सवाल यह उठता है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान जीत गए तो क्या होगा? क्या चौथी बार जीतकर इतिहास बनाएंगे? क्या नरेंद्र मोदी के रिकॉर्ड की बराबरी कर पाएंगे? या फिर जीत के बाद बीजेपी के भीतर शिवराज की ताकत बढ़ेगी?


ये सारे सवाल, ये सारी अटकलें, ये सारे कयास अभी फिजाओं में हैं. जैसे-जैसे 11 दिसंबर की तारीख़ नजदीक आ रही है, शिवराज और उनके समर्थकों की बेकरारी भी बढ़ रही है. शिवराज सिंह चौहान इस बार बड़ी कठिन लड़ाई में फंसे हैं जहां उन्हें कांग्रेस की ओर से तगड़ी चुनौती मिली है और भारी मतदान ने उनकी चिंता भी बढ़ा दी. लेकिन ऐसे में अगर वो बीजेपी को जिता ले जाते हैं, तो उनकी ये कामयाबी काफी बड़ी होगी.


शिवराज सिंह चौहान ये चुनाव जीतकर देश में राजनीति कि नई ऊंचाई को छू लेंगें जो कम ही नेताओं को नसीब होती है. बीजेपी में शिवराज का कद बढ़ेगा और आने वाले वक़्त में जब बीजेपी या एनडीए में नरेन्द्र मोदी के विकल्प के बारे में सोचा जाएगा तो शिवराज उसमें सबसे आगे होंगे. मगर ये भी तय है कि शिवराज की ये ऊंचाई उनके समकालीन प्रतिद्वंदियों को रास नहीं आयेगी. लेकिन शिवराज जितनी कौशल से अपने दोस्तों को साधते हैं उतने ही प्रेम से विरोधियों को किनारे भी लगाते हैं. ये पिछले तेरह सालों में मध्य प्रदेश में दिखा है.


मध्य प्रदेश में सबसे लंबे वक्त तक मुख्यमंत्री पद पर रहने का रिकॉर्ड शिवराज के नाम ही दर्ज है. लेकिन सबकी नजरें इस पर टिकी हैं कि क्या इस चुनाव के बाद बतौर सीएम शिवराज, नरेंद्र मोदी की बराबरी कर पाएंगे?


क्या मोदी की बराबरी कर पाएंगे शिवराज?
* नरेंद्र मोदी अक्टूबर 2001 से मई 2014 तक लगातार 4 बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे.
* शिवराज चौहान 2005, 2008 और 2013 में तीन बार सीएम बने.
* यानी मोदी 4 बार तो शिवराज 3 बार सीएम रह चुके हैं.


अगर वो इस बार का चुनावी किला फतह कर लेते हैं तो फिर सबसे लंबे समय तक राज करने वाले मुख्यमंत्रियों के क्लब में आ जाएंगे. अगर शिवराज की वापसी होती है, तो क्या ये शिवराज की अपनी जीत मानी जाएगी? यह भी एक बड़ा सवाल है.


आखिर शिवराज की ताकत क्या है जिसके दम पर वो 13 साल से राज कर रहे हैं?
इतने लंबे समय से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के बाद भी शिवराज सहज, सरल और सुलभ बने हुए हैं. उन्होंने अपनी छवि मुख्यमंत्री नहीं 'मामा' की बनाई हुई है. असल में शिवराज सिंह चौहान ने ये पूरा चुनाव अपने कंधों पर ढोया है. चुनाव की घोषणा होने के बाद से शिवराज ने अकेले 157 रैलियां की. जबकि मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 रैलियां की. अमित शाह ने 25 रैलियों को संबोधित किया. योगी आदित्यनाथ ने भी 15 रैलियों को संबोधित किया.


साफ है कि अकेले शिवराज ने अपनी पार्टी के सबसे बड़े स्टार प्रचारकों से तीन गुना ज्यादा रैलियां की. न सिर्फ रैलियां बल्कि चुनाव की घोषणा से पहले वो यात्राओं के जरिये प्रदेश भर में घूमे. शिवराज चौहान ने नर्मदा यात्रा की, उसके बाद एकात्म यात्रा पर निकले और फिर जन-आशीर्वाद यात्रा निकाली. इस तरह उन्होंने मध्य प्रदेश के कई चक्कर लगाए और जिन जगहों पर कोई नहीं गया, वहां शिवराज पहुंचे.


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शिवराज का राजनीतिक कौशल ये भी है कि कई जगह बीजेपी विधायकों को लेकर भले ही नाराजगी दिखी हो, लेकिन शिवराज को लेकर वैसी शिकायत नहीं थी. बहरहाल, चुनाव के नतीजे जो भी हों, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि शिवराज ने मेहनत बहुत की. उनका चुनावी अभियान इस बात का गवाह है. इस मेहनत का उन्हें इस बार भी कोई फल मिलेगा या नहीं, ये 11 दिसंबर को सामने आ ही जाएगा.


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