भोपाल: लगभग 9 लाख मतदाताओं वाले मध्य प्रदेश के खंडवा जिले को बीजेपी का गढ़ समझा जाता है. लंबे अरसे से यहां बीजेपी का परचम ही लहराया है. कोई खंडवा को आध्यात्मिक संत गुरु दादा जी महराज की स्थली के तौर पर जानता है तो कोई भारतीय सिनेमा के हरफनमौला कलाकार किशोर कुमार की जन्मस्थली के रुप में इसे पहचानता है.
खंडवा, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पत्रकारिता के बड़े नाम रहे पंडित माखन लाल चतुर्वेदी की कर्म स्थली भी रही है. लेकिन बदलते दौर के साथ खंडवा की सियासी पहचान बदली है. अब ये जिला बीजेपी का अभेद किला माना जाता है.
खंडवा का सियासी समीकरण
खंडवा जिले में विधानसभा की कुल 4 सीटें हैं जिनमें दो अनुसूचित जाति, एक जनजाति जबकि एक पर सामान्य सीट है. इन चारों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. खंडवा लोकसभा सीट से बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान सांसद है. पिछली लोक सभा में यहां से प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव जीते थे जो मनमोहन सरकार में केन्द्रीय राज्य मंत्री भी बने थे.
जिले में विधानसभा से लेकर लोकसभा तक बीजेपी का कब्जा है बावजूद इसके नीति आयोग ने मध्यप्रदेश के जिन 8 जिलों को पिछड़ा घोषित किया हैं उसमे खंडवा भी शामिल हैं.
खंडवा के लोगों की समस्या
जिले में एक भी उद्योग नहीं इसलिए बेरोजगारी है. नौकरी की तलाश में बड़े शहरों की तरफ युवा पलायन को मजबूर हैं. पानी की समस्या बहुत ज्यादा है जिसे दूर करने के लिए नर्मदा जल योजना शुरु की गई लेकिन निजीकरण की वजह से लोगों की परेशानी कम नहीं हुई. रिंगरोड और ट्रांसपोर्ट नगर का वादा पूरा नहीं हुआ है.
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सियासी वादों और इरादों के बीच अब खंडवा की जनता को तय करना है कि वो किस पार्टी को आगामी चुनाव में सत्ता की चाबी सौंपते हैं. सूबे में 28 नवंबर को एक चरण में वोट डाले जाएंगे और 11 दिसंबर को नतीजे आएंगे.
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