भोपाल: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम में 15 साल बाद बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई. 230 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस के खाते में 114 और बीजेपी के खाते में 109 सीटें आईं. लेकिन वोट शेयर के मामले में बीजेपी, कांग्रेस से आगे रही, तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि ज्यादा मत प्रतिशत हासिल करने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान सरकार बनाने में नाकाम हो गए?


आखिर कहां चुक गये चौहान


मध्य प्रदेश में बीजेपी के खाते में 1 करोड़ 56 लाख 42 हजार 980 वोट डाले गए जबकि कांग्रेस को 1 करोड़ 55 लाख 95 हजार 153 वोट मिले. यानी की बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले 47 हजार 827 वोट ज्यादा मिले. वहीं वोट प्रतिशत की बात करें तो बीजेपी को 41 फीसदी और कांग्रेस को 40.9 फीसदी वोट मिले हैं. यानी की वोट प्रतिशत के मामले में भी कांग्रेस, बीजेपी से पीछे रह गई है. लेकिन माना जा रहा है कि इस चुनाव में प्रदेश का मिडिल क्लास बीजेपी से खासा नाराज था और इसी का नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ा.


प्रदेश के अलग-अलग पांच शहरी क्षेत्रों के साल 2013 के नतीजों की तुलना 2018 से करें तो तस्वीर बहुत कुछ साफ हो जाती है. साल 2013 में बीजेपी ने इंदौर की नौ में से आठ सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार उसके हिस्से में सिर्फ पांच सीटें आईं.


वहीं पिछली बार जबलपुर की आठ सीटों में से बीजेपी ने छह सीटें जीती थीं, जबकि इस बार उसे मात्र चार सीटें मिलीं. ग्वालियर में भी कुछ इसी तरह का हाल रहा. साल 2013 में यहां छह सीटों में से बीजेपी के खाते में चार सीटें गई थीं लेकिन इस बार उसे महज दो सीटों पर ही संतोष करना पड़ा.


प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी यही कहानी दोहराई गई है. बीते चुनाव में बीजेपी को यहां की सात में से छह सीटों पर कब्जा जमाया था लेकिन इस बार उसे चार सीटों पर जीत हासिल हुई. उज्जैन में पिछली बार बीजेपी ने सभी सात सीटें जीती थीं लेकिन इस बार उसकी सीटें घटकर तीन हो गईं.


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जीएसटी, एससी-एसटी एक्ट और आरक्षण पर बयानबाजी से भी हुआ नुकसान


इन पांच शहरी क्षेत्रों को देखें तो यहां की 51 सीटों में बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले 13 सीटों का नुकसान हुआ है. अगर ये 13 सीटें बीजेपी जीत जाती तो राज्य की तस्वीर कुछ और होती. इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी को एससी-एसटी एक्ट, आरक्षण और जीएसटी की वजह से भी खासा नुकसान हुआ. जहां एक ओर प्रदेश का व्यापारी वर्ग जीएसटी को लेकर नाराज दिखा तो वहीं सामान्य वर्ग भी आरक्षण और एससी-एसटी एक्ट को लेकर बीजेपी से दूर चला गया. ऐसा भी नहीं है कि इस वर्ग ने कांग्रेस का साथ दिया है. बल्कि नतीजों का ट्रेंड बताता है कि बीजेपी से नाराज वोटरों ने नोटा का साथ दिया. जैसा कि वो पहले से ही कह रहा था. एमपी में 5 लाख 42 हजार 295 वोर्टस ने नोटा का विकल्प चुना.


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