लखनऊ: समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन करीब-करीब तय माना जा रहा है. हालांकि ये बहुत साफ नहीं है कि सीटों का बंटवारा किस तरह होगा. 2014 के चुनाव में समाजवादी पार्टी को 5 सीटें मिली थीं और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं. जबकि बीएसपी और आरएलडी खाता तक नहीं खोल पाई थीं.


फूलपुर उपचुनाव के लिए एसपी-बीएसपी ने हाथ मिलाया तो बीजेपी को पटखनी दे दी. इसके बीद यही फॉर्मूला कैराना में आजमाया गया जो सफल रहा. इस जीत से एसपी-बीएसपी समझ गईं कि अगर जीत हासिल करनी है तो मिल कर लड़ना होगा.

अखिलेश ने मायावती से मुलाकात की और फिर कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथग्रहण के मौके पर भी वो साथ नजर आए. इस मौके पर सोनिया गांधी भी वहां थीं. माना जा रहा है कि गठबंधन के लिए अखिलेश यादव ने खासी मशक्कत की.



उन्होंने कुछ मौकों पर यह भी कहा कि अगर सीट बंटवारे में एसपी को कुछ सीटें छोड़नी भी पड़ीं तो वे तैयार हैं लेकिन गठबंधन जरूरी है. एसपी सुप्रीमो, बीजेपी पर खासे हमलावर भी हैं और 2017 के बाद से तो वे चुनावी तैयारी में जुटे हुए हैं.

हाल ही में मायावती ने राहुल गांधी पर बयान देने वाले नेता को पार्टी से निकाला तो इसके राजनीतिक मायने भी निकाले गए थे. 2014 से ही मायावती, बीजेपी के खिलाफ तीखे तेवर अपनाए हुए हैं और लगातार दलितों से जुड़े मुद्दे उठा रही हैं.



बीएसपी धीरे-धीरे महागठबंधन की सबसे महत्वपूर्ण पार्टी बन गई है. पार्टी के सम्मेलनों में कार्यकर्ताओं ने मायावती को पीएम उम्मीदवार बनाने की मांग की है. जिलों से लेकर मंडल तक और सेक्टर से लेकर बूथ तक की तैयारी बीएसपी कर रही है.

माना जा रहा है कि मायावती इस बार लोकसभा चुनाव भी यूपी की अंबेडकर नगर या बिजनौर की नगीना सीट से लड़ सकती हैं. पार्टी ने सोशल मीडिया पर आने से तो इंकार किया है लेकिन बीएसपी के नेता अपने क्षेत्रों में वोटर के साथ सीधे संपर्क करते नजर आ रहे हैं.



बागपत सीट को पार्टी का गढ़ माना जाता था लेकिन 2014 में अजित सिंह यहां से हार गए थे और मथुरा से जयंत चौधरी भी हार गए थे. कैराना की जीत से आरएलडी को भी बल मिला है और जयंत चौधरी एक बार फिर से जाटलैंड में अपनी पकड़ बनाने के लिए यात्राओं में जुट गए हैं.

बात अगर कांग्रेस की करें तो राज बब्बर की मेहनत दिखने लगी है. पिछले दिनों पार्टी ने नेताओं की परीक्षा ली और नए प्रवक्ता भी तैनात किए. हर मुद्दे पर अब कांग्रेस अपना पक्ष रख रही है और जिला स्तर पर धरना-प्रदर्शन भी बढ़े हैं. कांग्रेस, बीजेपी को हराने और यूपी में अपनी साख बचाए रखने के लिए महागठबंधन का हिस्सा बनेगी.