लखनऊ: आजम खान और अमर सिंह की अदावत जगजाहिर है, लेकिन इस अदावत की वजह क्या है? आजम और अमर क्यों एक दूसरे को पसंद नहीं करते? वो कौन सा कारण है जिसने इन दोनों के बीच दरार डाल दी? सवाल ये भी है कि क्या इस दुश्मनी की कीमत समाजवादी पार्टी को चुकानी पड़ी है?


अमर सिंह कोलकाता में पढ़े थे और वहीं बिजनेस कर रहे थे. यूपी की राजनीति में वो इत्तेफाक से आए थे. मुलायम सिंह के साथ उनकी जोड़ी जम गई और ऐसी जम गई कि संजय दत्त से लेकर अमिताभ बच्चन तक समाजवादी खेमे में नजर आने लगे थे. हालांकि राजब्बर के पार्टी छोड़ने की वजह अमर सिंह को माना जाता है.


दूसरी ओर आजम खान, रामपुर के नवाब परिवार के खिलाफ खड़े होने के लिए जाने जाते थे. नवाब परिवार उन्हें हमेशा इग्नोर करता रहा लेकिन आजम की ताकत बढ़ती गई. यूपी भर के मुसलमानों के बीच उनका कद और पहचान बहुत बढ़ गयी थी. समाजवादी पार्टी में वो नंबर दो पर थे और मुलायम के सबसे खास माने जाते थे.


सब कुछ ठीक ही चल रहा था. मुलायम, राष्ट्रीय राजनीति में कदम बढ़ा रहे थे और समाजवादी पार्टी के पास यूपी में कई कद्दावर नाम, चेहरे थे. रामगोपाल यादव पार्टी के लिए थिंक टैंक थे तो जमीनी स्तर पर शिवपाल पार्टी को संभालते थे, आजम खान मुसलमान नेता के रूप में पहचान बना रहे थे तो अमर सिंह मुश्किलों को साधने का काम कर रहे थे.


माना जाता है कि तेलुगूदेशम पार्टी की राज्यसभा सांसद रहीं जया प्रदा को रामपुर से लोकसभा चुनाव लड़ाने का फैसला आजम और अमर की अदावत की जड़ में है. दरअसल अमर सिंह ही जया प्रदा को समाजवादी पार्टी में लेकर आए थे.



आजम खान रामपुर से नवाब परिवार को लोकसभा चुनाव हराना चाहते थे. 2004 में पार्टी ने जया प्रदा को नूरबानो के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा. उस वक्त आजम और अमर की जोड़ी कमाल दिखा रही थी. आजम भी जया को जिताने के लिए जान लगा रहे थे. लेकिन इसी सबके बीच कुछ ऐसा हुआ जो अमर सिंह और आजम खान के बीच दरार पड़ गई.


जितने मुंह उतनी बातें, सच केवल आजम और अमर ही जानते हैं. नूरबानो ने असरानी और जीनत अमान से प्रचार भी कराया लेकिन जया प्रदा के लिए भीड़ ऐसी उमड़ी कि संभाले नहीं संभली. जया चुनाव जीत गई लेकिन आजम और अमर के बीच तलवारें खिंच गई थीं.


फिर एक दिन वो भी आया जब आजम खान को पार्टी से बाहर निकाल दिया गया. 2009 के लोकसभा चुनाव में आजम खान के विरोध के बावजूद एक बार फिर जया प्रदा रामपुर से सांसद बनीं.  इसी चुनाव में रामपुर में कुछ पोस्टर भी लगे थे जिन्होंने आजम-अमर की दुश्मनी को बढ़ाने का काम किया था.



इस बीच समाजवादी पार्टी में कल्याण सिंह की एंट्री हो गई थी और मुसलमानों का पार्टी से मोहभंग होने लगा था. 2009 के चुनाव के फौरन बाद मुलायम सिंह हालातों को समझ गए. इस चुनाव में पार्टी को 23 सीटें मिली थीं जबकि 2004 में पार्टी को 36 सीटें मिली थीं.


2010 में समाजवादी पार्टी में आजम खान की वापसी हो गई और उन्हें नेता विपक्ष भी बना दिया गया. साल 2010 में ही जया प्रदा को अमर सिंह के साथ पार्टी से निकाल दिया गया. इसके बाद अमर सिंह ने अपने लिए एक नया संगठन बना लिया था.


2011 में कैश फॉर वोट केस में अमर सिंह को जेल भी जाना पड़ा था. 2012 में उनके संगठन ने विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन जीत हासिल नहीं हुई. 2014 में वो राष्ट्रीय लोक दल के बैनर तले लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन जीत हासिल नहीं हो सकी.


2016 में समाजवादी पार्टी में अमर सिंह की वापसी भी हुई. ये वापसी आजम खान को पसंद नहीं आई. अमर सिंह को राज्यसभा भेज दिया गया, दूसरी ओर आजम खान की नाराजगी पार्टी में दिखाई देने लगी. 2017 का चुनाव सिर पर था और रामगोपाल और अखिलेश, अमर सिंह के खिलाफ दिखने लगे थे.


अखिलेश ने अमर सिंह को आखिर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. माना जाता है कि आजम खान और रामगोपाल भी इसी पक्ष में थे. इसके बाद से ही अमर सिंह की नजदीकियां बीजेपी से बढ़ने लगी थीं. वो भगवा कपड़ों में योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण मंच पर भी दिखे थे.


अखिलेश यादव ने कई बार सार्वजनिक मंचों से कहा भी है कि पिता-पुत्र के बीच संबंध खराब कराने की साजिश 'अंकल' की थी. आजम और अमर की इस दुश्मनी से सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को हुआ. अखिलेश और मुलायम के बीच जो हुआ उसे दुनिया ने देखा. आज आजम पार्टी में हैं और अमर सिंह पार्टी के बाहर. भविष्य में क्या होगा भला कौन जानता है.