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55 सालों में दो बार दो देशों में मरा ये इंसान, अब फंसा जांच का पेंच
मामला अवैध कब्जे का है, जिसको लेकर कागजों में मरे हुए इंसान को 55 साल बाद दोबारा मार दिया गया. मामला सामने आने पर दोबारा डेथ सर्टिफिकेट देने वाला वाराणसी नगर निगम अब सवालों के घेरे में है.
वाराणसी: काशी के नेपाली मंदिर और नगर निगम में सरकारी कागजों की बड़ी हेराफेरी सामने आई है. मामला कुछ ऐसा है कि एक इंसान 55 साल में दो बार दो देशों में मरा. इतना ही नहीं दो देशों में मरने वाले इंसान का डेथ सर्टिफिकेट भी जारी हुआ. एक बार नेपाल और दूसरी बार भारत के वाराणसी में हुआ. मामला अवैध कब्जे का है, जिसको लेकर कागजों में मरे हुए इंसान को 55 साल बाद दोबारा मार दिया गया. मामला सामने आने पर दोबारा डेथ सर्टिफिकेट देने वाला वाराणसी नगर निगम अब सवालों के घेरे में है.
मंदिर संचालक समिति के जनरल सेक्रेटरी ने दर्ज कराई थी शिकायत
मामला काशी के ललिता घाट पर स्थित साम्राज्येश्वर पशुपति नाथ महादेव मंदिर का है. मंदिर संचालक समिति के जनरल सेक्रेटरी गोपाल प्रसाद अधिकारी ने बीती 20 जनवरी 2018 को वाराणसी कमिश्नर के यहां एक शिकायत दर्ज कराई. कमिश्नर से अपनी शिकायत में उन्होंने कहा कि एक साधु जिसका नाम गजानंद सरस्वती ऊर्फ गुलाब यादव है, उसने मंदिर की देखरेख के लिए भेजे गए श्रीराम परशुराम वैद्य को अपना पिता बताया है.
गजानंद सरस्वती ने फर्जी दस्तावेज के सहारे नगर निगम में उनके निधन की तारीख 30 जनवरी 2002 दर्ज करवाई और उनका मृत्यु प्रमाणपत्र बनवा लिया. जबकि श्रीराम परशुराम वैद्य की मृत्यु नेपाल में 27 सितम्बर 1947 को हुई थी. गोपाल अधिकारी ने इस बाबत नेपाल सरकार का एक पत्र भी कमिश्नर को सौंपा. इस पत्र में श्रीराम परशुराम वैद्य के नेपाल से भारत आने और वापस जाने की तारीख के साथ ही उनके निधन की तारीख भी दर्ज है. उन्होंने बताया कि श्रीराम परशुराम वैद्य को नेपाल सरकार पेंशन भी देती थी, इसलिए उसके डाक्यूमेंट्स में उनके निधन की तारीख भी दर्ज की गई है.
मांगी थी मंदिर में रहने की अनुमति
गोपाल अधिकारी ने बताया कि साम्राज्येश्वर पशुपति नाथ महादेव मंदिर ट्रस्ट की स्थापाना 1998 में हुई थी और इसे साल 2000 में रजिस्टर कराया गया. उस समय वाराणसी के डीएम अवनीश कुमार अवस्थी थे और उन्होंने मंदिर की चाभी अधिकारिक तौर पर ट्रस्ट को सौंपी थी. इस बीच गजानंद सरस्वती ऊर्फ गुलाब यादव ने ट्रस्ट से विनती कि वह एक साधु है और उसके पास रहने की कोई जगह नहीं है. इस लिए उसे मंदिर में ही रहने दिया जाए. बात तत्कालीन नेपाल के कार्यवाहक राजदूत मदन भट्टराई तक पहुंची तो उन्होंने गजानंद सरस्वती को वहां रहने और मंदिर के भंडारे में भोजन करने की अनुमति दे दी.
जाली मृत्यु प्रमाण पत्र चैयार कराने का है मामला
गोपाल अधिकारी का आरोप है कि इसके बाद गजानंद सरस्वती ने नगर निगम के एक क्लर्क से मिलकर श्रीराम परशुराम वैद्य का जाली मृत्यु प्रमाण पत्र तैयार करवा लिया. इस मृत्यु प्रमाण पत्र में उनकी मृत्यु की तारीख 30 जनवरी 2002 दर्ज है. इस आधार पर गजानंद ने मंदिर के निचले हिस्से पर कब्जा कर लिया कि श्रीराम परशुराम वैद्य उसके पिता थे और उन्होंने ही यह जगह उसे रहने के लिए सौंपी थी. गोपाल अधिकारी का कहना है कि गजानंद के आधार कार्ड पर उनके पिता का नाम मौनी बाबा दर्ज है, जबकि उसने अन्य कागजात में श्रीराम परशुराम वैद्य को अपना पिता बताया है. वहीँ गजानंद सरस्वती अब भी इसी बात पर कायम हैं कि श्रीराम परशुराम वैद्य उनके पिता थे और नेपाली मंदिर में रहने की जगह उन्हें विरासत में मिली है.
नगर स्वास्थ्य अधिकारी समेत कई कर्मचारी कर रहे हैं मामले की जांच
इस मामले में कमिश्नर के आदेश पर नगर आयुक्त ने नगर स्वास्थ्य अधिकारी समेत कई कर्मचारियों को जांच पर लगाया. जांच में पता लगा कि नगर निगम वाराणसी से मृत्यु प्रमाणपत्र तत्कालीन वैक्सीनेटर ऋषिकांत शर्मा ने जारी किया था. ऋषिकांत फिलहाल भेलूपुर जोन में जन्म-मृत्यु चौकी पर तैनात है. बीते चार महीने से जांच चलती रहने के बाद भी निगम के अधिकारी अभी सच्चाई का पता नहीं लगा सके हैं. मामला अंतर्राष्ट्रीय होने के चलते नगर आयुक्त डा. नितिन बंसल ने वाराणसी के एसएसपी आरके भारद्वाज को पत्र लिखकर पूरे मामले की जांच पुलिस और इंटेलिजेंस से कराने को कहा है. पुलिस जांच की बात सामने आने पर नगर निगम कर्मियों में अफरा-तफरी मची हुई है.
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