नई दिल्ली: 2019 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबले के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) साथ आ चुकी है. यह गठबंधन 25 साल बाद बना है. इसका ऐलान खुद मायावती और अखिलेश यादव ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर किया. इस दौरान मायावती 25 साल पहले की उस घटना का जिक्र करना नहीं भूली जो समाजवादी पार्टी से दूरी की वजह बनी थी.


उन्होंने करीब 30 मिनट के प्रेस कॉन्फ्रेंस में दो बार गेस्ट हाउस कांड का जिक्र किया. उन्होंने अपने बयान की शुरुआत में कहा, ''हमने बीजेपी को रोकने के लिए पहले भी गठबंधन किया था. ये गठबंधन कुछ गंभीर कारणों से ज्यादा दिनों तक नहीं चला. लेकिन अब देश में जनहित को 2 जून 1995 के लखनऊ गेस्ट हाउस कांड से ऊपर रखते हुए हमने चुनावी समझौता करने का फैसला किया है.''


मायावती ने आगे कुछ मिनट बाद कहा, ''बीएसपी-एसपी साथ लड़ रही है. बीजेपी को रोक दिया जाएगा. बीजेपी तानाशाही वाले रवैये से गरीब-मजदूरों का हाल बुरा है. जनता के हितों में लखनऊ गेस्ट हाउस कांड को दरकिनार करके सबसे बड़े राज्य में गठबंधन करके चुनाव लड़ने का एलान किया है.''


मायावती के बाद अखिलेश बोलने आए. उन्होंने कहा कि मायावती का सम्मान मेरा सम्मान है. अगर कोई नेता मायावती का अपमान करता है तो एसपी कार्यकर्ता समझ लें कि वह मायावती का नहीं बल्कि मेरा अपमान है.


आखिर क्या है लखनऊ गेस्ट हाउस कांड?
25 साल पुरानी बात है. पिछले 25 सालों में समाजवादी पार्टी और बीएसपी में दोस्ती तो दूर दोनों के बीच दुश्मनी ऐसी थी कि मायावती, मुलायम सिंह का नाम लेने से भड़क जाती थीं. और मुलायम सिंह, मायावती का नाम लेना पसंद नहीं करते थे. इसकी बानगी तब स्पष्ट तौर पर देखने को मिली थी जब लालू यादव ने बिहार महागठबंधन की तर्ज पर विधानसभा चुनाव से पहले मायावती और मुलायम को साथ आने की सलाह दी. इस सलाह पर मायावती भड़क उठी. उन्होंने गेस्ट हाउस कांड का जिक्र करते हुए लालू यादव की सलाह को खारिज कर दिया.


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दरअसल, 2 जून 1995 को मीराबाई गेस्टहाउस में मायावती के साथ समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ऐसी अभद्रता की. जिसे वो कभी भूल नहीं पायीं. कांशीराम ने मुलायम सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. मायावती, विधायकों के साथ लखनऊ के मीराबाई गेस्टहाउस के कमरा नंबर 1 में थीं. अचानक समाजवादी पार्टी समर्थक गेस्टहाउस में घुस आए. मायावती से अभद्रता की, अपशब्द कहे. खुद को बचाने के लिए मायावती कमरे में बंद हो गईं. ये जख्म वो सालों तक भूल नहीं पाईं. जब-जब दोस्ती की बात आयी तो जख्म हरे हो गये.


लालू की सलाह पर मायावती ने कहा, ''जिस समय मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने मेरे ऊपर जानलेवा हमला करवाया. तो यदि यही हमला लालू यादव की बहन बेटी के ऊपर होता तो मैं समझती हूं कि वो कभी ये सलाह नहीं देता कि मुलायम सिंह यादव के साथ जाना चाहिए.''


ये बात मायावती की है. मुलायम सिंह यादव तो मायावती का नाम भी लेने से बचते रहे. पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि जिसका (मायावती) का नाम आप ले रहे हैं मैं उसका नाम भी नहीं लेता हूं.


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समाजवादी पार्टी में मुलायम युग खत्म हो चुका है. अखिलेश के हाथों में पार्टी की कमान है. अब इसे सिर्फ इतिहास मानकर मायावती, अखिलेश के साथ जा चुकी है. बुआ-बबुआ के स्वागत में लखनऊ की सड़कें पोस्टरों से भरी है. दोनों के फोटो के साथ 'सपा-बसपा आई है. नई क्रांति लाई है' जैसे नारे लिखे हैं. अखिलेश और मायावती के सामने बीजेपी की चुनौती है. दोनों ने पिछले पांच सालों में जनाधार खोए हैं. अब गठबंधन के सहारे पुरानी जमीन तैयार करने की कोशिश है.


क्यों हुआ हमला?
मुलायम सिंह ने 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया. इसके एक साल बाद हुए चुनाव से पहले बीएसपी के साथ एसपी ने रणनीतिक समझौते के तहत गठबंधन किया. मुलायम सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी. दोनों पार्टियों ने बीजेपी को करारी शिकस्त दी. 1995 तक सरकार चली.


इसी बीच कई मुद्दों पर कांशीराम और मुलायम सिंह के रिश्ते में कड़वाहट आ गई. कांशीराम ही बीएसपी के संस्थापक थे और उनके कहने पर मायावती ने एसपी से अपना गठबंधन तोड़ दिया. इस वजह से मुलायम सिंह यादव की सीएम की कुर्सी छिन गई. जिसके बाद गुस्साए समर्थकों ने मायावती पर हमला कर दिया. इस हमले के बाद कभी सरकारी कार्यक्रम में भी मायावती और मुलायम साथ नजर नहीं आए.


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