मेरठ: हजारों अगूंठाटेक हुए क्वालीफाईड, पुलिस ने नामी संस्थाओं की डिग्रियों समेत पकड़ा गैंग
पुलिस ने छापे में डेढ़ सौ से ज्यादा फर्जी मार्कशीट और डिग्रियां भी बरामद की है जो नामचीन शिक्षाबोर्ड्स और विश्वविद्यालयों की है. पुलिस ने इस धंधे में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रिक डिवाइसों के साथ 5 बदमाशों को भी गिरफ्तार किया है.
मेरठ:अनपढ़ों को डिग्रियों की दरकार हो तो मेरठ आइए..मेरठ पुलिस ने देश के आधा दर्जन राज्यों की विश्वविद्यालय और बोर्ड्स की फर्जी डिग्रियां बेचने वाले गिरोह का पर्दाफाश किया है. पुलिस ने छापे में डेढ़ सौ से ज्यादा फर्जी मार्कशीट और डिग्रियां भी बरामद की है जो नामचीन शिक्षाबोर्ड्स और विश्वविद्यालयों की है. पुलिस ने इस धंधे में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रिक डिवाइसों के साथ 5 बदमाशों को भी गिरफ्तार किया है.
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कैसे खुला फर्जी डिग्री वाले गिरोह का खेल
एक छात्र ने कुछ दिन पहले मेरठ के एसपी सिटी कुमार रणविजय सिंह से शिकायत की थी कि रोहटा रोड के निवासी उमाशंकर ने उसे डिग्री दिलाने के नाम पर हजारों रुपए ठग लिए हैं. पुलिस की शुरूआती तफ्तीश में पता चला कि उमाशंकर किसी कालेज का प्रवक्ता या बाबू नहीं, फर्जी डिग्री बनाने वाले गैंग का सरगना है. पुलिस ने जाल बिछाया और उसके घर पर छापा मारकर उसे गिरफ्तार कर लिया. तलाशी में डेढ़ सौ ज्यादा तैयार मार्कशीट और डिग्रियां मिली है. इसके अलावा मार्कशीट और डिग्रियां तैयार करने के लिए इस्तेमाल होने वाले प्रिन्टर, तमाम शासनादेश और लैपटॉप भी बरामद किया गया है.
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कैसे डिग्रियां और मार्कशीट तैयार करता है गैंग
फर्जी डिग्रियां तैयार करने के लिए इस गैंग ने अलग-अलग विश्वविद्यालय और शिक्षाबोर्ड्स की शीट्स तैयार कराई हुई है. वेरीफिकेशन में डिग्री या मार्कशीट फर्जी न मिल जाए, इस बात का ख्याल करते हुए गैंग के सदस्य संबधित शिक्षाबोर्ड में उस नाम का डेटाबेस तलाशते है जिसके नाम पर फर्जी डिग्री जारी करनी होती है. डेटाबेस में नाम मिल जाने पर केवल दो चीजें बदल दी जाती है. पहला पिता का नाम और दूसरा जन्मतिथि. नौकरी के वक्त वेरीफिकेशन के लिए जाने वाली डिग्री में नाम के अलावा अनुक्रमांक और एनरॉलमेंट नंबर ही चेक किए जाते हैं. ये दोनों चीजें भी डेटाबेस के मुताबिक होती है और इस तरह पता नहीं लग पाता की डिग्री फर्जी है.
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शिक्षाबोर्ड्स का डेटा बेस गिरोह तक कैसे पहुंचा
गैंग का नेटवर्क और जड़ें देश के तमाम शिक्षाबोर्ड्स में कितनी गहरी है इस बात का अंदाजा इस तरह लगाया जा सकता है कि गिरोह के पास उत्तर-प्रदेश माध्यमिक शिक्षाबोर्ड का कई बरसों का डेटाबेस मिला है. यह डेटाबेस बोर्ड में इस्तेमाल किया हुआ है और अफसरों-कर्मचारियों से सांठगांठ के बाद गैंग ने इसे हासिल किया है. इसी तरह सीबीएसई बोर्ड से जुड़ा डेटाबेस भी गैंग के पास है. कई विश्वविद्यालयों के प्रोस्पेक्टस भी इस गैंग के पास से बरामद किए गए हैं.
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इन शिक्षाबोर्ड और विश्वविद्यालयों की फर्जी डिग्रियां हुई है बरामदगैंग के पास से बरामद डिग्रियों में उत्तर-प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, उत्तराखंड माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और झारखंड स्टेट ओपन स्कूल शामिल है. इसके अलावा मेरठ के तीन प्रमुख विश्वविद्यालय सुभारती विश्वविद्यालय, शोभित यूनीवर्सिटी और चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय की डिग्रियां और मार्कशीट्स मिली है. मेरठ से बाहर की सनराइज यूनिवर्सिटी, आईएफटीएम यूनीवर्सिटी, गुरूगोविंद सिंह यूनीवर्सिटी, मानवभारती यूनीवर्सिटी और महात्मागांधी प्रोद्योगिकी एवं प्रबंधन संस्थान की डिग्रियां भी बरामद की गई है. मेरठ के चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय की फर्जी डिग्रियां और मार्कशीट इस गैंग ने बंपर तरीके से बांटी है.
गैंग का सरगना है एनएसयूआई नेता और पीएचडी होल्डर
इस गैंग का एक बड़ा कार्यालय गाजियाबाद के संजयनगर में भीम साइबर कैफे के नाम से चलाया जा रहा है. पुलिस की मानें तो इस कैफे का संचालक रूपचंद इस गैंग के बड़े किरदारों में शामिल है. उमाशंकर कांग्रेस पार्टी की छात्र शाखा एनएसयूआई का उत्तर-प्रदेश में प्रदेश सचिव रहा है और मेरठ के चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय से उसने पीएचडी भी कर रखी है.