मेरठ: आधुनिकता की दौड़ में हम कितने भी आगे दौड़ जाएं मगर हमारी परम्पराएं और संस्कृति हमेशा जिंदा रहती है. अपने बुजुर्गो के प्रति समर्पण और त्याग की इसी भावना का दर्शन इस बार पश्चिमी उत्तर-प्रदेश की कांवड़ यात्रा ने कराया है. हरिद्वार से कांवड़ में गंगाजल लाते हुए नेशनल हाईवे-58 पर कुछ ऐसे भी नौजवान नजर आए जो कलयुग के श्रवण कुमार को जीवंत कर रहे थे. इन नौजवानों ने अपने बुजुर्गो को तीर्थ कराने के लिए अपने कंधों पर टांगी कांवड़ में बिठाया और सैकड़ों मील की मुश्किल दूरी तय की.



मां का लाड़ला कांवड़ से मां को करा लाया गंगास्नान


मेरठ के परतापुर के सत्येन्द्र ने श्रावण के पवित्र महीने में अपनी मां को कांवड़ से तीर्थ कराने का संकल्प लिया. 15 दिन पहले सत्येन्द्र अपनी मां को कांवड़ में बिठाकर हरिद्वार के लिए निकला. बहुत कठिनाइयों का सामना करते हुए वह आठ दिन में हरिद्वार पहुंचा और वहां हरि की पैड़ी पर अपनी मां को गंगास्नान कराने के बाद कांवड़ के कलशों में उसने गंगाजल भरा. मां के वजन के बराबर के गंगाजल भरे कलश उसने कांवड़ के एक पलड़े में रखे और दूसरे में अपनी मां को बिठा लिया. इस तरह दोनों पलड़ों का वजन बराबर हो गया और वह अपनी मां को लेकर हरिद्वार से चलकर मेरठ तक पहुंचा.


इंजीनियर राहुल ने श्रवण बनकर दादा-दादी को कराया तीर्थ


मेरठ के ही सरधना इलाके के जगेठी गांव के राहुल ने इस श्रावण महीने में अपने दादा-दादी को कांवड़ से तीर्थ कराने की ठानी और वह कांवड़ में दोनों को बिठाकर 10 दिन पहले हरिद्वार की हर की पैड़ी पहुंच गया. राहुल और उसके परिवार के लोग इस कांवड़ में उसके साथ थे. राहुल ने अपने दादा-दादी को गंगामैया के दर्शन-स्नान कराने के बाद उन्हें कांवड़ में बिठाया और अपनी कांवड़ में गंगाजल भी रखा. राहुल ने कांवड़ के एक पलड़े में 90 वर्षीय दादा छोटे सिंह और दूसरे पलड़े में 86 साल की दादी कश्मीरी को बिठा रखा था. कांवड़ को उठाने में उसके परिवार के लोगों ने भी उसकी मदद की. करीब 9 दिन की यात्रा पूरी करके राहुल और उसके दादा-दादी बुधवार सरधना पहुंचे है. सरधना में आज शिवरात्रि को वह अपने दादा-दादी के हाथों शिवालय में गंगाजल से जलाभिषेक भी कराएगा.



कैरियर की दौड़ के साथ जिंदगी का कर्ज उतारने में भी आगे


सनातन धर्म के अनुसार माता-पिता और पुरखों का ऋण जन्म-जन्मान्तर तक रहता है. श्राद्धपक्ष में हर साल पितृ को पूजा जाता है. पेशे से इंजीनियर राहुल मानते है कि जन्म देने वाले माता-पिता और उनके बुजुर्गो के आशीर्वाद से जीवन की कठिनाईयों से आसानी से पार जाया जा सकता है. जीवन की उन्नति उन्हीं के पुण्यों का प्रताप है. ऐसे में श्रावण मास अपने बुजुर्गो की सेवा के लिए सबसे उत्तम समय है. आज वह जो कुछ है, बुजुर्गो की सेवा का ही फल है. अपनी मां रोशनी देवी को कांवड़ तीर्थ कराने वाले सतेन्द्र भी मां-पिता की सेवा को ईश्वर की आराधना से भी उत्तम मानते हैं. सतेन्द्र कहते हैं कि शिव की कांवड़ इस जन्म में मां-पिता के ऋण को चुकाकर पुन्य कमाने का साधन है. महादेव की आराधना तभी पूर्ण होती है जब बुजुर्गो का आशीर्वाद साथ हो.