झांसी: भीषण गर्मी से हाहाकार मचा हुआ है. आज का तापमान 46.6 डिग्री सेल्शियस रिकॉर्ड किया गया है. हालांकि अभी पारा 47 डिग्री नहीं पहुंचा है. आने वाले एक दो दिन में पारा बढ़ने की संभावना कम है. पिछले दशक से बुंदेलखंड सूखे की समस्या से जूझ रहा है. कामगारों के पास काम नहीं हैं. रोजगार के अवसर नहीं होने की वजह से मजबूर लोग पलायन करने को विवश हैं. पेड़ों के अवैध कटान की वजह से जंगलों से भरे इस भू-भूाग में मानसून सक्रिय नहीं होते हैं. बारिश कम होने के कारण वाटर लेबल खिसकता गया, अब यही गले की फांस बन गया है. जल श्रोत सूख गए हैं. इनके पुनरोद्धार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए तो पानी के लिए हाहाकार मचेगा.
बुंदेलखण्ड पिछले 15 वर्षों से सूखे के चलते भीषण जल संकट से जूझ रहा है. इसके चलते लाखों लोग पलायन कर चुके हैं. तमाम सरकारें आई और चली गईं. सभी ने बुन्देलखण्ड में इस भयावह समस्या का स्थाई हल निकालने की जहमत उठाना या तो पसन्द नहीं किया या फिर उन्हें कुछ समझ नहीं आया. बुन्देलखण्ड के झांसी जनपद में सूखे का दुष्प्रभाव किसी से छुपा नहीं है. सरकार की ओर से कोई कारगर उपाय नहीं किये गए.
वर्षा जल संचय के लिए पौराणिक काल की तकनीक आज से बेहतर
एक रिपोर्ट के आंकड़े बहुत चौंकाने वाले हैं. आश्चर्य तो इस बात का है कि जो आंकड़े हैं उस संबंध में सरकारी महकमे के पास काई जानकारी ही नहीं है. दरअसल बुंदेलखण्ड में कई शासकों ने अलग-अलग समय में राज्य किया. उस समय में इस क्षेत्र ज्यादा भू-भाग पठारी था, जमीन पथरीली और जमीन के नीचे ग्रेनाईट था. फिर भी यहां की आबादी खुशहाल जीवन व्यतीत करती थी. इसके पीछे कारण था चंदेल और बुन्देला राजाओं द्वारा बडे़-बड़े तालाबों का निर्माण कराया जाना. इन तालाबों का निर्माण 10वीं से 16वीं शताब्दी के बीच कराया गया. इनका उपयोग आबादी और पशुओं के पेय जल के लिए किया जाता था. जबकि सिंचाई के लिए अन्य स्रोत भी उपयोग में लाए जाते थे. चंदेल राज्य में निर्मित तालाबों का रख-रखाव बुन्देला शासकों द्वारा 16वीं शताब्दी तक बखूबी किया गया. तत्कालीन समय में सिंचाई के लिए खेत तालाब और कच्चे बांधों का भी प्रयोग किया जाता था. 16वीं सदी में बुन्देला शासकों ने कुछ अन्य प्रकार के तालाबों का भी निर्माण कराया. इन्हें बुन्देली तालाबों की संज्ञा दी गई. इनका उपयोग सिंचाई और मधली पालन के लिए किया जाता था. कभी भी ये जल श्रोत सूखे नहीं थे, बहुत ही कम अवसर आए जब 10-15 साल तक अकाल पड़ा हो.
सरकार ने जल के लिए क्या किया
19वीं सदी के अन्त में सिंचाई विभाग ने इन तालाबों के रख-रखाव की जिम्मेदारी ली और इन तालाबों से सिंचाई और अन्य कार्यों के लिए पानी का वितरण शुरू किया. कुछ नई टंकियों का भी निर्माण कराया गया. दुर्भाग्यवश वर्तमान में इन सभी ऐतिहासिक तालाबों की हालत बेहद दयनीय है. इनमें गाद जमा हो गई है. इनकी सफाई न होने के कारण जल संग्रहण क्षमता कम हो गई. यही वह कारण है कि बुन्देलखण्ड की उपजाऊ जमीन सिंचाई के अभाव में बंजर हो गई है. इन सतही संरचनाओं के क्षतिग्रस्त हो जाने के चलते यहां की आबादी पूरी तरह से भूगर्भ जल पर निर्भर है. इसके चलते जल स्तर में भी लगातार गिरावट आ रही है.
जनपद की भौगोलिक स्थिति
जनपद को 8 विकास खण्ड व 5 तहसीलों में बांटा गया है. सूखे की चपेट में मंडल के तीनों जनपदों में से झांसी की स्थिति दयनीय है. 8 विकासखंडों में से बामौर, गुरसरांय, मऊरानीपुर और चिरगांव सर्वाधिक प्रभावित बताए गए हैं. जनपद के सभी 839 राजस्व गांवों में 721 गांव ऐेसे हैं जिनमें पुराने या नए तालाब और जल स्रोत हैं.
कुल 241 चंदेल-बुन्देला तालाब, 94 पर दबंग काबिज
जनपद के सभी 8 ब्लॉकों में कुल 241 चंदेल कालीन और बुन्देले राजाओं द्वारा निर्मित तालाब आज भी मौजूद हैं. आश्चर्यजनक यह है कि सरकारी महकमे में इन तालाबों का कोई विवरण ही उपलब्ध नहीं है. यही नहीं इसके अलावा ऐसे ऐतिहासिक 94 तालाबों पर लोगों ने कब्जा कर रखा है और इसका सरकारी महकमे में कोई लेखा-जोखा नहीं है.
जनपद में कुल जल स्रोतों की संख्या
जनपद में सर्वे के अनुसार इस समय पारम्परिक एवं नए जल स्रोतों की संख्या 1499 है। इनमें 241 तालाब चंदेली-बुंदेली, 670 नए तालाब, 401 चैकडेम व 187 मिट्टी की बंधियां हैं।
संरचनाओं की वर्तमान स्थिति
इन जल स्रोतों में से 94 तालाबों पर लोगों ने कब्जा कर रखा है. 173 तालाबों को उपयोग करने के लिए न के बराबर रिपेयरिंग की आवश्यकता है. 606 तालाबों को वृह्द स्तर पर ठीक कराना जरूरी बताया जा रहा है. तो वहीं 727 ऐसी संरचनाएं हैं जो प्रयोग के लिए बेहतर हैं.
जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने बताया कि परमार्थ समाज सेवी संस्थान और डब्ल्यू.आर. जी के सहयोग से किए गए सर्वे में जो आंकड़े निकलकर सामने आए हैं, वे बेहद चैकाने वाले हैं. यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे बुंदेलखण्ड में इतने सारे जल स्रोत होने के बावजूद लोग प्यास से तड़प रहे हैं. यदि इन स्रोतों को जीवित कर उनकी सफाई आदि करते हुए मरम्मत करा दी जाए तो पेयजल सुविधा के साथ करीब 15 हजार हेक्टेयर भूमि को हम सिंचित बना सकते हैं. फिलहाल इन आंकड़ों को शासन को सौंप दिया गया है और शासन से इन जल स्रोतों पर कार्य करने का सुझाव दिया गया है.
मौसम विशेषज्ञ कहते हैं
मौसम विज्ञानी डॉक्टर मुकेश सिंह ने बताया कि झांसी का पारा 46.6 डिग्री सेल्शियस रिकॉर्ड किया गया है.अभी एक दो दिन पारा बढ़ेगा नहीं.
झांसी: भीषण गर्मी से पारा 46 के पार, पानी के लिए लोगों में हाहाकार
एबीपी न्यूज
Updated at:
28 May 2018 06:15 PM (IST)
बुंदेलखण्ड पिछले 15 वर्षों से सूखे के चलते भीषण जल संकट से जूझ रहा है. इसके चलते लाखों लोग पलायन कर चुके हैं. तमाम सरकारें आई और चली गईं. सभी ने बुन्देलखण्ड में इस भयावह समस्या का स्थाई हल निकालने की जहमत उठाना या तो पसन्द नहीं किया या फिर उन्हें कुछ समझ नहीं आया.
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