गोरखपुर: महराजगंज जिले की नौतनवां सीट से निर्दलीय विधायक अमनमणि त्रिपाठी ने 30 जून को गोरखपुर के एक मैरेज हॉल में दूसरी शादी कर ली. बाहुबली विधायक अमनमणि त्रिपाठी के ऊपर पहली पत्नी की हत्या का आरोप है. इसकी जांच सीबीआई कर रही है.
पहली पत्नी की हत्या के आरोप में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. उसके बाद वे जमानत पर जेल से छूटे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी और उनके पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के नाम पर वीआईपी पास बनवाकर बद्रीनाथ धाम जाने के मामले के तूल पकड़ने के कारण वे एक बार फिर चर्चा में आ गए.
गोरखपुर के रॉयल ऑर्किड पैलेस में 30 जून को नौतनवां के बाहुबली निर्दल विधायक अमनमणि त्रिपाठी ने ओशिन पाण्डेय के साथ 7 फेरे लेकर सात जन्मों तक साथ निभाने की कसमें खाईं. अमनमणि ने जहां गोल्डन रंग का कुर्ता और सफेद धोती पहनी थी, तो वहीं ओशिन लाल जोड़ा पहने हुए थी.
दोनों ने एक-दूसरे के गले में वरमाला डालकर सात फेरे लिए. इसके बाद दोनों ने बड़ों का आशीर्वाद लिया. वैश्विक महामारी के बीच अनलॉक-1 में कुछ खास मेहमानों के बीच ये शादी सादगी के साथ सम्पन्न हुई.
कौन हैं बाहुबली विधायक अमनमणि त्रिपाठी?
नौतनवां से निर्दलीय विधायक अमनमणि त्रिपाठी कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व मंत्री और बाहुबली विधायक रहे अमरमणि त्रिपाठी के पुत्र हैं. गोरखपुर के दुर्गाबाड़ी रोड पर भी इनका आवास है.
नौतनवां की लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से अमरमणि त्रिपाठी चुनाव लड़ते रहे हैं. उसके बाद इस सीट को खत्म कर दिया गया. इसकी जगह नौतनवां को विधानसभा घोषित किया गया. साल 2017 के यूपी चुनाव में मोदी लहर के बीच अमनमणि त्रिपाठी ने 16 हजार वोटों से जीत दर्ज की.
विवादों से पिता-पुत्र का पुराना नाता
अमनमणि त्रिपाठी पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के बेटे हैं. पहली पत्नी सारा की संदिग्ध मौत के मामले में आरोपी हैं. साल 2012 के चुनाव में नौतनवां सीट से सपा के टिकट पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वहीं 2017 में सीबीआई की गिरफ्त में आने से मणि परिवार को जबरदस्त झटका लगा. सपा के सीएम अखिलेश यादव ने 2017 में अमनमणि त्रिपाठी को दागदार छवि वाला बताते हुए इनका टिकट काट दिया था. उसके बाद निर्दलीय चुनाव लड़कर उन्होंने जीत हासिल की.
अमन राजनीति में आने के साथ ही विवादों में घिरते गए. उसके बाद उन पर पत्नी की संदिग्ध मौत में हत्या का आरोप लगा और उन्हें जेल भी जाना पड़ा. फिलहाल मामले की जांच सीबीआई कर रही है.
सारा मर्डर केस में जेल में थे अमनमणि त्रिपाठी
9 जुलाई 2015 को अमनमणि अपनी पत्नी सारा के साथ लखनऊ से दिल्ली स्विफ्ट कार से जा रहे थे. फ़िरोज़ाबाद में सड़क दुर्घटना में सारा की मौत हो गई. सूचना पर पहुंची फिरोजाबाद पुलिस के लिए वह सड़क दुर्घटना का एक सामान्य मामला ही था. सिरसागंज-इटावा राजमार्ग पर एक साइकिल सवार लड़की को बचाने में स्विफ्ट कार सड़क से पांच फीट नीचे जाकर पलट गई थी.
कार में सवार चालक को मामूली सी खरोंच आई थी. पीछे की सीट पर बैठी युवती की मौत हो चुकी थी. दोपहर को हुई इस दुर्घटना के बाद ढाई बजे युवती का शव जिला अस्पताल पहुंचा. चार बजे तक उसका पोस्टमार्टम भी हो गया. यहां तक सब कुछ सामान्य रहा. लेकिन इसी दौरान लखनऊ में गृह विभाग के सचिव एसके रघुवंशी को सूचना मिली कि सड़क दुर्घटना में मरने वाली उनकी भांजी सारा सिंह है और गाड़ी चला रहा व्यक्ति उसका पति अमनमणि त्रिपाठी.
मामला गृह विभाग के संज्ञान में आते ही अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए. इसकी वजह यह थी कि अमनमणि त्रिपाठी के खिलाफ अदालत के आदेश पर काफी पहले से गिरफ्तारी का गैरजमानती वारण्ट जारी हो गया था. ऐसी स्थिति में पत्नी को खो चुके अमनमणि को गिरफ्तार करना पुलिस की मजबूरी हो गई. क्योंकि गिरफ्तारी न होने पर मामले का तूल पकड़ना तय हो गया था. न चाहते हुए भी पुलिस ने अमनमणि को गिरफ्तार कर नाटकीय ढंग से रात में ही पत्नी के शव के साथ लखनऊ पहुंचा दिया गया. सारा का शव लखनऊ पहुंचते-पहुंचते यह चर्चा भी शुरू हो गई कि सारा की मौत एक सामान्य सड़क दुर्घटना नहीं.
उधर, सारा की मां ने इस पूरे मामले में नारको टेस्ट और सीबीआई जांच की मांग कर अमनमणि की मुश्किलें बढ़ा दी. वे इस मौत के पीछे अमन और सारा की बेमेल शादी और दोनों के बीच के तनावपूर्ण रिश्तों को बड़ा कारण मानती रही. इस मामले को लेकर सारा की मां लगातार जांच की मांग करती रहीं.
ठेकेदार को बंधक बनाने के मामले में भगौड़े रह चुके हैं अमनमणि त्रिपाठी
छह अगस्त 2014 को गोरखपुर के एक ठेकेदार ऋषि पाण्डे ने लखनऊ के कैंट थाने में अमनमणि त्रिपाठी और उसके साथियों के खिलाफ अपहरण, जानलेवा हमले और रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने अमन के दो साथियों को तो गिरफ्तार कर लिया, लेकिन पैसे और राजनीतिक सम्पर्कों की ताकत के चलते अमनमणि लगातार कानून के शिकंजे से बचता रहा. ऋषि पाण्डे को इस दौरान कई तरह से धमकियां भी दी गईं. आखिरकार उन्होंने डर के मारे गोरखपुर शहर ही छोड़ दिया. उधर, सपा सरकार में अमनमणि को लगातार सत्ता का संरक्षण मिलता रहा. सीएम योगी से करीबियों को लेकर भी वे लगातार चर्चा में बने रहे.
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