नई दिल्ली: एससी/एसटी एक्ट में बड़े बदलाव संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर आई मोदी सरकार अब अपने ही सहयोगियों के सवालों के घेरे में आ गई है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के दलित और आदिवासी सांसदों का कहना है कि कुछ मुद्दों को लेकर उनके समुदाय में चिंताएं और आशंकाएं हैं और इन्हें जल्दी दूर करना जरूरी है.


लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के अध्यक्ष और मोदी सरकार में मंत्री रामविलास पासवान के घर पर एनडीए के दलित सांसदों की बैठक हुई जिसमें एससी/एसटी अत्याचार निरोधक कानून और सरकारी नौकरियों में प्रोमोशन में आरक्षण जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई.


बैठक में एससी/एसटी एक्ट पर फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस आदर्श कुमार गोयल को एनजीटी अध्यक्ष बनाये जाने पर आपत्ति जताई गई. दलित नेताओं ने गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाए और कहा कि उन्हें एनजीटी अध्यक्ष पद से हटाया जाना चाहिए. जस्टिस गोयल छह जुलाई को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे और उसके बाद सरकार ने उन्हें एनजीटी अध्यक्ष नियुक्त किया था. एनडीए के सांसदों का कहना है कि जस्टिस गोयल की नियुक्ति से दलितों के बीच अच्छा संदेश नहीं गया. इससे चुनावों में नुकसान हो सकता है.


रामविलास पासवान के बेटे और सांसद चिराग पासवान ने कहा है कि जस्टिस गोयल को एनजीटी अध्यक्ष पद से हटाने के लिए सरकार से अपील करेंगे. चिराग ने बताया कि एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर कई दलित व आदिवासी संगठनों ने आगामी नौ अगस्त को बड़ा आंदोलन करने की धमकी दी है. उन्होंने कहा, ''एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर अध्यादेश जारी करना चाहिए ताकि नौ अगस्त का आंदोलन रोका जा सके.''


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राम विलास पासवान के घर पर एनडीए के दलित और आदिवासी सांसदों की बैठक में रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान, अर्जुन मेघवाल, रामदास आठवले, विनोद सोनकर (अध्यक्ष, बीजेपी एससी मोर्चा), सावित्री फूले समेत 25 सांसद मौजूद थे. बैठक के बाद रामविलास पासवान ने कहा कि सभी सांसद जल्द ही पीएम से मिलकर या उन्हें एक ज्ञापन देकर अपनी चिन्ताओं से अवगत कराएंगे. पासवान ने न्यायपालिका में दलितों और आदिवासियों के लिए आरक्षण की मांग करते हुए भारतीय न्यायिक सेवा के गठन की मांग की.





जस्टिस गोयल की नियुक्ति पर सवाल क्यों?
इसी साल 20 मार्च को जस्टिस गोयल और जस्टिस उदय उमेश ललित की पीठ ने एससी/एसटी एक्ट में बड़ा बदलाव करते हुए आदेश दिया था कि किसी आरोपी को दलितों पर अत्याचार के मामले में प्रारंभिक जांच के बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. पहले केस दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी का प्रावधान था.


आदेश के मुताबिक, अगर किसी के खिलाफ एससी/एसटी उत्पीड़न का मामला दर्ज होता है, तो वो अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकेगा. अगर कोर्ट को पहली नज़र में लगता है कि मामला आधारहीन है या गलत नीयत से दर्ज कराया गया है, तो वो अग्रिम जमानत दे सकता है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग की आशंका के मद्देनजर उनकी गिरफ्तारी से पहले उनके विभाग के सक्षम अधिकारी की मंज़ूरी होगी. बाकी लोगों को गिरफ्तार करने के लिए ज़िले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) की इजाज़त ज़रूरी होगी.


विपक्षी दलों और दलित चिंतकों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने मजबूती से पक्ष नहीं रखा. जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया. विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार धीरे-धीरे आरक्षण खत्म करना चाहती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलितों ने सड़कों पर आंदोलन किया था. जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी. जिसके बाद केंद्र सरकार ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी. जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने तीन अप्रैल को अपने फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था.



अब विपक्ष और सत्ता पक्ष के दलित नेताओं की मांग है कि सरकार एससी/एसटी एक्ट को पुराने ढंग में लागू करने के लिए अध्यादेश लाए. पिछले दिनों रामविलास पासवान कहा था कि मोदी सरकार अध्यादेश की तैयारी में है.


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