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DEPTH: चुनाव से पहले आपके भीतर बेचैनी पैदा करने वाली जानकारी!
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नई दिल्ली: देश के पांच राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है. अब रोज आपके घर किसी पार्टी का प्रत्याशी हाथ जोड़कर वोट मांगने आएगा. 11 मार्च को नतीजे आएंगे. इसके बाद पता नहीं पांच साल में आपका प्रतिनिधि दर्शन देगा भी या नहीं.
इसीलिए अब मतदान से पहले देश के मतदाता को जगाने वाली खबर हम बता रहे हैं. आज हमारी कोशिश है कि आपको बता सकें वोटर के तौर पर आपकी शक्ति क्या हैं? देश के पांच राज्यों में जब चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है तो आज हमारी कोशिश मतदाता के गौरव को स्थापित करने वाली रिपोर्ट दिखाना है. आपके भीतर बेचैनी पैदा करने की कोशिश होगी, ताकि अगर आप सिर्फ पार्टी, जाति या फिर किसी और हवा हवाई पैमाने के आधार पर अपना वोट दे देते हैं तो अब अपने नेता से सवाल पूछकर ही अपना वोट दें.
चुनावी नतीजों के बाद पांच साल आपने अपने प्रत्याशी को बहुत कोसा होगा, लेकिन आज हमारा सवाल है कि क्या वोट मांगने आए नेता से आप पूछते हैं कि हमारी मां, बहन, बेटी की सुरक्षा की गारंटी वो देगा ?
दस रुपए का बल्ब भी खरीदते हैं तो दुकानदार से आप पूछते हैं कि दो तीन महीने चलने की गारंटी तो है ना? तो क्या पांच साल के लिए जिसे आप अपना विधायक चुनने वाले हैं, क्या उससे कभी पूछा है कि मेरे बेटे को रोजगार मिलेगा कि नहीं ?
सरकार आपको नौकरी देती है तो डिग्री, मार्कशीट देखकर ही रखती है. तो क्या आप इस बार अपने नेता को चुनने से पहले पूछेंगे कि आपका नेता कितना पढ़ा लिखा है ?
बेटे का ब्याह करते हैं तो होने वाली बहू से पूछते हैं आप कि खाना बना लेती हो ना, घर संभाल लोगी ना, तो क्यों नहीं इस बार आप अपने घर वोट मांगने आए नेता से ये भी पूछें कि वो आपकी गली, मोहल्ले, जिले की सूरत बदलने की गारंटी देगा ना ?
जब तक आपको वोट नहीं पड़ता नेता आपको भगवान समझते हैं. जैसे ही आपका वोट पड़ जाता है, नेता खुद भगवान बनकर अंतर्ध्यान हो जाते हैं. इसलिए पांच राज्यों के चुनावों में आप खुद को सिर्फ एक वोट नहीं करिएगा बल्कि लोकतंत्र की असली जीत की चोट करिएगा.
चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही अब उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में नेताओं की बाढ़ आ जाएगी. बड़ी रैलियों के मंच से लेकर आपके घर तक प्रत्याशी हाथ जोड़े आकर खड़े होंगे आपके एक वोट के लिए.
लेकिन आप आज गांठ बांधकर ये बात रख लीजिए कि आप देश के भाग्यविधाता है, इस देश के मतदाता हैं कोई बिजली का खंभा नहीं. इन शब्दों का इस्तेमाल हमें जानबूझकर करना पड़ा है. क्योंकि चुनाव चाहे म्यूनिसिपलिटी का हो या फिर देश का सबसे बड़ा चुनाव लोकसभा. हर इलेक्शन में आपके वोट को सिर्फ विकास का झुनझुना बजाकर जाति-धर्म के जाल में फंसाकर नेता जीत जाते हैं.
जिस बात को हम कह रहे हैं. उसे अब आंकड़ों के चश्मे से देखकर गौर से समझिए. यूपी में कितने बाहुबली?
अगर यूपी की जनता ने वोट देने से पहले ये देखा होता कि उनका प्रत्याशी कहीं गुंडा-बाहुबली-दागी तो नहीं. तो 2012 के चुनाव में यूपी में आधे विधायक ऐसे ना पहुंचते जिन पर हत्या, हत्या का प्रयास, दंगा फैलाने, लूट, डकैती, अपहरण के मामले चल रहे हों. 2012 में यूपी की विधानसभा में चुने गए 403 में से 189 विधायकों पर संगीन केस चल रहे थे.
इसीलिए हमारी कोशिश है कि इस बार के चुनाव में अगर आपका प्रत्याशी आप तक वोट मांगने नहीं आया है तो खुद उस तक पहुंचिए और पूछिए कि क्या नेताजी कहीं आप पर कोई केस तो नहीं चल रहा? और अगर आप खुद अपराधी हैं तो हमारी सुरक्षा कैसे करेंगे ?
मेरी कमीज तुम्हारी शर्ट से ज्यादा सफेद है का दावा करने वाली हर पार्टी की बुशर्ट कहीं ना कही काली है. ये हम नहीं आंकड़े कहते हैं.
उत्तर प्रदेश विधानसभा में दागी विधायकों के प्रतिशत के मामले में बीजेपी सबसे आगे है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के आंकड़ों के मुताबिक बीजेपी के 53.2 फीसदी दागी विधायक विधानसभा में पहुंचे थे. तो समाजवादी पार्टी के 49.6 फीसदी दागी प्रत्याशी विधायक बने थे. कांग्रेस के 46.4 फीसदी, जबकि बीएसपी के 36.3 फीसदी विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. आप अपने प्रत्याशियों से उनकी पढ़ाई लिखाई के बारे में नहीं पूछते हैं. इसीलिए यूपी में 2012 में 40 ऐसे विधायक बने थे, जो सिर्फ दसवीं पास थे. तीन विधायक ने तो ये भी नहीं बताया था कि वो पढ़े लिखे हैं भी कि नहीं. 116 विधायक सिर्फ बारहवीं तक पढ़े हुए थे.
इसीलिए आपके इलाके का प्रत्याशी विधायक बने उससे पहले ही सवाल पूछ लीजिए. क्योंकि नेता तो विधायक बनने के बाद इलाके से गायब भी हो जाते हैं.
आपने नेता चुना. आपने विधायक चुना. आपने सांसद चुना. लेकिन आपका चुना हुआ नेता विधायक या सांसद बनने के बाद आपके इलाके में आपको अनाथ छोड़कर गुमशुदा भी हो जाता है.
आप चाहे किसी को भी वोट दें लेकिन जो जीतेगा वही आपका प्रतिनिधि कहलाएगा. इसलिए जरूरी है कि जिस भी पार्टी का नेता अब आपसे वोट मांगने आए उससे जरूर पूछिए, कि भैया कहीं विधायक बनने के बाद भूल तो नहीं जाओगे.
आपके पास वोट मांगने आया कैंडिडेट अगर पाकिस्तान में सर्जिकल अटैक के नाम पर वोट मांगें तो उससे पूछिए- नेताजी सड़क, सुरक्षा और स्कूल के मामले में क्या करेंगे ? क्योंकि देश का गौरव अपनी जगह है. आपको तो अपने प्रत्याशी से पूछना है कि खस्ताहाल सड़क दुरुस्त करने वाली सर्जिकल स्ट्राइक कब होगी ?
अगर प्रत्याशी आपसे जाति के नाम पर वोट मांगे तो पूछिएगा कि बच्चों के लिए कितने स्कूल बनवाएंगे ? अगर प्रत्याशी धर्म के नाम पर वोट मांगें तो पूछिएगा धर्म बाद में पहले बताइए महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी मिलेगी क्या ? अगर कोई प्रत्याशी नोटबंदी पर सवाल उठाकर वोट मांगे तो उससे कहिएगा कि वो राज्य का नहीं केंद्र का मसला है. क्योंकि जो विधायक आप चुनेंगे उससे राज्य के मसले यानी सड़क, स्कूल, सुरक्षा की मुश्किल दूर करेगा.
प्रत्याशी अपना हलफनामा चुनाव आयोग को देते हैं. क्यों नहीं इस बार आप अपने प्रत्याशी से पूछते कि वादों का एक हलफनामा हमको भी दो. क्यों नहीं देश में ऐसा नियम बनता जिसके आधार पर ये तय रहे कि अगर कोई प्रत्याशी या पार्टी जीतने के बाद जनता से किए गए वादों को पचास फीसदी पूरा ना कर पाए तो उसे दोबारा चुनाव लड़ने का अधिकार ना हो. देश में ऐसे बदलाव तभी आ सकते हैं जब बदलाव की शुरुआत हम खुद से करें. मतलब समझिए. देश में 84 करोड़ वोटर हैं. लेकिन उनमें से 38 करोड़ मतदाता चुनाव में वोट ही डालने नहीं जाते.
ये आपको समझना होगा कि वोटिंग डे कोई हॉलीडे नहीं है. दुनिया में बेल्जियम, ग्रीस, मिस्र जैसे कई देश हैं जहां वोटिंग करना अनिवार्य है. बोलिविया में तो जो वोट नहीं देता उसकी तीन महीने की सैलरी रुक जाती है.
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