भोपाल: मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की राज्य प्रशासनिक सेवा (एमपीपीएससी) की प्रारंभिक परीक्षा में पूछे एक सवाल पर बड़ा विवाद हो गया है. रविवार को हुई इस परीक्षा में यह सवाल भील जाति से संबंधित है, जिसमें भीलों को आपराधिक प्रवृत्ति का बताया गया है. साथ ही लिखा गया है कि भील धन कमाने के लिए गैर क़ानूनी तथा अनैतिक काम करते हैं. दरअसल परीक्षा के दूसरे सत्र में जनरल एप्टि्यूट का पेपर था. इसमें आए एक गद्यांश के आधार पर भील जनजाति के बारे में विवादस्पद प्रश्न पूछे गए थे. इसके बाद आदिवासी समाज समेत सभी राजनीतिक दलों ने पेपर सेट करने वाले अधिकारियों को हटाने की मांग भी की है.
गद्यांश के आधार पर पूछे गए पांच में से तीन सवाल विवादित
एमपीपीएससी की परीक्षा में आए गद्यांश में लिखा गया कि भीलों की आपराधिक प्रवृत्ति का भी एक प्रमुख कारण यह है कि सामान्य आय से अपनी देनदारियां पूरी नहीं कर पाता. फलत: धन उपार्जन की आशा में गैर वैधानिक तथा अनैतिक कामों में भी संलिप्त हो जाते हैं. इसी गद्यांश के आधार पर पांच सवाल पूछ गए थे. इनमें से तीन सवाल ऐसे हैं जिनको लेकर अब प्रदेश कि सियासत गरमा गई है. जहां बीजेपी इसे आदिवासी समाज का अपमान बता रही है तो वहीं परीक्षार्थियों ने भी इस तरीके के प्रश्नों का विरोध किया है.
बच्चों को कोचिंग देने वाले बीजेपी विधायक ने भी दी परीक्षा
एमपी की पंधाना विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक राम दांगोरे भी रविवार को हुई एमपी पीएससी परीक्षा में शामिल हुए थे. परीक्षा के बाद उन्होंने प्रश्नपत्र में भील जाति को आपराधिक प्रवृत्ति का बताने वाले सवाल का विरोध किया था. विधायक दांगोरे खंडवा के सिविल लाइन क्षेत्र में सुंदरबाई गुप्ता कन्या शाला परीक्षा केंद्र में अन्य परीक्षार्थियों के साथ परीक्षा देने गए थे.
विधायक बोले सबसे भोली-भाली जाति को ही बता दिया अपराधिक
परीक्षा के बाद बीजेपी विधायक राम दंगोरे ने पीएससी परीक्षा में भील समाज को लेकर आए प्रश्न पर कड़ी आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि राज्य की इस खास जाति की उपेक्षा की गई है. भील जनजाति को आपराधिक प्रवृत्ति का बताया गया है. जबकि ये लोग भोले-भाले होते हैं.
वहीं बीजेपी नेता रामेश्वर शर्मा ने भी इस प्रश्न को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार प्रदेश के आदिवासी समाज का अपमान कर रही है. आदिवासी लोगों ने स्वतंत्रता से लेकर देश के विकास में अहम भूमिका निभाई है. इस सवाल पर जहां आदिवासी समाज उबल रहा हे तो सरकार से जबाव नहीं सूझ रहा.