बोर्ड की कार्यकारिणी समिति की हुई बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य कासिम रसूल इलियास ने बताया कि केंद्र सरकार तीन तलाक पर अध्यादेश लाई है.इसकी मियाद छह महीने होगी. अगर यह गुजर गई तो कोई बात नहीं लेकिन अगर इसे कानून की शक्ल दी गई, तो बोर्ड इसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा.
उन्होंने कहा कि यह अध्यादेश मुस्लिम समाज से सलाह-मशवरा किए बगैर तैयार किया गया है और अगर सरकार इसे संसद में विधेयक के तौर पर पेश करेगी तो बोर्ड की समिति सभी धर्मनिरपेक्ष दलों से गुजारिश करेगी कि वे इसे पारित ना होने दें.
अदालत के अंतिम फैसले को स्वीकार करेगा बोर्ड
इलियास ने बताया कि बोर्ड का स्पष्ट रुख है कि वह बाबरी मस्जिद मामले में अदालत के अंतिम फैसले को स्वीकार करेगा. बैठक में यह भी राय बनी कि सरकार मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश या कानून लाने की मांग के साथ दिए जा रहे जहरीले बयानों पर रोक लगाए और सुप्रीम कोर्ट भी इसका संज्ञान ले.
सचिव जफरयाब जीलानी ने कहा- अगर कोई अध्यादेश आता भी है तो वह कानूनन सही नहीं होगा
बोर्ड के सचिव जफरयाब जीलानी ने इस मौके पर कहा कि अयोध्या के विवादित स्थल पर यथास्थिति बरकरार रहने की स्थिति में कानूनी तौर पर कोई अध्यादेश नहीं लाया जा सकता. यही वजह है कि सरकार ने यह रुख दिखाया है कि वह अध्यादेश नहीं लाएगी. अगर कोई अध्यादेश आता भी है तो वह कानूनन सही नहीं होगा और बोर्ड उसको चुनौती देगा.
इस सवाल पर कि बोर्ड मंदिर बनाने के लिए विश्व हिंदू परिषद और अन्य कुछ संगठनों द्वारा विभिन्न आयोजन करके सरकार पर दबाव बनाए जाने की आड़ में दिये जा रहे भड़काऊ बयानों की शिकायत सुप्रीम कोर्ट से क्यों नहीं करता, जीलानी ने कहा कि यह हमारे लिये मुनासिब नहीं है. हमारा मानना है कि जो लोग इस तरह के बयान दे रहे हैं उनके खिलाफ सरकार कार्रवाई करे और सुप्रीम कोर्ट भी इसका संज्ञान ले. उसके लिये उपाय सोचा जा रहा है.
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि राम जन्मभूमि आंदोलन किसी पार्टी का कार्यक्रम हो सकता है, किसी सरकार का नहीं, क्योंकि हुकूमत धर्मनिरपेक्षता से आबद्ध है.
जीलानी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में इस्माइल फारूकी मामले पर निर्णय के दौरान कहा गया है कि इस फैसले का असर अयोध्या मामले पर नहीं पड़ेगा. बोर्ड ने इसका स्वागत किया है. विवादित स्थल पर मालिकाना हक से जुड़े मुकदमे की सुनवाई अब शुरू होनी है.अदालत यह कह चुकी है कि वह इस मसले का आस्था के आधार पर नहीं बल्कि जमीन पर मालिकाना हक के मुकदमे के तौर पर निर्णय करेगी.
इलियास ने बताया कि बैठक में बोर्ड की दारुल कजा कमेटी की रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें बताया गया कि इस साल देश में 14 नई दारुल कजा का गठन किया गया है. इस महीने के अंत तक कुछ और स्थानों पर भी इन्हें कायम किया जाएगा. दारुल कजा में कम वक्त में जायदाद, वरासत और तलाक जैसे मामलों का निपटारा किया जाता है. इससे बाकी अदालतों के बोझ को कम करने में मदद मिलती है.
उन्होंने बताया कि बैठक में यह फैसला किया गया है कि दारुल कजा के अब तक दिये गये फैसलों का दस्तावेजीकरण किया जाएगा ताकि अदालत के बोझ को कम करने में दारुल कजा के योगदान को दुनिया के सामने लाया जा सके.
बोर्ड की तफहीम-ए-शरीयत कमेटी ने बैठक में पेश की अपनी रिपोर्ट
इलियास ने बताया कि बोर्ड की तफहीम-ए-शरीयत कमेटी ने बैठक में अपनी रिपोर्ट पेश की है. यह समिति शरीयत के कानूनों को लेकर समाज में फैली गलतफहमियों को दूर करने के लिये बनायी गयी है. यह समिति जगह-जगह प्रबुद्ध वर्ग के लोगों की कांफ्रेंस करके उनके सामने तलाक, निकाह, विरासत वगैरह से जुड़े शरई चिंतन को पेश करती है.इस कमेटी की रिपोर्ट से पता लगा कि बड़े शहरों के साथ-साथ छोटे शहरों में भी ऐसे कार्यक्रम हो रहे हैं. बोर्ड की बैठक में राय बनी है कि इन कार्यक्रमों में दूसरे धर्मों के मानने वाले बुद्धिजीवी लोगों को भी शामिल किया जाए ताकि शरीयत से जुड़ी गलतफहमियां दूर हो सकें.
बोर्ड की महिला इकाई की प्रमुख असमा जहरा ने इस मौके पर बताया कि उनके विंग की रिपोर्ट के मुताबिक पूरे मुल्क में तीन तलाक अध्यादेश और शरई कानूनों में दखलअंदाजी के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में करीब दो करोड़ महिलाओं ने शिरकत की.