लखनऊ: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच अब ‘दारुल क़ज़ा‘ की तर्ज पर पूरे देश में ‘परिवार सुलह केन्द्र‘ खोलेगा. शरई अदालत के विपरीत इस केन्द्र में किसी महिला को मुखिया बनाया जाएगा. मंच के राष्ट्रीय संयोजक मोहम्मद अफजाल ने बताया कि संगठन की राष्ट्रीय समिति की पिछले दिनों हुई बैठक में हर जिले में ‘परिवार सुलह केन्द्र’ बनाने का फैसला लिया गया है. कोशिश होगी कि एक साल के अंदर देश के सभी जिलों में ऐसे केन्द्र खोल दिये जाएं.


उन्होंने बताया कि दारुल क़ज़ा में जहां पुरुष को मुखिया बनाया जाता है, वहीं परिवार सुलह केन्द्र में किसी महिला को प्रमुख बनाया जाएगा. हालांकि मसले सुलझाने में उलमा की मदद भी ली जाएगी. मध्यस्थता इकाई की हैसियत से काम करने वाले इन केन्द्रों में सभी कौम के मसलों को सुलझाया जाएगा लेकिन मुसलमानों से जुड़े तलाक और विरासत समेत विभिन्न मसलों पर खासतौर से ध्यान दिया जाएगा.


बता दें कि कुछ महिला संगठन ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) द्वारा देश में विभिन्न स्थानों पर मुसलमानों में तलाक, विरासत और दीगर मसायल के हल के लिये खोले गए दारुल क़ज़ा में महिला काजी की नियुक्ति की मांग काफी पहले से कर रहे हैं. हालांकि अभी इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.


अफजाल ने ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर आरोप लगाया कि तीन तलाक को जायज ठहराने वालों द्वारा संचालित दारुल क़ज़ा में महिलाओं को आमतौर पर इंसाफ नहीं मिलता. दारुल क़ज़ा परिवार को तोड़ने का काम करते हैं. हम कोशिश करेंगे कि परिवार को जोड़ें.


उन्होंने कहा कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच देश भर में फैले अपने कार्यकर्ताओं से अपील करेगा कि वे जगह-जगह परिवार सुलह केन्द्र खुलवाएं. परिवार सुलह केन्द्र में लोगों को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में भी बताया जाएगा.


अफजाल ने बताया कि उनके संगठन ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गैर सरकारी पेंशन देने की योजना शुरू की है. दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में करीब 100 महिलाओं को दो महीने से यह पेंशन मिल रही है. जल्द ही इस योजना का विस्तार किया जाएगा. यह पेंशन पाने की इच्छुक महिलाएं परिवार सुलह केन्द्रों पर ही इसके लिए पंजीयन करा सकेंगी.


मालूम हो कि ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने देश के विभिन्न जिलों में दारुल क़ज़ा खोली हैं. इनका उद्देश्य मुसलमानों के तलाक, विरासत इत्यादि से जुड़े मसलों का शरई समाधान उपलब्ध कराना है. बोर्ड ने हाल में देश के विभिन्न जिलों में दारुल क़ज़ा खोलने का इरादा किया था. इसे लेकर खासा विवाद हुआ था.


बाद में, बोर्ड ने गत 15 जुलाई को दिल्ली में हुई अपनी कार्यकारिणी बैठक के दौरान इस विवाद पर सफाई देते हुए कहा था कि दारुल क़ज़ा कोई समानान्तर अदालत नहीं, बल्कि मध्यस्थता परिषद हैं. इनमें किए गये फैसलों को सामान्य अदालतों में चुनौती दी जा सकती है.