लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. सभी राजनीतिक दल धर्म और जाति के नाम पर अपनी बिसात बिछाने में जुटे हुए हैं. इन सबके बीच रोचक तथ्य यह है कि यूपी में पिछले पांच विधानसभा चुनाव के दौरान सरकार उसी की बनी, जिसने अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर अपनी पकड़ बनाई. इस बार भी सत्ता की चाबी इन्हीं सीटों में छिपी हुई है.
राम मंदिर आंदोलन की वजह से बदलती गईं परिस्थतियां
यूपी में पिछले कई चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह बात सही साबित होती है. साल 1991 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर विपक्षियों को मात दी थी, लिहाजा उसकी सरकार बनी थी. बाद में मंदिर आंदोलन की वजह से परिस्थतियां बदलती गईं और अल्पसंख्यक बहुल सीटों से बीजेपी की पकड़ ढीली होती गई.
साल 1991 के विधानसभा में बीजेपी को 122 अल्पसंख्यक बहुल सीटों में से 76 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. कांग्रेस सात सीटें जीती, जबकि एसपी केवल एक सीट ही जीत पाई थी. 38 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी.
कांग्रेस को छह सीटों पर मिली थी जीत
1993 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने इन सीटों पर अपना एकाधिकार बनाए रखा था. इस बार बीजेपी को 69 सीटें मिलीं, जबकि एसपी को 31 सीटें मिली थीं. बीएसपी ने पांच सीटों पर जीत दर्ज कराई थी. कांग्रेस को छह सीटों पर जीत मिली थी. अन्य के खाते में 16 सीटें गई थीं.
1996 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बीजेपी ने अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर जीत हासिल की. जीत का आंकड़ा हालांकि इस घट गया. कुल 128 अल्पसंख्यक बहुल सीटों में से बीजेपी को 59 सीटें, एसपी को 43 सीटें, और बीएसपी को 13 सीटें मिली थीं. सात सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे.
मुलायम सिंह के नेतृत्व में बनाई सरकार
साल 2002 के चुनाव में एसपी ने अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर पिछले चुनावों की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन किया, लिहाजा एसपी की सरकार बनी. सूबे की 129 अल्पसंख्यक बहुल सीटों में से एसपी को 43 सीटें मिलीं और उसने मुलायम सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई. इस चुनाव में बीएसपी को 24 सीटें और बीजेपी को 32 सीटें मिली थीं.
साल 2007 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने अल्पसंख्यक बहुल 59 सीटों पर जीत हासिल की और मायावती की सरकार बनी. दूसरे नंबर पर एसपी रही, जिसने 26 सीटों पर कब्जा जमाया. इस चुनाव में बीजेपी अपना पिछला प्रदर्शन भी नहीं दोहरा पाई और उसे केवल 25 सीटों पर जीत हासिल हुई. कांग्रेस को सात और आरएलडी को छह सीटें मिलीं.
130 सीटों में से 78 सीटों पर कामयाबी
2012 के विधानसभा चुनाव बाद जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी, तब एसपी ने अल्पसंख्यक बहुल 130 सीटों में से 78 सीटों पर कामयाबी हासिल की थी. एसपी के बाद बीएसपी ने 22 सीटों पर जीत हासिल की थी. बीजेपी को 20 सीटें मिली थीं. चार सीटें कांग्रेस व दो सीटें अन्य के खाते में गई थीं.
इन चुनावों में एक बात स्पष्टतौर पर नजर आई कि समय बीतने के साथ बीजेपी की पकड़ अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर ढीली पड़ती गई और वह सत्ता से दूर होती चली गई. एसपी और बीएसपी ने जब जब अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर बेहतर प्रदर्शन किया, तब तब यूपी में इन दलों की सरकार बनी.
सबका साथ, सबका विकास
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रदेश प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने इस बारे में कहा, "पार्टी ने अल्पसंख्यक बहुल सीटों के लिए कोई अलग से तैयारी नहीं की है. बीजेपी का हमेशा से ही नारा रहा है -सबका साथ, सबका विकास. पार्टी को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यो को देखते हुए जनता इस बार चुनाव में जाति और धर्म से ऊपर उठकर मतदान करेगी."
राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के प्रदेश अध्यक्ष मसूद अहमद ने कहा, "पार्टी हर सीट को ध्यान में रखकर तैयारी कर रही है. जहां तक बात अल्पसंख्यक बहुल सीटों की है तो पिछले पांच चुनावों की अपेक्षा इन सीटों पर पार्टी बेहतर प्रदर्शन करेगी."