सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल, मुजफ्फरनगर में बने मंदिर की 26 साल से देखभाल कर रहे हैं मुसलमान
मुजफ्फरनगर शहर में लड्डेवाला की ओर जाने वाली सड़क से लगभग एक किलोमीटर दूर एक हिंदू मंदिर है. ये मंदिर आम हिंदू मंदिरों की तरह ही है पर इसकी खासियत यहां रहने वाले मुसलमान परिवारों की वजह से है.
![सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल, मुजफ्फरनगर में बने मंदिर की 26 साल से देखभाल कर रहे हैं मुसलमान Muslims are taking care of 26 years of temple built in Muzaffarnagar सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल, मुजफ्फरनगर में बने मंदिर की 26 साल से देखभाल कर रहे हैं मुसलमान](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2018/09/17083641/tenple.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
मुजफ्फरनगर: भारत में आए दिन नेता अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए हिंदू-मुस्लमानों को आपस में लड़वाने की कोशिश करते रहते हैं. लेकिन इन सब के बीच हमारे सामने बार-बार इस तरह के उदाहरण आते रहते हैं जिससे ये पता चलता है कि कोई कितनी भी कोशिश कर ले पर इस गंगा-जमुनी तहजीब को कोई तोड़ नहीं सकता है. ऐसी ही सांप्रदायिक सौहार्द की अनोखी मिसाल हमें मुजफ्फरनगर में देखने को मिलती है. मुजफ्फरनगर शहर में लड्डेवाला की ओर जाने वाली सड़क से लगभग एक किलोमीटर दूर एक हिंदू मंदिर है. ये मंदिर आम हिंदू मंदिरों की तरह ही है पर इसकी खासियत यहां रहने वाले मुसलमान परिवारों की वजह से है.
मंदिर के रंग-रोगन से लेकर साफ-सफाई तक करते हैं मुस्लमान 1990 के दशक में विवादीत बाबरी ढांचा गिराए जाने के बाद हो रहे सांप्रदायिक संघर्ष के कारण यहां रहने वाले हिंदू परिवारों ने ये जगह छोड़ दी थी. तब से लेकर आज तक यहां पर बने हुए हिंदू मंदिर की देखभाल से लेकर रंग रोगन तक का काम मुसलमान ही करते हैं. यहां रहने वाले लोग हर साल चंदा इक्कठा कर मंदिर की साफ सफाई करवाते हैं. 1990 के शुरुआती दशक तक यहां पर 20 हिंदू परिवार रहते थे और इस मंदिर का निर्माण 1970 के आसपास किया गया था. 1990 के दशक के शुरू में हिंदू परिवारों के जरिए छोड़ा गया यह एक अकेला मंदिर है. इसी तरह ननहेदा गांव में 59 साल के हिंदू राजमिस्त्री एक 120 साल पुरानी मस्जिद की देखभाल कर रहे हैं.
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मुुस्लमानों को है अपने हिंदू पड़ोसियों की वापसी की उम्मीद यहां रहने वाले 60 वर्षीय मेहरबान अली बताते है कि यहां रहने वाले, अभी भी उन दिनों को याद करते हैं जब हिंदू परिवारों ने सांप्रदायिक झगड़े के बाद ये इलाका छोड़ दिया था. जितेंद्र कुमार मेरे सबसे करीबी दोस्तों में से एक था. मैंने तनाव के बावजूद उसे रोकने की कोशिश की. लेकिन उसने वादा किया कि वो कुछ दिन में वापस आ जाएगा. तब से, यहां के निवासियों ने मंदिर का ख्याल रखा है.
एक अन्य स्थानीय निवासी जहीर अहमद ने कहा "इलाके में लगभग 35 मुस्लिम परिवार रहते हैं और उनमें से कई अली की तरह अपने हिंदू पड़ोसियों की वापसी की उम्मीद कर रहे है. मंदिर नियमित रूप से साफ किया जाता है और इसकी दीवारों को समय-समय पर चित्रित किया जाता है. हम चाहते हैं कि वे वापस आएं और इसकी देखभाल करें"
पूर्व स्थानीय नगरपालिका वार्ड सदस्य नदीम खान ने कहा, " हालांकि, मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है. जब यहां से हिंदू परिवार गए, तो उन्होंने मूर्ति को भी उनके साथ ले गए. कोई हिंदू परिवार यहां नहीं रहता है लेकिन अगर हम किसी की पूजा की जगह को नुकसान पहुंचाते हैं, तो वो हमारे ऊपर से भरोसा खो देंगे. हम नहीं चाहते कि ऐसा हो, यही वजह है कि हम मंदिर की देखभाल करते हैं.
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