नई दिल्ली: भगवान शिव की आराधना का पवित्र महीना सावन आज से शुरू हो गया है. श्रावण मास की शुरुआत होते ही देशभर के शिवालयों में भोलेनाथ के जयकारे गूंज रहे हैं. हर तरफ बोल बम की गूंज सुनाई पड़ रही है और सब कुछ शिवमय हो गया है. सावन के साथ ही कांवड़ यात्रा भी शुरू हो गई है. ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं क्या है सावन का महत्व और क्यों करते हैं कांवड़ यात्रा ?


सावन को देवादि देव महादेव यानी भगवान शिव का महीना कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि सावन का महीना भक्तों को अमोघ फल देने वाला है. धार्मिक पुराणों के अनुसार सावन के महीने में भगवान शिव को सिर्फ 1 बेलपत्र भी चढ़ा दिया जाए तो भक्तों के सभी पापों का विनाश हो जाता है. इसके साथ ही भोलेनाथ को कच्चा दूध, भस्म, भांग और धतूरा भी अर्पित किया जाता है.


क्या है कांवड़ यात्रा ?


सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा में जलाभिषेक का काफी खास महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि श्रावण मास में भोलेनाथ की पूजा करने से विशेष फल मिलता है. सावन के महीने में भगवान शिव को खुश करने के लिए भक्तों द्वारा कई तरीके अपनाए जाते हैं. इन्हीं तरीकों में से एक है कांवड़ यात्रा.


सावन के महीने में शिव भक्त केसरिया कपड़े पहनकर कांवड़ के माध्यम से गंगा जल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए नंगे पांव निकल पड़ते हैं. इन्हीं भक्तों को कांवड़ियों के नाम से जाना जाता है.


ऐसा कहा जाता है कि कांवड़ लाने से भगवान शिव भक्तों से प्रसन्न होते हैं. आपको बता दें कि कांवड़ यात्रा में उम्र की कोई सीमा नहीं होती है. इस यात्रा में बच्चों से लेकर बूढ़े तक हर उम्र के लोग शामिल रहते हैं.


सावन में ही क्यों करते हैं कांवड़ यात्रा ?


ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान किया था और उस विष को अपने कंठ में ही रोक लिया था. जिसके चलते उनका शरीर जलने लगा था. भगवान शिव के जलते शरीर को देखकर देवताओं ने उनके ऊपर जल अर्पित किया. जिससे उनका शरीर शीतल हो गया. इसके बाद से ही भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए भक्त उनका जलाभिषेक करने लगे और देखते ही देखते कांवड़ यात्रा शुरू हो गई.


कुछ पंडितों का यह भी मानना है कि पहली बार भगवान परशुराम ने कांवड़ से गंगा का पवित्र जल लाकर भगवान का जलाभिषेक किया था. और इसी के बाद से कांवड़ की परंपरा शुरू हुई.