पटना: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में शेल्टर हाऊस में हुए रेप कांड की घटना ने नीतीश कुमार सरकार की पोल खोल कर रख दी है. विपक्ष लगातार इसको लेकर राज्य सरकार पर हमलावर है. एबीपी न्यूज़ के पास वो सारे दस्तावेज़ हैं जिसमें ये साफ है कि अगर सही तरीके से नियमों के मुताबिक इंस्पेक्शन किया जात तो इस घटना को पहले ही समझा जा सकता था.


शेल्टर हाऊस कांड के आरोपी ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ सेवा संकल्प एवं विकास समिति को बिहार में तीन संस्था चलाने का टेंडर मिला था. मुजफ्फरपुर में बालिका गृह चलाने के लिए 2013 में समाज कल्याण विभाग की तरफ से आदेश मिला था. विभाग का दावा है कि इस संस्था ने जो सेवा शर्तें रखी थीं उन सभी को पूरी की और इसके एवज में बालिका गृह चलाने का आदेश दिया गया था.


ब्रजेश ठाकुर की संस्था को इस सेवा के बदले सरकार की तरफ से सलाना 40 लाख रुपये मिलते थे. इसी तरह समाज कल्याण विभाग की तरफ से वृद्धाश्रम चलाने का टेंडर 2014 में मुजफ्फरपुर में मिला. इस वृद्धश्रम को चलाने के लिए हर साल करीब 13 लाख रुपये सलाना दिए गए. इसे अब रद्द कर दिया गया है.


वहीं तीसरी संस्था जिसमें 18 साल से ऊपर कि महिलाएं रहती हैं उसका ज़िम्मा भी भारत सरकार की तरफ से मिला है. हालांकि इसकी देखरेख महिला विकास निगम की देखरेख में होता है. ब्रजेश ठाकुर के इस एनजीओ को भी अच्छी खासी रकम मिलती है. एनजीओ चलाने के पीछे मकसद अवैध कमाई थी. यही वजह है कि ब्रजेश खुद इसका कर्ताधर्ता था लेकिन नाम रमेश कुमार का आगे रखा था. एबीपी न्यूज़ के पास इस बात की पुख्ता जानकारी है कि रमेश कुमार खुद कभी सामने नहीं आया लेकिन हर जगह ब्रजेश ठाकुर का मोबाइल नंबर रहता था.


साल 2012 के आदेश में साफ लिखा है कि जिला सलाहकार परिषद का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष डीएम थे. सदस्य के रूप में डॉक्टर और शिक्षा पदाधिकारी भी शामिल थे लेकिन किसी ने कभी कोई ऐसा रिपोर्ट नहीं दिया जिससे ये बातें सामने आतीं. दोबारा 2017 में बिहार किशोर न्याय के अंतर्गत बालकिकाओं की देखरेख के लिए जिला नीरीक्षण समिति का गठन किया गया.



इस समिति में जिला पदाधिकारी को ही अध्यक्ष रखा गया. इस समिति में एक पुलिस के अधिकारी जो जोड़ा गया. यहां तक कि मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी को भी सदस्य बनाया गया. इस समिति में एक महिला को भी रखा गया. एक डीएसपी रैंक के एक अधिकारी को रखा गया. बावज़ूद इसके बालगृह में नाबालिग बच्चियों के साथ यौनाचार होता रहा. सवाल उठता है कि आखिर क्या ये समिति सिर्फ कागज़ी कार्रवाई के लिए थी, सरकारी आदेश सिर्फ खानापूर्ति के लिए था? या फ़िर ये फाइल का एक हिस्सा भर रहा गया. सरकारी आदेश रद्दी का कागज़ बन गया और अधिकारियों ने अपना काम कर हाथ पर हाथ रख बैठ गए.


समाज कल्याण विभाग के अधिकारी कैमरे पर कुछ बोलने को तैयार नहीं पर इस घटना से सबक सीखकर कई कदम उठाने का भरोसा दिला रहे हैं. ब्रजेश ठाकुर की संस्था को पहले ब्लैक लिस्ट किया गया, अब एनजीओ को ही ऐसी व्यवस्था से हटाने का आदेश कर रही है.