कोर्ट ने इस सिलसिले में बिहार के मुख्य सचिव को तलब किया था. मुख्य सचिव दीपक कुमार कोर्ट में पेश हुए. कोर्ट ने उन्हें आड़े हाथों लेते हुए कहा, "बिहार में क्या हो रहा है? मई से ये रिपोर्ट सरकार के पास है. अब नवंबर का महीना खत्म होने वाला है. लेकिन न तो ढंग से एफआईआर हुई, न जांच, न गिरफ्तारी. बच्चों के साथ इस तरह का व्यवहार हो जाता है और सरकार उसे लेकर गंभीर नहीं होती. क्या ये बच्चे भारत के नागरिक नहीं है?"
कोर्ट के सवालों का मुख्य सचिव के पास कोई जवाब नहीं था. बिहार सरकार की तरफ से पेश वकील गोपाल सिंह लगातार यही सफाई देते रहे कि सरकार इन मामलों को गंभीरता से लेगी. इनमें तमाम जरूरी कार्रवाई करेगी. लेकिन जस्टिस मदन बी लोकुर, दीपक गुप्ता और अब्दुल नजीर की बेंच संतुष्ट नहीं दिखे.
कोर्ट ने कहा, "मोतिहारी के शेल्टर होम में एक लड़के के साथ अप्राकृतिक यौनाचार किए जाने की शिकायत है. लेकिन आपने पॉक्सो एक्ट की एक कमजोर धारा लगाई है. इस मामले में आईपीसी की धारा 377 के तहत एफआईआर क्यों नहीं दर्ज हुई. क्या पुलिस को कानून का इतना भी ज्ञान नहीं है? आमतौर पर देखा जाता है कि पुलिस जिन धाराओं की जरूरत होती है, उससे कड़ी धाराएं लगा देती है. यहां तो उल्टा हो रहा है."
वकील गोपाल सिंह ने कहा कि प्रक्रिया में रह गयी कमी से ये न समझा जाए कि सरकार किसी को बचना चाहती है. इस पर कोर्ट ने कहा, "हम ये नहीं कह रहे हैं कि आप किसी को बचाना चाहते हैं. लेकिन इतना जरूर दिख रहा है कि आप जांच को लेकर गंभीर नहीं है. आप न तो ढंग से जांच करेंगे, न किसी की गिरफ्तारी करेंगे. बेहतर होगा कि हम सभी मामलों को सीबीआई को सौंप दें."
जिन शेल्टर होम्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया है, वो मोतिहारी, मधेपुरा, पटना, गया, कैमूर, अररिया, भागलपुर, मुजफ्फरपुर और मुंगेर जिलों में हैं.
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