लखनऊ: पूर्वांचल के डॉन मुन्ना बजरंगी हत्याकांड में हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश देने से मना कर दिया है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या सांसद बनने का सपना मुन्ना बजरंगी की जिंदगी पर भारी पड़ गया. उसका परिवार राजनीतिक रंजिश में हत्या का शक जता रहा है और खुल कर कुछ नेताओं का नाम ले रहा है. मुन्ना के मर्डर ने यूपी के राजनीतिक समीकरण को प्रभावित कर दिया है.


चर्चा है कि मुन्ना बजरंगी की राजनीतिक महत्वकांक्षा उसकी मौत की वजह बनी. मुन्ना बजरंगी ने 2015 में खुद चुनाव लड़ने का एलान किया था और इलाके में चर्चा थी कि जौनपुर से इस बार मुन्ना बजरंगी चुनाव लड़ सकता है.


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मुन्ना बजरंगी इससे पहले भी 2012 में विधानसभा का चुनाव लड़ चुका था. तब मुन्ना बजरंगी ने जौनपुर की मड़ियाहू सीट से अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन 35 हजार वोट पाकर मुन्ना हार गया. इस हार की कसर पूरी करने के लिए उसने 2017 के विधानसभा चुनाव में पत्नी सीमा सिंह को लड़वाया.


सीमा सिंह उस अपना दल के टिकट पर मैदान में उतरी थीं जिसकी प्रमुख कृष्णा पटेल हैं लेकिन 21 हजार वोट पाकर सीमा चौथे नंबर पर रह गईं. जिस मड़ियाहू सीट से मुन्ना और सीमा चुनाव लड़ चुके हैं वो मछलीशहर लोकसभा क्षेत्र में पड़ता है.


चर्चा थी कि इस बार राजपूतों के प्रभाव वाले जौनपुर लोकसभा सीट से खुद मुन्ना बजरंगी लड़ना चाहता था. मुन्ना बजरंगी चुनाव लड़ता तो जौनपुर में वर्चस्व की जंग तय थी क्योंकि बाहुबली धनंजय सिंह इसी सीट से सांसद रहे हैं.


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2014 की मोदी लहर में धनंजय हार गये थे. कहा जाता है कि इस बार जौनपुर में धनंजय और मुन्ना का मुकाबला तय था लेकिन इस तय मुकाबले से पहले ही मुन्ना बजरंगी जेल में मारा गया. मुन्ना की पत्नी हत्या में धनंजय सिंह का हाथ मानती हैं लेकिन धनंजय इसे गलत बताते हैं.


मुन्ना बजरंगी की राजनीतिक महत्वकांक्षा इसलिए भी बढ़ गई थी क्योंकि उसके साथी गैंगस्टर और बाहुबली सबके सब विधायक और सांसद बन चुके थे लेकिन मुन्ना की हसरत पूरी नहीं हो पाई और अब तो खेल ही खत्म हो गया.