लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सर पर है. लेकिन नोटबंदी ने बहस बदल दी है. हर जगह बस इन दिनों कैश पर ही चर्चा हो रही है. भला हो नोटबंदी का वरना नेताजी के परिवार का झगड़ा ही हेडलाईंस होता और चाचा भतीजा के समर्थक सड़क पर सर्दी में भी जोर आजमाईश कर रहे होते.



'चाचा साथ हो ना हो, बस जनता हमारे साथ रहे'


पिछले 15 दिनों से नेताजी के घर में आग अंदर ही अंदर सुलग रही है. शिवपाल यादव जिस तरह से टिकट काट और बांट रहे है. लगता है जल्द ही घर के घमासान का अगला राउंड शुरू होने वाला है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो संकेत दे भी दिया है. किसी ने पूछा "लगता है चाचा शिवपाल आपके साथ नहीं है'' ? इसपर अखिलेश मुस्कुराते हुए बोले "चाचा साथ हो ना हो, बस जनता हमारे साथ रहे."


अखिलेश के समर्थकों का पत्ता साफ़


सारा झगड़ा तो टिकट बंटवारे का है. अखिलेश और शिवपाल यादव दोनों अपने अपने समर्थकों के लिए अधिक से अधिक टिकट टिकट चाहते है. जब से शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने है. एक-एक कर वे अखिलेश के समर्थकों का पत्ता साफ़ कर रहे है.


गुंडागर्दी और दबंगई को ढंकने कोशिश


शिवापल चुन चुन कर उन्हीं नेताओं को उम्मीदवार बना रहे हैं जिनके नाम से ही अखिलेश को चिढ है. पहले बाहुबली नेता अतीक अहमद को टिकट दे दिया गया. और अब उनकी गुंडागर्दी और दबंगई को ढंकने कोशिशें हो रही है. एक दिन टिकट मिलता है और अगले दिन टिकट कट जाता है. अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि, लेकिन पार्टी ने उनका टिकट काटा. उन पर अपनी ही पत्नी सारा की ह्त्या का आरोप है. वे शिवपाल के चहेते है.



अखिलेश और शिवपाल के झगडे का दूसरा दौर


अखिलेश यादव इन दिनों खामोशी से शिवपाल यादव के टिकट काटो और बांटो अभियान को देख रहे है. उन्हें इन्तजार है 'अच्छे वक्त का' और अपने दूसरे चाचा रामगोपाल यादव के ग्रीन सिग्नल का. फिर कभी भी अखिलेश और शिवपाल के झगडे का दूसरा दौर शुरू हो सकता है.


घमासान में सबसे दिलचस्प होगा नेताजी का रोल


वैसे भतीजे ने चाचा को मंत्रिमंडल से आउट कर पहला राउंड तो फतह कर लिया है. अब अखिलेश की तैयारी दूसरे दौर को भी जीत लेने की है. और इस घमासान में नेताजी का रोल सबसे दिलचस्प होगा. नेताजी यानि समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह का. जिनके सम्मान के नाम पर ही ये सत्ता का वर्चस्व चल रहा है.