नई दिल्ली: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार और पिछड़े राज्यों की विशेष आवश्यकताओं को वित्त आयोग एक अलग दृष्टिकोण से देखे. उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से पक्षपातपूर्ण नीतियों, अलग-अलग सामाजिक और आर्थिक वजहों से बिहार का विकास बाधित रहा है. वित्त आयोग और योजना आयोग के वित्तीय हस्तांतरण भी राज्यों के बीच संतुलन सुनिश्चित करने में असफल रहे हैं. इससे क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ा है और बिहार इसका सबसे बड़ा भुक्तभोगी रहा है.


सीएम नीतीश ने कहा कि पिछले 12-13 सालों में राज्य सरकार ने पिछड़ेपन को दूर करने, राज्य को विकास और समृद्धि के रास्ते पर अग्रसर करने की लगातार कोशिश की है. इस दौरान भेदभावपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद राज्य ने दो अंकों का विकास दर हासिल करने में सफलता पाई है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने दृढ़तापूर्वक न्याय के साथ विकास की बुनियाद रखी है. लेकिन तेजी से प्रगति करने के बावजूद बिहार प्रति व्यक्ति आय, शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सेवाओं पर प्रति व्यक्ति खर्च में अभी भी सबसे निचले पायदान पर है.''


नीतीश कुमार ने कहा, ''बिहार के विभाजन के बाद प्रमुख उद्योगों के राज्य में नहीं होने की वजह से सरकारी और निजी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. केन्द्र सरकार ने भी इस क्षेत्रीय विषमता को दूर करने के लिए राज्य को कोई विशेष मदद नहीं की है. इन्हीं वजहों से राज्य के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. आज राज्य की प्रतिव्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से 68 प्रतिशत कम है. इसलिए सबसे पहले वित्त आयोग को एक वास्तविक समय-सीमा के अन्तर्गत प्रति व्यक्ति आय की बढ़ती हुई विषमता को दूर करने के लिए ठोस सिफारिश करने की आवश्यकता है.''


नीतीश कुमार ने कहा कि 13वें वित्त आयोग ने राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं के लिए सहायता अनुदान की सिफारिश की थी. इस पर 15वें वित्त आयोग को भी विचार करना चाहिए. यह पिछड़े राज्यों और विकसित राज्यों के बीच की खाई को पाटने में मदद करेगा. 14वें वित्त आयोग ने अपनी सिफारिशों में यह सुझाव दिया था कि यदि सूत्र आधारित अंतरण राज्य विशेष की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति न कर सकें तो उसे निष्पक्ष ढंग से और सुनिश्चित रूप से विशेष सहायता अनुदान से पूरा किया जाना चाहिए. इस सुझाव को लागू नही किया गया है. इसलिए 15वें वित्त आयोग की तरफ से बिहार जैसे पिछड़े राज्यों की विशेष समस्याओं को देखा जाना चाहिए.