पटना/लखनऊ: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अनुभवी पेशेवरों को ज्वाइंट सेक्रेटरी के स्तर पर सीधी भर्ती के केंद्र सरकार के फैसले का आज बचाव किया. नीतीश कुमार ने कहा कि देश भर में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की कमी की वजह से पैदा हुई जरूरतों को देखते हुए प्रयोग के तौर पर योजना लाई गई है.


वहीं बीएसपी प्रमुख मायावती ने आरोप लगाए कि यह मोदी सरकार की प्रशासनिक विफलता का नतीजा है. विपक्ष की आलोचनाओं से इत्तेफाक नहीं रखते हुए केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में भी सीधी भर्ती की वकालत की. उन्होंने कहा कि मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए. मानव संसाधन राज्यमंत्री ने कहा कि इस योजना से शैक्षणिक संस्थानों की क्षमता में सुधार आएगा. आरजेडी के मनोज झा ने इस पहल को प्रतिबद्ध नौकरशाही के प्रयास के तौर पर देखा.


साल 2013 से 2017 को छोड़कर 1990 के दशक से एनडीए के सहयोगी रहे नीतीश कुमार ने सिविल सेवाओं को कमतर करने के लिए कांग्रेसी सरकारों को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि इसने हमें इस स्थिति में छोड़ दिया है कि हमें प्रशासन की कई जरूरतों को पूरा करने में कठिनाई आ रही है.


कई विभागों में वरिष्ठ स्तर पर नौकरशाही के पदों पर प्रतिभावान लोगों को निजी क्षेत्र से भी लाने की सरकार की पहल से राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है. मायावती के अलावा माकपा के सीताराम येचुरी और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने भी इस पहल की आलोचना की है.


राजनीति में आने से पहले नौकरशाह रहे कांग्रेस प्रवक्ता पी एल पुनिया ने आरोप लगाया कि सरकार सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े लोगों की भर्ती करने का प्रयास कर रही है. येचुरी ने कहा कि यह प्रशासनिक स्तर पर संघियों की भर्ती करने का प्रयास है. उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने आशंका जताई कि इस पहल से नीति निर्माण में पूंजीवादियों का प्रभाव बढ़ेगा.


मायावती ने लखनऊ में पार्टी की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘‘दस विभागों में वरिष्ठ स्तर पर नौकरशाही के पद ऐसे निजी लोगों के लिए खोलना जिन्होंने यूपीएससी परीक्षा पास नहीं किया है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशासनिक विफलता का परिणाम है.’’ उन्होंने कहा कि यह खतरनाक परम्परा है और इससे केंद्र सरकार की नीतियों में पूंजीवादियों और धनाढ्यों का प्रभाव बढ़ने की संभावना है.