नई दिल्ली: असम में नागरिकता बिल पर शुरू से ही आपत्ति जता रही जेडीयू अब खुलकर इसके विरोध में आ गई है. हाल ही में एनडीएस से अलग हुई असम गण परिषद की रैली में जेडीयू ने शामिल होने का फैसला किया है. इस बिल के विरोध में उत्तर पूर्व के राज्यों में दिन में सड़कों पर प्रदर्शन हो रहा है तो रातों कैंडल मार्च निकल रहे हैं.


आज पटना में हुई राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में जेडीयू ने असम में होने वाली असम गणपरिषद की रैली में शामिल होने का फैसला लिया है. जेडीयू प्रतिनिधि के तौर पर जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी और प्रशांत किशोर असम जाएंगे.


के सी त्यागी ने कहा है, ''समाजवादी आंदोलन की विरासत के सवाल हैं, चाहे वो धारा 377 हो, यूनिफार्म सिविल कोड हो या रामजन्म भूमि विवाद हो. पार्टी अपने पुराने स्टैंड पर कायम है. जेडीयू राज्यसभा में असम नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध करेगी. कांग्रेस सदन से वाकआउट करके सरकार का समर्थन करना चाहती है. इसी महीने हम असम जाएंगे और वहां के जो लोग संघर्ष कर रहे हैं उनसे मिलने जाएंगे.''

बिल के खिलाफ 23 जनवरी को प्रदर्शन करेंगे 35 सगंठन


नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ 35 सगंठन मिलकर गुवाहाटी में 23 जनवरी को प्रदर्शन करेंगे. वहीं इसके एक दिन बाद 24 तारीख को बीजेपी जवाब देने वाली है. 24 तारीख को 25 हजार पंचायत सदस्यों के साथ बीजेपी सभा करेगी, जिसमें सीएम सर्वानंद सोनोवाल खुद शामिल होंगे.


इस बिल के चलते असम की बीजेपी सरकार खतरे में है. इस बिल के विरोध में असम गण परिषद् असम की एनडीए सरकार से अलग होने का ऐलान कर चुकी है. बोडो पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) के भी समर्थन वापस लेने की चर्चा है. बीपीएफ के पास 12 विधायक हैं. ऐसे में असम में सोनोवाल सरकार गिरने का खतरा बढ़ जाएगा. असम की 126 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी के पास 61 सीटें हैं जबकि जादुई आंकड़ा 64 का है.


मूल मुद्दा क्या है?


1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के निर्माण के वक्त असम और उत्तर पूर्व में अवैध घुसपैठियों की समस्या शुरू हुई थी. जिसके बाद ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और फिर असम गण परिषद ने बड़े आंदोलन किए. राजीव गांधी सरकार के दौर में असम गण परिषद् से यह समझौता हुआ था कि 24 मार्च 1971 के बाद असम में अवैध रूप से घुसे बांग्लादेशियों को बाहर निकाला जाएगा. हाल ही में नेशनल रजिस्टर बना तो पता लगा कि उसमें 40 लाख भारतीय नागिरक नहीं निकले.


लेकिन नए बिल के कानून बनने के बाद अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता मिलना आसान होगा. इसके तहत हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 की बजाय छह साल में नागरिकता मिल जाएगी. इसके लिए किसी वैध दस्तावेज की जरूरत नहीं होगी. आरोप है कि अगर ये बिल लागू हो गया तो नेशनल रजिस्टर की पूरी प्रक्रिया बेकार हो जाएगी. इसमें मुस्लिमों को बाहर करने का आरोप भी लग रहा है.


उत्तर पूर्व में बसे बंगाली हिंदुओं को मिलेगा बिल का फायदा?


राजनीतिक पार्टियां अपना अपना-अपना फायदा देख रही हैं. उत्तर पूर्व की कुल 25 लोकसभा सीटें दांव पर हैं. बीजेपी इनमें से 21 लोकसभा सीटों पर निगाह लगाए हुए हैं. माना जा रहा है इस बिल का फायदा उत्तर पूर्व में बसे बंगाली हिंदुओं को मिलेगा. बंगाली हिंदुओं का मुद्दा उसे असम, नॉर्थ-ईस्ट के त्रिपुरा सहित कई राज्यों और पश्चिम बंगाल में अच्छी-खासी माइलेज दिला सकता है.


लोकसभा में बिल के पारित होने के बाद बीजेपी में ही बगावत के सुर नजर आऩे लगे हैं. अब पार्टी और सरकार डैमेट कंट्रोल मोड में हैँ. राजनीतिक दलों से बातचीत हो रही है. केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने ऑल असम स्टूडेंट यूनियन नेताओं से बात की थी लेकिन ये कोशिश भी काम नहीं आई.


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