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बिहार के बाहर जमीन तलाश रहे नीतीश फिर हुए फेल, राजस्थान-छत्तीसगढ़ में जेडीयू की हवा निकली

राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में जेडीयू बुरी तरह पिट गई. इससे पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार की किरकिरी हो चुकी है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीयू के सभी उम्मीदवारों की जमानत ज़ब्त हो गई थी.

पटना: एक समय था जब जेडीयू अपने नेता नीतीश कुमार को पीएम मेटेरियल मानती थी, लेकिन अब आलम ये है कि बिहार से बाहर निकलते ही नीतीश कुमार की लुटिया डूब जाती है. नीतीश कुमार भले ही पिछले 15 सालों से बिहार की सत्ता पर काबिज हों लेकिन बिहार के बाहर जेडीयू का प्रदर्शन हमेशा निराशाजनक ही रहा है. पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जेडीयू ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन इन दोनों ही राज्यों में जेडीयू के किसी उम्मीदवार को जीत नसीब नहीं हुई है. जेडीयू के ज्यादातर उम्मीदवार तो अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार और चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर के लिए ये नतीजे घोर निराशा वाले हैं.

राजस्थान में जेडीयू के सभी 12 उम्मीदवारों की हार

नीतीश कुमार ने राजस्थान विधानसभा चुनाव में कुल 13 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. बाड़मेर जिले की शिव विधानसभा सीट पर जेडीयू उम्मीदवार सादुल ने चुनाव से पहले ही मैदान छोड़ दिया था जबकि बाकी बचे 12 उम्मीदवारों की चुनाव में जबरदस्त हार हुई है. जेडीयू ने राजस्थान विधानसभा चुनाव में कितना निराशाजनक प्रदर्शन किया है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि राजस्थान जेडीयू अध्यक्ष दौलतराम पैसिया को रतनगढ़ सीट पर महज 3387 वोट मिले. बांसवाड़ा विधानसभा सीट से जेडीयू उम्मीदवार धीरजमल डिंडोर को सबसे अधिक 5009 वोट मिले हैं. जबकि तीन अन्य उम्मीदवार डेगाना विधानसभा सीट से रणवीर सिंह 1737 वोट, बागीदौरा से जेडीयू उम्मीदवार बालाराम पटेल 1267 वोट और सुमेरपुर विधानसभा सीट से हेमराज माली मात्र 1319 वोट ही हासिल कर पाए हैं.

हालात तो ये हैं कि इनके अलावा राजस्थान में जेडीयू के किसी भी उम्मीदवार को एक हजार वोट भी नसीब नहीं हुए. घाटोल से जेडीयू उम्मीदवार नाथूलाल सारेल को 912 वोट, विद्याधर नगर से उम्मीदवार सुशील कुमार सिन्हा को 588 वोट, भीम विधानसभा सीट से जेडीयू उम्मीदवार बालू सिंह रावत को 417 वोट, परबतसर सीट से जेडीयू उम्मीदवार किशनलाल को 281 वोट, मालवीय नगर विधानसभा से उम्मीदवार भगवान दास को 161 वोट, झोटवाड़ा विधानसभा सीट से जेडीयू उम्मीदवार नटवरलाल शर्मा को 199 वोट और बगरू विधानसभा सीट से उम्मीदवार दौलत राम को केवल 671 वोट मिल सके.

छत्तीसगढ़ में सभी उम्मीदवारों की जमानत ज़ब्त

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में तो जेडीयू की हालत और भी खस्ता है, जेडीयू ने यहाँ कुल 12 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे जिनमें से एक भी उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सका. आंकड़ों के मुताबिक जेडीयू के 12 में से मात्र 2 उम्मीदवार ही 1 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर सके हैं. केसकाल विधानसभा सीट से जेडीयू उम्मीदवार विंदेश राणा को 2008 वोट और बेमेतरा विधानसभा सीट से चुरामन साहू को 1713 वोट हासिल हुए. इनके अलावा बाकी सभी 10 उम्मीदवार 3 अंकों के वोट में ही सिमट कर रह गए. खुज्जी विधानसभा सीट से जेडीयू उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह को 438 वोट, कसडोल विधानसभा सीट से उम्मीदवार सहदेव दांडेकर को 484 वोट, साजा सीट से उम्मीदवार रोहित सिन्हा को 204 वोट, जांजगीर चंपा विधानसभा सीट से उम्मीदवार शिव भानु सिंह को 219 वोट, पामगढ़ विधानसभा सीट से उम्मीदवार नंदकुमार चौहान को 378 वोट, मनेंद्रगढ़ से उम्मीदवार फ्लोरेंस नाइटेंगल सागर को 374 वोट, रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट से जेडीयू उम्मीदवार जागेश्वर प्रसाद तिवारी को 80 वोट, बेलतरा विधानसभा सीट से उम्मीदवार रमेश कुमार साहू को 363 वोट, कुरूद से उम्मीदवार रघुनंदन साहू को 347 वोट और प्रेम नगर विधानसभा सीट से जेडीयू उम्मीदवार मालती बिहारी रजवाड़े को महज 608 वोट मिले.

राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में जेडीयू बुरी तरह पिट गई. इससे पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार की किरकिरी हो चुकी है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीयू के सभी उम्मीदवारों की जमानत ज़ब्त हो गई थी. हालांकि उसके बाद नीतीश कुमार ने अपने करीबी संजय झा को संगठन विस्तार के काम में लगाया था. संजय झा राजस्थान में जेडीयू के प्रभारी हैं बावजूद इसके जेडीयू की इन दोनों राज्यों में बुरा प्रदर्शन झेलना पड़ा. जेडीयू के कई नेताओं और बिहार सरकार के मंत्रियों ने इन राज्यों में चुनाव प्रचार का जिम्मा उठाया था लेकिन वो भी काम नहीं आया. राहत की बात यह रही कि जेडीयू ने मध्य प्रदेश के अंदर अपना कोई भी उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा था वरना वहां भी हालात जुदा नहीं होते.

डिफेंसिव मोड में आ चुकी है जेडीयू

जेडीयू की इस हालत पर पार्टी डिफेंसिव मोड में आ चुकी है, जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन इसे पार्टी की सांगठनिक विस्तार की कोशिश बता रहे हैं. राजीव रंजन का दावा है कि उनकी पार्टी का लक्ष्य वोट हासिल करना नहीं था बल्कि वो सिर्फ पार्टी का विस्तार चाहते हैं. स्थानीय इकाइयों की इच्छा की वजह से ही जेडीयू इन चुनावों में उतरी थी.

जेडीयू की करारी हार पर आरजेडी ने कसा तंज

जेडीयू की इस करारी हार पर अब विरोधी भी तंज कस रहे हैं, आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि जेडीयू तो इन दोनों ही राज्यों में वोट कटवा की भूमिका निभाने गई थी ताकि बीजेपी को फायदा मिल सके लेकिन जिसने बिहार की जनता को धोखा दिया उसपर दूसरे राज्य के लोग क्या विश्वास करेंगे. मृत्युंजय तिवारी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि इनकी पार्टी के लोग नीतीश कुमार को राष्ट्रीय स्तर का नेता बताते थे, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की जनता ने इनको इनकी हैसियत बता दी.

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