लोकसभा चुनाव 2019: सुल्तानपुर से अभी तक नहीं जीत पाई है कोई महिला प्रत्याशी
सुल्तानपुर चुनाव के इतिहास में किसी महिला प्रत्याशी के माथे इस सीट पर जीत का सेहरा नहीं बंधा हैं. ऐसे में बीजेपी उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के सामने इस मिथक को तोड़ना मुश्किल नहीं तो आसान भी नहीं है.
सुल्तानपुर: सुल्तानपुर चुनाव के इतिहास में किसी महिला प्रत्याशी के माथे इस सीट पर जीत का सेहरा नहीं बंधा हैं. ऐसे में बीजेपी उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के सामने इस मिथक को तोड़ना मुश्किल नहीं तो आसान भी नहीं है. फिलहाल इस वक्त के राजनैतिक और जातीय समीकरण में यहां मुकाबला त्रिकोणीय है.
भाजपा उम्मीदवार को कांग्रेस और गठबंधन उम्मीदवारों से सीधी टक्कर मिल रही है. हालांकि, हर बार के चुनाव में प्रत्याशियों की हार-जीत का गुणा-गणित "ब्राहमण, दलित और मुस्लिम" मतदाताओं के अलावा पांचों विधानसभाओं के युवाओं पर टिका है. एक आंकडे के हिसाब से यहां 18 से 39 की उम्र के मतदाताओं की संख्या 942783 है.
मालूम हो कि 1998 में जिले के राजनीति इतिहास में पहली बार महिला उम्मीदवार के रूप में इलाहाबाद की निर्दलीय मेयर रही डॉ. रीता बहुगुणा जोशी सपा प्रत्याशी बनाई गई. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने शहर के खुर्शीद क्लब में भाजपा प्रत्याशी देवेन्द्र बहादुर सिंह के पक्ष में जनसभा कर हवा का रुख मोड़ दिया था और रीता बहुगुणा को करारी शिकस्त मिली थी.
इसके बाद 1999 के चुनाव में गांधी परिवार की करीबी रहीं दीपा कौल कांग्रेस प्रत्याशी बनाई गईं. इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सत्यदेव सिंह का पर्चा खारिज हो गया. उनका मुकाबला बीएसपी प्रत्याशी जयभद्र सिंह और एसपी प्रत्याशी रामलखन वर्मा से हुआ. बाहरी बनाम स्थानीय का नारा इस चुनाव में जोर से चला. नतीजे में दीपा कौल चौथे पायदान पर पहुंच गईं थीं. बीएसपी से जयभद्र सिंह चुनाव जीते थे.
फिर, 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने डॉ.वीणा पांडेय को प्रत्याशी बनाया. बीएसपी ने मो. ताहिर खां को प्रत्याशी बनाया था और सपा ने विधान परिषद सदस्य रहे शैलेन्द्र प्रताप सिंह को प्रत्याशी बनाया था. कांग्रेस ने गांधी परिवार के करीबी रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री कैप्टन सतीश शर्मा को प्रत्याशी बनाया था. सतीश शर्मा को बाहरी होने का दंश झेलना पड़ा और अंत में त्रिकोणीय मुकाबले मे बीएसपी के ताहिर खां विजयी हुए. वीणा पांडेय चौथे स्थान पर पहुंच गई थीं.
ऐसा ही कुछ 2014 के लोकसभा चुनाव में हुआ. कांग्रेस ने वर्तमान में कांग्रेस प्रत्याशी सांसद डॉ. संजय सिंह की पत्नी पूर्व मंत्री डॉ.अमिता सिंह को पार्टी प्रत्याशी बनाया, तो भाजपा ने गांधी परिवार के वरुण गांधी पर दांव लगाया. सपा ने शकील अहमद और बसपा ने पूर्व विधायक पवन पांडेय को प्रत्याशी बनाया था. त्रिकोणीय मुकाबले में वरुण गांधी को बड़ी जीत मिली. कांग्रेस प्रत्याशी डा.अमिता सिंह चौथे पायदान पर चली गईं.
अब 17वीं लोकसभा में बीजेपी ने मेनका गांधी को मैदान मारने के लिए भेजा है. इतिहास को देखते हुए इनका सफर खासा चुनौती भरा है.