इलाहाबाद : ये कहना पूरी तरह से गलत नहीं होगा कि संगम के शहर इलाहाबाद में भी नोएडा की तरह निर्माणाधीन बिल्डिंग्स गिरने जैसा खौफनाक हादसा हो सकता है. इलाहाबाद में भी सरकारी अमले की लापरवाही और उसकी मिलीभगत से जगह-जगह मानकों की अनदेखी कर बड़ी-बड़ी इमारतें तैयार की जा रही हैं. साल 2007 में कुंभ मेले के दौरान शहर में एक निर्माणाधीन बिल्डिंग गिरने से सात लोगों की मौत हो चुकी है. इसके अलावा कई छोटे हादसे भी हो चुके हैं. इन सबके बावजूद इलाहाबाद में अवैध और मानकों की अनदेखी कर खुलेआम निर्माण किए जाते हैं.


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सिविल लाइंस में तो ऐसे निर्माणाधीन बिल्डिंग्स की भरमार है


हैरत की बात यह है कि जिस विकास प्राधिकरण पर अवैध और मानकों के खिलाफ बन रहे निर्माण को रोकने की ज़िम्मेदारी है, उसकी नाक के नीचे ही ऐसी कामर्शियल तमाम बिल्डिंग्स बनकर तैयार हो गईं हैं, जिनमे पार्किंग तक नहीं है. शहर के सबसे पाश इलाके सिविल लाइंस में तो ऐसे निर्माणाधीन बिल्डिंग्स की भरमार है. नोएडा के हादसे के बाद इलाहाबाद के अफसरों की नींद तो टूटी है और वह मानीटरिंग करने और जांच के बाद सख्त कदम उठाए जाने के दावे भी कर रहे हैं, लेकिन कड़वी हकीकत यह है कि यह दावे हमेशा बयानबाजी से आगे नहीं बढ़ पाते हैं.


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साल 2007 में कुंभ मेले के दौरान एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का पिछला हिस्सा गिर गया था


इलाहाबाद में साल 2007 में कुंभ मेले के दौरान जनवरी महीने में सिविल लाइंस इलाके में जल्दबाजी में तैयार की जा रही एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का पिछला हिस्सा गिर गया था. बिल्डिंग गिरने से उसके निचले हिस्से में रह रहे सात मजदूरों की मौत हो गई थी, जबकि दो दर्जन से ज़्यादा लोग गंभीर रूप से ज़ख़्मी हो गए थे. हादसे के बाद जमकर कोहराम मचा था और बिल्डर और ठेकेदार को जेल भेज दिया गया था.


जिस जगह यह हादसा हुआ था, वहां से विकास प्राधिकरण के दफ्तर की दूरी महज चार सौ मीटर है. जिस जगह हादसा हुआ था, उसके अगल बगल तमाम बिल्डिंग्स या तो बनकर तैयार हो गईं हैं या फिर निर्माणाधीन हैं. जाहिर है यह काम सरकारी अमले की मिलीभगत के बिना मुमकिन नहीं है. ऐसे में कहा जा सकता है कि नोएडा जैसा हादसा इलाहाबाद में भी हो सकता है.



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