पटना: मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड सामने आने के बाद हर रोज़ नए खुलासे हो रहे हैं. ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ से जुड़ा अब एक नया मामला सामने आ रहा है जिसमें एनजीओ द्वारा संचालित स्वाधार गृह की 11 महिलाओं के ग़ायब होने की ख़बर है जिसको लेकर एनजीओ के ऊपर अब एक और एफआईआर दर्ज हुई है. लेकिन एबीपी न्यूज़ की पड़ताल में ये ख़ुलासा हुआ है कि ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ के अधीन जो स्वाधार गृह चलता था वो सिर्फ कागजों तक ही सीमित था.
दरअसल ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ को मुज़फ़्फ़रपुर में कुल पांच शेल्टर होम चलाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी जिनमें से एक स्वाधार गृह था. स्वाधार गृह केंद्र सरकार की ओर से चलाई जाने वाली योजना है जिसमें बेघर महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है. ब्रजेश ठाकुर दावा करता था कि इस स्वाधार गृह में कई महिलाओं को रखकर उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता था.
जानकारी के मुताबिक़ बीते 20 मार्च को जब ज़िला निरीक्षण टीम ने स्वाधार गृह का दौरा किया था, उस दौरान वहां 11 महिलाएं और उनके चार बच्चे मौजूद थे. लेकिन बालिका गृह कांड का ख़ुलासा होने के बाद जब दुबारा 9 जून को टीम स्वाधार गृह में रहने वाली महिलाओं को दूसरी जगह शिफ़्ट करने पहुंची तो वहां ताला लगा हुआ था.
विभाग को समझ नहीं आ रहा था कि यहां मौजूद महिलाएं कहां गई क्योंकि एनजीओ ने महिलाओं के बारे में कोई भी जानकारी विभाग को नहीं दी थी जिसके बाद विभाग ने 30 जुलाई को एनजीओ के ऊपर स्वाधार गृह मामले में एफआईआर दर्ज कराई. लेकिन जब एबीपी न्यूज़ ग़ायब बताई जा रही महिलाओं की पड़ताल करने स्वाधार गृह पहुंचा तो हमें बेहद ही हैरान करने वाली जानकारी मिली.
स्थानीय निवासी और पड़ोसियों ने हमें बताया कि दरअसल यहां कोई स्वाधार गृह चलता ही नहीं था. पड़ोसियों ने दावा किया कि इस इमारत में ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ सेवा संकल्प एवं विकास समिति का ऑफ़िस था जिससे जुड़े हुए कर्मचारी दिन में तो यहां आते थे लेकिन रात में यहां कोई नहीं रुकता था. लोगों के मुताबिक़ न तो यहां महिलाएं रहा करती थीं और न ही उन्हें किसी भी तरह का प्रशिक्षण दिया जाता था.
पड़ोसियों के दावे चौंकाने वाले थे जिसकी पुष्टि के लिए एबीपी न्यूज़ ने तिरहुत रेंज के डीआईजी सुनील कुमार सिंह से बात की. डीआईजी ने भी एबीपी न्यूज़ से बातचीत में ये दावा किया कि पुलिस की पड़ताल में भी ये स्वाधार गृह काफ़ी पहले से बंद पाया गया है. डीआईजी ने ये भी आशंका ज़ाहिर की कि ये स्वाधार गृह सिर्फ़ काग़ज़ पर ही चल रहा था. हालांकि डीआईजी ने कहा कि जल्द ही मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में इस बिल्डिंग की छानबीन की जाएगी जिससे और भी चीज़ें स्पष्ट हो पाएंगी.
दरअसल समाज कल्याण विभाग को भी शक है कि स्वाधार गृह के नाम पर एनजीओ किसी फर्ज़ीवाड़े की फ़िराक़ में था क्योंकि स्वाधार गृह की महिलाएं कहां गईं इसकी जानकारी एनजीओ ने विभाग को नहीं दी. एनजीओ की तरफ़ से स्वाधार गृह के एवज़ में भुगतान के लिए विभाग पर हमेशा दबाव बनाया जाता था. हालांकि बीते चार सालों में आज तक एनजीओ को इस मद में एक रुपया भी नहीं मिला है. अब पुलिस को इस बात का पता लगाना है कि स्वाधार गृह की 11 महिलाएं और चार बच्चे कहां हैं, क्या वो वाक़ई में ग़ायब हैं या फिर एनजीओ ज़िला निरीक्षण टीम के सामने फर्ज़ी महिलाओं को पेश करता था? फ़िलहाल पुलिस को इस बात की आशंका है कि ये स्वाधार गृह सिर्फ़ काग़ज़ों पर ही चलता था.