पटना: बिहार में इन दिनों सीएम नीतीश कुमार पर विरोधी और सहयोगी दोनों ‘मेहरबान’ हैं. विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव लोकसभा में मिली करारी शिकस्त के बाद से ही बिहार से गायब हैं. बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में चमकी बीमारी से बच्चों की मौत होती रही पर तेजस्वी यादव का दौरा तो छोड़ दीजिए कोई बयान तक नहीं आया. माना जा रहा है कि तेजस्वी पारिवारिक कलह और राजनीतिक हार से परेशान हैं. कयास ये लगाया जा रहा है कि कोइ समाधान निकलने के बाद ही वे सक्रिय होंगे.


28 जून से बिहार विधानसभा का सत्र शुरू होने वाला है और 27 जून को आरजेडी विधायक दल की बैठक होने वाली है लेकिन तेजस्वी का कोई आता पता नहीं है. उधर सरकारी बंगले पर करोड़ों रुपये खर्च करने के मामले में भवन निर्माण विभाग ने तेजस्वी को क्लीन चिट दे दिया. ऐसे में आरोप लगाने वाले डिप्टी सीएम सुशील मोदी उखड़ गए और उन्होंने क्लीन चिट की बात को नकार दिया.


तेजस्वी भले चुप हैं लेकिन उनकी पार्टी के बड़े नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने नीतीश को महागठबंधन में आने का न्योता भी दे दिया. महागठबंधन के एक और सहयोगी दल हम के मुखिया जीतन राम मांझी भी नीतीश के प्रति नरम हैं. महागठबंधन ने नेता नीतीश पर नरम हैं लेकिन बीजेपी के खिलाफ जमकर बोल रहे.


वहीं बीजेपी एमएलसी सच्चिदानंद सिंह ने नीतीश को निशाने पर लिया और कहा कि जेडीयू पर गठबंधन धर्म का पालन नहीं करने का आरोप लगाया. इसपर जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह ने जवाब दिया और बीजेपी से कार्रवाई की मांग कर दी.


दूसरी तरफ जेडीयू ने अपने प्रवक्ता डॉ अजय आलोक को ममता बनर्जी के खिलाफ बोलने पर इस्तीफा देने को कह दिया. अजय आलोक, ममता बनर्जी पर लगातार बयान दे रहे थे. नीतीश ने आरजेडी के महागठबंधन में आने के न्यौते को न ही खारिज़ किया और न ही स्वागत. नीतीश ने कहा कि वे ऐसी बातों का नोटिस ही नहीं लेते.


जेडीयू भी लालू परिवार पर ज़्यादा हमलावर नहीं है जबकि सुशील मोदी लगातार तेजस्वी यादव, लालू यादव और राबड़ी देवी पर बयान जारी कर रहे हैं. फिलहाल बिहार में ऐसे कई उदाहरण रोज़ सामने आ रहे हैं जिसके आधार पर ये कहना गलत नहीं होगा कि 2020 विधानसभा चुनाव की पटकथा लिखनी शुरू हो गई है.