संतकबीरनगरः मुंबई हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. हर किसी की निगाह टीवी स्क्रीन पर ही लगी हुई थी. अठ्ठारह पुलिसकर्मियों समेत कुल 166 लोगों को देश पर हुए सबसे बड़े आतंकवादी हमले में अपनी जान गंवानी पड़ी थी. संतकबीरनगर जिले के भी चार इस हमले का शिकार हुए थे. आज मुंबई हमले की दसवीं बरसी पर एक बार फिर उन परिवारों के जख्म हरे हो गए हैं, जो जवान बेटों की मौत के बाद से पूरी तरह से टूट चुके हैं. उनका भरा-पूरा परिवार भी बेटों की मौत के बाद से बिखर गया है.
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई शहर 26 नवंबर 2008 को आतंकवादियों की गोली की तड़तड़ाहट से सहम उठा था. 26/11 की दसवीं बरसी पूरे होने के बाद भी परिजनों के दिल में ये टीस बरकरार है. उस दिन व्यस्त मुंबई शहर आतंकियों की दहशत से सहम उठा था. चारों तरफ मातम का माहौल था. तमाम जिन्दगियां थम चुकी थी. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है, गोलियों की आवाज के सामने लोगों के चीखनें-पुकारने की आवाज भी दब जा रही थी. देखते ही देखते मुंबई की सडकों पर लाशों के ढेर बिछ गए. अब तक हर किसी को समझ आ गया था. इंसानी दुश्मनों ने मुंबई को अपना निशाना बना लिया है.
देश पर हुए अब तक के सबसे बडे आतंकी हमले को दस साल बीत चुके हैं. यूपी के संतकबीरनगर के मकसूद, फिरोज और एखलाक की मौत ताज होटल में हुए आतंकी हमले में हो गई थी. तीनों मुंबई में काम करते थे. जब उन्हें जानकारी हुई कि उनके क्षेत्र के सांसद लालमणि ताज होटल में रुके हुए हैं, तो वे उनसे मिलने के लिए वहां गए थे. तीनों उनसे मिलकर होटल की सीढि़यों से नीचे आ रहे थे, उसी समय आतंकियों की गोली का निशाना बन गये थे.
मकसूद संतकबीनगर के कोतवाली खलीलाबाद के अमावा निमावा का रहने वाला था. परसहवा निवासी फिरोज अहमद व थुरंडा के एखलाख अहमद भी हादसे में मारे गए थे. 10 वर्ष का वक्त गुजर गया, लेकिन दुखती रगों पर सरकार की तरफ से मरहम नहीं लगाया गया. मकसूद अहमद घर का इकलौता कमाऊ सदस्य था. उसके ऊपर पत्नी के साथ ही दो बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी थी. पत्नी समीउन्निशां असहाय होकर दो बच्चों की परवरिश कर रही है. खलीलाबाद के अमावां निवासी मकबूल ने बताया कि तीसरे भाई मकसूद की मौत के बाद से मां मैमुन्निशां हर तिथि पर आने वालों को जानकारी देती थी. मौत पर तो बहुत लोग आए, आश्वासन दिए. लेकिन, किसी ने एक पाई भी नहीं दिया.
वे बताते हैं कि इस बार मां ने आने वालों को खरी-खोटी सुनाने का इरादा किया था. लेकिन, वो गुजर गई. दोनों बेटे आफताब और मेहताब के सिर से पिता का साया उठने के बाद उनकी परवरिश करने वाली दादी के नहीं रहने से वे और भी सदमे में हैं. पत्नी समीउन्निशा ने बताया कि बीमा का पैसा मिला था. उसके बाद कोई सहायता नहीं मिली. उनके पास न तो खेती-बारी है और न ही कोई रोजगार है. दो जून की रोटी के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है.
परसहवा निवासी फिरोज अहमद 21 दिन पहले ही मुंबई कमाने के लिए गया था. उसकी मौत के बाद तीन बच्चों की परवरिश बुआ शहरुन्निशां कर रही है. बड़ा बच्चा इरफान 11 वर्ष, बेटी शिफा आठ वर्ष और अरमान छह वर्ष के हैं. मुंबई कमाने गये तीनों दोस्त एक साथ ही रहते थे. इसी दोस्ती को निभाने के कारण एखलाक के कहने पर फिरोज और मकसूद भी ताज होटल में सांसद लालमणि से मिलने गये थे. लेकिन, जिस शहर में रोजी-रोटी कमाने के लिए गए थे, उसी शहर ने उनकी जान ले ली और उनका परिवार बिखर गया.
इस हमले में संतकबीरनगर के धनघटा के रहने वाले हिदायतुल्लाह की भी जान चली गई थी. पिता अनवारुल हक और मां नूरा की इकलौती संतान हिदायतुल्लाह के पिता बचपन में ही अल्लाह को प्यारे हो गए थे. मुफलिसी के कारण वो पढ़ाई नहीं कर पाया. गरीबी को देखकर 20 साल की उम्र में मुंबई चला गया. कुछ दिनों के बाद ही ताज पैलेस होटल के पास उसे लिओपोल्ड कैफे में काम मिल गया. उसके अच्छे व्यवहार और काम से प्रभावित होकर मैनेजमेंट ने उसे रिसेप्शन का काम सौंप दिया. इसी बीच 26/11 का वह काला दिन आया, जब हिदायतुल्लाह आतंकियों की गोली का निशाना बन गया.
मुंबई में हुए आतंकी हमले में किसी ने बेटा खोया, तो किसी के सिर से पिता का साया उठ गया. किसी के हाथों से मां का आंचल छूट गया, तो कोई अपने बहन और बहनोई को खो दिया, तो किसी ने भाई. देश पर हुआ ये ऐसा हमला था, जिसकी टीस देशवासियों के साथ उनके परिवार को भी जीवनभर सालती रहेगी.