वाराणसी: वेदों और पुराणों के अनुसार माना जाता है कि “काश्याम मरणात मुक्तिः” यानि जिसने काशी में अपना देह त्यागा, उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है. शायद यही कारण है कि सनातन धर्म को मानने वाले बुजुर्ग काशी की पावन धरती पर अपना नश्वर शरीर त्याग करने की इच्छा लिए चले आते हैं. लेकिन अब इस सनातनी परम्परा पर भी बढ़ती जनसंख्या का प्रभाव पड़ने लगा है. जहां अंतिम समय में काशीवास करना मुश्किल हो रहा है, तो वहीँ अब महाश्मशान मणिकर्णिका पर शवदाह के लिए भी घंटों का इन्तजार करना पड़ रहा है.
काशीवास के लिए भी है लम्बी वेटिंग लिस्ट
प्राचीन काल से जीवन के अंतिम समय में काशी आ जाने की परम्परा है, जिसे काशीवास कहा जाता है. काशीवास के लिए अस्सी स्थित मुमुक्षु भवन और मिसिरपोखरा स्थित मुक्ति भवन में काशीवास करने का अधिक महत्व है. मुमुक्षु भवन में ज्यादातर लोग अपने रिटायरमेंट के बाद आकर काशीवास करते हैं तो मुक्ति भवन में मृत्युशैया पर पहुंच चुके लोगों को लाया जाता है.
बीते कुछ वर्षों में मुमुक्षु भवन में काशीवास करने की इच्छा रखने वालों के लिए इन्तजार की घड़ियाँ कुछ ज्यादा ही लम्बी हो चली हैं. यहां पिछले तीन वर्षों से रहने के लिए किसी भी नए व्यक्ति को कमरा नहीं दिया गया है. हालात यह हैं कि मुमुक्षु भवन की देखरेख करने वाली संस्था काशी मुमुक्षु भवन सभा के पास 50-60 एप्लीकेशन अभी पेंडिंग हैं.
आने वाले समय में यह वेटिंग लिस्ट बढ़ने की प्रबल संभावना है. मुमुक्षु भवन में रहने वालों में त्रिपुरा में स्कूल में फिजिक्स और मैथ्स के टीचर रह चुके जगदीश चक्रवर्ती और रेलवे के पर्सनल डिपार्टमेंट में बड़े अफसर रह चुके 75 वर्षीय स्वामीनाथ तिवारी भी शामिल हैं. ये दोनों ही बीते तीन सालों से मान्यता के अनुसार अंतिम सांस काशी में लेने का इन्तजार कर रहे हैं.
महाश्मशान में चिता पर जाने के लिए भी इंतजार
जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ते तापमान का असर अंतिम संस्कार पर भी पड़ता दिख रहा है. प्रचंड गर्मी की वजह से होने वाली मौतों में खासा बढ़ोतरी हुई है. इसका असर महाश्मशान मणिकर्णिका पर भी देखने को मिल रहा है. यहां अंतिम संस्कार के लिए आने वाले एक लंबे इंतजार से गुजर रहे हैं.
अंतिम संस्कार के लिए आने वाले शवों की संख्या 80 -100 से बढ़कर अचानक 350-400 तक जा पहुंची है. महाश्मशान पर पर्याप्त जगह न हो पाने के कारण अंतिम संस्कार के लिए आए परिजनों को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें घाट की सीढ़ियों पर शव रखकर 3-4 घंटे तक इन्तजार करना पड़ रहा है.
काशी में अंतिम संस्कार का यह है रहस्य
इस बारे में मणिकर्णिका घाट स्थित बाबा मशाननाथ मन्दिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव यहाँ मरने वाले के कानों में स्वयं तारक मंत्र फूंकते हैं. इससे मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर जाता है. इसी के चलते लोग यहां पडोसी जिलों और देश के अलग-अलग हिस्सों से भी दाह संस्कार के लिए आते हैं.
अचानक हुआ शवों में इजाफा
गुलशन बताते हैं कि आम दिनों में यहां आने वाले शवों की संख्या 80 -100 रहती है, लेकिन गर्मी होने की वजह से बुजुर्गों की मृत्यु में इजाफा हो गया है. यह संख्या 300-400 जा पहुंची है. यहां एक साथ 18 शवों को जलाए जाने का स्थान है. हर शव को पूरी तरह से जलने में लगभग 3 से 4 घण्टे लगते हैं. इस तरह से अन्य व्यक्तियों को दाह संस्कार के लिए 3 से 4 घण्टे का इंतजार करना पड़ता है.
काशीवास के लिए बनेंगे नए मोक्ष भवन
श्रीकाशी विश्वनाथ विशिष्ट क्षेत्र विकास प्राधिकरण के सीईओ विशाल सिंह के मुताबिक़ काशी में नए मोक्ष भवन बनाए जाने का प्रस्ताव है. नए बनने वाले मोक्ष भवन को मौजूदा भवनों से से अलग पवित्र स्थान पर बनेंगे. इन मोक्ष भवनों को अविमुक्त क्षेत्र में बनाया जाना है, जो निर्माणाधीन काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में काशी विश्वनाथ मंदिर और मर्णिकर्णिका घाट के बीच स्थित है. वहीं गुलशन कपूर के मुताबिक़ घाटों के सुंदरीकरण के लिए सरकार द्वारा पारित किया जा चुका है, जल्द ही इसपर कार्य शुरू होने वाला है. उनके मुताबिक़ इससे अंतिम संस्कार के लिए आने वालों को काफी राहत मिल सकेगी.